1978 में उत्तर प्रदेश के संभल में होली के पर्व पर एक ऐसा दिल दहलाने वाला हादसा हुआ, जिसने न केवल प्रशासन और सरकार की नाकामी को उजागर किया, बल्कि यह दिखाया कि नेतृत्व, एकता और न्याय का हमारे जीवन में कितना महत्व है।
हिंसा की शुरुआत:
होली के समय एक अफवाह फैलाई गई कि होलिका दहन में एक गैर-हिंदू युवक को जिंदा जला दिया गया। इस झूठी अफवाह ने दंगों को जन्म दिया और जल्द ही पूरा संभल हिंसा की आग में जलने लगा। इस हिंसा का परिणाम हिंदू समुदाय के लिए भयावह था:
1.138 हिंदुओं को निर्मम तरीके से मार डाला गया।
2.न्यायिक आयोग की रिपोर्ट: जाँच आयोग ने स्पष्ट कहा कि सरकार और प्रशासन ने जानबूझकर दंगों को रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
3.एक घर में 32 हिंदू शरण लिए हुए थे, जिन्हें पेट्रोल, तारकोल और लकड़ी फेंककर जिंदा जला दिया गया।
तबाही के निशान:
1.धार्मिक स्थलों का विनाश: चार से अधिक मंदिर तोड़ दिए गए।
2.महिलाओं पर अत्याचार: कम से कम 12 महिलाओं के साथ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज हुई।
3.मजबूरन पलायन: बर्क जैसे नेताओं ने खुलेआम कहा, “संभल छोड़कर चले जाओ, वरना काट दिए जाओगे।” कुछ ही दिनों में पूरे संभल से हिंदू पूरी तरह पलायन कर गए।
कांग्रेस सरकार की भूमिका:
न्यायिक जाँच और मीडिया रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि कांग्रेस सरकार ने दंगों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
संभल की जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद:
दंगों से पहले हिंदुओं को मंदिर के एक हिस्से में पूजा करने की अनुमति थी।
दंगों के बाद, कांग्रेस सरकार ने हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी और पूरा हरिहर मंदिर मुस्लिम समुदाय को सौंप दिया।
यह पूरी घटना उस सरकार की असफलता का परिणाम थी, जो तुष्टिकरण की राजनीति में उलझी हुई थी, और जिसने हिंदुओं को उनके ही घरों से बेदखल कर दिया।
तब और अब का अंतर
1978 में, संभल की आबादी में 70% हिंदू और 30% मुस्लिम थे।
लेकिन एक पक्षपाती सरकार के कारण, 30% लोगों ने 70% हिंदुओं को मारकर और डराकर पलायन करने पर मजबूर कर दिया।
आज, स्थिति उलट है।
अब हिंदू केवल 30% और मुस्लिम 70% हैं।
लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद हालात बदल गए हैं।
आज, हिंदू अपने मंदिरों को फिर से प्राप्त कर रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए खड़े हो रहे हैं।
युवाओं के लिए सीख:
1.नेतृत्व का महत्व: एक न्यायप्रिय सरकार निराशा को उम्मीद में बदल सकती है।
2.एकता में शक्ति है: चुनौतियों के बावजूद, सामूहिक इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
3.इतिहास से सबक लें: संभल हमें याद दिलाता है कि जब हम विभाजित होते हैं या अन्याय के खिलाफ खड़े नहीं होते, तो क्या परिणाम हो सकते हैं।
सोचने का समय:
कल्पना कीजिए उन हिंदुओं की, जिन्होंने अपने घर, मंदिर और परिवार खो दिए, सिर्फ इसलिए कि सरकार ने उनका साथ नहीं दिया। और अब, सोचिए कि एक मजबूत सरकार ने उन्हें अपनी संस्कृति और अधिकारों को वापस पाने का साहस कैसे दिया।
सबक साफ है: एक अच्छा नेतृत्व और एकजुटता किसी भी समुदाय के भविष्य की रक्षा कर सकता है। आइए, अतीत के बलिदानों को सम्मान दें और सूझबूझ, एकता और सतर्कता बनाए रखें।
जय हिंद। जय उत्तर प्रदेश।
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1978 के संभल दंगों की सच्चाई