11 जुलाई 2006
11 जुलाई 2006 को मुंबई की 7 लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। यह हमले भारतीय नागरिकों को आतंकित करने, मुंबई की रफ्तार रोकने, और भारत की आर्थिक राजधानी को घुटनों पर लाने की साज़िश थे। इसमें:
- 209 लोगों की मौत हुई थी
- 700 से अधिक घायल हुए थे
- ब्लास्ट में प्रेशर कुकर बम का इस्तेमाल हुआ, जो पाकिस्तानी ISI और लश्कर-ए-तैयबा का हथकंडा माना जाता है।
इतनी भीषण त्रासदी के बाद अब—18 साल बाद—सुनने को मिल रहा है कि कुछ आरोपी साक्ष्य के अभाव या जांच की खामियों के चलते रिहा कर दिए गए हैं।
🧠 यह सिर्फ न्यायिक भूल है या एक योजनाबद्ध रणनीति?
हमारा मानना है कि यह मात्र भूल नहीं, बल्कि भारत के भीतर मौजूद एक राष्ट्रविरोधी गठजोड़ की ओर इशारा करता है, जो:
- जिहादी आतंकियों को बचाता है
- हिंदू राष्ट्रवादियों को फँसाता है
- सबूतों से छेड़छाड़ करता है
- गवाहों को गायब करता है
- सरकारी जांच एजेंसियों को गुमराह करता है
- केंद्र की एजेंसियों की छवि बिगाड़ता है
👉 और यह सब बिना राजनीतिक संरक्षण, विदेश फंडिंग, और अंदरूनी प्रशासनिक मिलीभगतके संभव नहीं।
🕵️♂️ क्राइम ब्रांच की भूमिका संदिग्ध क्यों?
- मुंबई क्राइम ब्रांच और राज्य पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं:
- क्यों समय रहते केस NIA को नहीं सौंपा गया?
- क्यों चार्जशीट में तकनीकी खामियाँ थीं?
- क्यों जजों को बार-बार बदला गया?
- क्यों आतंकवाद के बजाय ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ के एंगल को प्रचारित किया गया?
➡ यह सभी सवाल इंगित करते हैं कि राज्य पुलिस और क्राइम ब्रांच में कुछ तत्व जानबूझकर केस को कमजोर करने का काम कर रहे थे।
📡 लोकेशन ट्रैकिंग और जासूसी: नागरिकों की सुरक्षा या राष्ट्र विरोधी निगरानी तंत्र?
आज देश में टेक्नोलॉजी का उपयोग आम लोगों की ट्रैकिंग में हो रहा है। लेकिन यह ट्रैकिंग आतंकियों पर होनी चाहिए थी—न कि राष्ट्रभक्तों पर।
उदाहरण:
- लोकेशन लीक करके गवाहों की हत्या कराई गई।
- कॉल रिकॉर्डिंग्स की मदद से केस को कमजोर किया गया।
- सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और बदनाम करने का खेल रचा गया।
👉 यह सब बताता है कि सिस्टम में बैठे कुछ लोग आतंकियों के “स्लीपर सेल” बन चुके हैं।
⚖️ क्यों सिर्फ NIA को मिले अधिकार?
- केंद्र सरकार की National Investigation Agency (NIA) ने कई बड़े मामलों में:
- समय पर चार्जशीट फाइल की,
- साक्ष्य इकट्ठा किए,
- पाकिस्तान के लिंक उजागर किए,
- अदालत से सज़ा दिलवाई।
जैसे:
- समझौता एक्सप्रेस केस (जहाँ शुरुआत में हिंदुओं को फंसाने की साजिश की गई थी)
- ISI मॉड्यूल्स का पर्दाफाश
- ISIS से जुड़ी साजिशों का समय रहते खुलासा
👉 लेकिन NIA को केस देने से बचना महाराष्ट्र, बंगाल, केरल जैसे राज्यों में एक पैटर्न बन चुका है — क्योंकि वहाँ के शासन की नीयत पर सवाल हैं।
😠 हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित साजिश: अब मौन रहना आत्महत्या है
आज यदि कोई हिंदू संगठन या राष्ट्रवादी आवाज़ उठाता है, तो:
- उसे ‘आतंकी’, ‘कट्टर’, ‘सांप्रदायिक’ कह दिया जाता है।
- उसके बैंक खातों को फ्रीज़ किया जाता है।
- उसके साधकों को जेल में डाला जाता है।
लेकिन आतंकियों को:
- मदरसों से शरण मिलती है।
- राजनीतिक संरक्षण मिलता है।
- मुफ्त कानूनी सहायता दी जाती है।
- मीडिया उन्हें “मासूम” बताता है।
🔚 रास्ता क्या है? समाधान क्या है?
✔ क़दम उठाना अब ज़रूरी है:
- सभी आतंकवाद से जुड़े केस NIA के अंतर्गत लाए जाएं।
- राज्यों की क्राइम ब्रांच की भूमिका की स्वतंत्र जांच हो।
- राज्य पुलिस अफसरों की संपत्ति और विदेश लिंक की जांच हो।
- न्यायपालिका में बैठी पक्षपाती विचारधारा की पहचान हो।
- केंद्र सरकार एक ‘जन सुरक्षा कानून’ लाए — जो आंतरिक देशद्रोह को सख्त सज़ा दे।
- हिंदू समाज को संगठित रूप से वैचारिक, कानूनी, और राजनीतिक लड़ाई के लिए खड़ा होना होगा।
❗ अब नहीं तो कभी नहीं!
आज का मुद्दा केवल न्याय का नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा, संस्कृति और आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्वका है।
यदि आज भी हिंदू समाज मौन रहा, उदासीन रहा, विभाजित रहा — तो कल वो दिन दूर नहीं जब:
- आपके बच्चों की किताबें बदल दी जाएंगी।
- आपके मंदिरों पर कब्ज़ा होगा।
- आपके त्योहारों पर प्रतिबंध लगेगा।
- और आपका वजूद मिटा दिया जाएगा।
- हिंदुओं के हालत पाकिस्तान व बांग्लादेश के जैसे हो जाएंगे।
🇮🇳 उठो भारतवासी — आतंक के इन स्लीपर सेल्स और उनके संरक्षकों के खिलाफ जनआंदोलन शुरू करो। यह धर्मयुद्ध है — और इसमें निष्क्रियता भी पाप है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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