आतंकवाद सिर्फ एक सुरक्षा संकट नहीं है;
यह एक सभ्यता पर हमला है, मानवता पर युद्ध है, और शांतिपूर्ण सह–अस्तित्व के खिलाफ एक साजिश है।
आज, दशकों से वैश्विक आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के बावजूद
- हम अब भी निर्दोष लोगों को खो रहे हैं,
- अब भी नई–नई श्रद्धांजलियां बना रहे हैं,
- अब भी आतंकवाद के खिलाफ नए युद्ध घोषित कर रहे हैं —
लेकिन क्या हमने सच में जड़ को समझा है?
या हम सिर्फ लक्षणों का इलाज कर रहे हैं, जबकि वैचारिक वायरस समाज में और गहराई से फैलता जा रहा है?
एक साफ पैटर्न जिसे स्वीकारने से लोग डरते हैं
जो भी ईमानदारी से देखेगा, उसे यह पैटर्न साफ नजर आएगा:
- आतंकवादियों के नाम,
- उनके नारे,
- उनकी विचारधारा,
- उनके निशाने,
- उनके संरक्षणदाता।
सब कुछ एक ही वैचारिक दिशा की ओर इशारा करता है।
फिर भी, वैश्विक अभिजात्य वर्ग, वामपंथी बुद्धिजीवी और कई सरकारें अब भी राजनैतिक शुद्धता और डर के कारण सच बोलने से बचती हैं।
कैसे धर्म को एक सस्ता हथियार बनाया गया
सोचिए —
अगर आपके पास संसाधन नहीं हैं, समर्थन नहीं है, तो आप शक्तिशाली देशों को कैसे जीतेंगे?
- टैंक या जेट नहीं बनाते,
- एक विचारधारा बनाते हैं।
- धर्म को हथियार बनाते हैं।
लोगों को यकीन दिलाया जाता है:
- “आपका धर्म ही सच्चा धर्म है।”
- “आपका ईश्वर आदेश देता है कि आप युद्ध करें।”
- “अविश्वासियों को झुकाना या समाप्त करना अनिवार्य है।”
- “मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा।”
यह भावनात्मक ब्लैकमेल सबसे शक्तिशाली भर्ती साधन बन जाता है।
लगभग बिना किसी लागत के, अनगिनत ‘मानव बम‘ तैयार हो जाते हैं।
गरीब, हाशिये पर पड़े मुसलमानों का शोषण
तो ये सस्ते सैनिक कहां से मिलते हैं?
- गरीब मुस्लिम देशों की झुग्गियों से,
- उपेक्षित और निराश युवाओं के बीच से,
- टूटी-फूटी, निर्धन परिवारों से,
- ऐसे समाजों से जहाँ शिक्षा नहीं, बस कट्टर धार्मिक शिक्षा है।
कट्टरपंथी संगठन:
- पैसा और सुविधाएं देते हैं जिनकी उन्हें कभी आदत नहीं थी,
- झूठा ‘मकसद’ (Purpose) देते हैं,
- नफरत को धर्म की आड़ में पढ़ाते हैं,
- मदरसे और मस्जिदों में ब्रेनवॉश करते हैं ताकि युवा आतंकवादी बन सकें।
उनकी जान की कीमत नहीं होती,
वे उन्हें सस्ते हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।
मदरसे और कट्टरपंथी मस्जिदों का दुष्प्रयोग
जहाँ शिक्षा से बच्चों को आजाद होना चाहिए,
वहाँ कई मदरसों में मस्तिष्क बंद कर दिए जाते हैं।
जहाँ सिखाया जाता है:
- “काफिरों का नाश करना चाहिए।”
- “सिर्फ हमारा धर्म सर्वोच्च है।”
- “दूसरे धर्मों के लोग दोयम दर्जे के हैं।”
अरब देशों और कट्टरपंथी संगठनों से अरबों डॉलर इन मदरसों और मस्जिदों में डाले जाते हैं,
ताकि हर साल हजारों बच्चों को जिहादी बनाया जा सके।
टूटा हुआ सामाजिक ढांचा
एक और गंभीर समस्या है — परिवार व्यवस्था:
- कई शादियाँ, दर्जनों बच्चे (8, 10, 15 तक),
- बेहद गरीबी,
- शिक्षा और रोजगार का अभाव,
- अस्थिर जीवन और असुरक्षित भविष्य।
इन बच्चों का बचपन:
- गुस्से से भरा,
- ज्ञान से शून्य,
- धन और पहचान की भूख से तड़पता।
कट्टरपंथी संगठन ऐसे युवाओं को
आसान शिकार बना लेते हैं,
जिहाद की मशीनरी में झोंक देते हैं।
भारत सहित दुनिया में इसके उदाहरण
भारत —
एक महान सभ्यता, जो बार-बार खून से नहाई है:
- पहलगाम आतंकी हमला,
- पुलवामा हमला,
- रेसी हमला,
- श्री माता वैष्णो देवी हमला,
- अमरनाथ यात्रा पर हमले,
और भी कई।
- नाम बदलते हैं।
- जगहें बदलती हैं।
- निशाने बदलते हैं।
लेकिन विचारधारा और प्रेरणा वही रहती है।
हमारे नेता “संवेदना” दिखाते हैं, लेकिन असली हिम्मत होती है समस्या की जड़ को स्वीकार करना, और उसे नष्ट करना। केवल आँसू बहाना नहीं।
सबसे बड़ा झूठ: “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता“
- “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” —
यह सबसे खतरनाक झूठ है। - यह हमें बीमारी पहचानने से रोकता है।
- सोचिए, अगर डॉक्टर से कहा जाए:
“बीमारी का नाम मत लेना, सिर्फ दर्द की दवा देना।” - क्या मरीज ठीक होगा?
इसी तरह,
जब तक हम हिम्मत से नहीं कहेंगे कि जहर कहाँ से आ रहा है, हम इलाज नहीं कर सकते।
आज का आतंकवाद
किसी धर्म के नाम पर हो रहा है —
धर्म के वास्तविक सिद्धांतों का दुरुपयोग कर।सच्चाई नफरत नहीं है।
सच्चाई जीवन रक्षा है।
असली समाधान: दिलों और दिमागों की लड़ाई
अगर दुनिया वाकई आतंकवाद को खत्म करना चाहती है, तो उसे चाहिए:
1. युवाओं को सही शिक्षा दें:
- आधुनिक शिक्षा, न कि धार्मिक ब्रेनवॉशिंग।
- विज्ञान, इतिहास, मानवाधिकार, सह-अस्तित्व सिखाएं।
2. मदरसे और मस्जिदों का सुधार करें:
- नफरत फैलाने वाले संस्थानों को बंद करें।
- धार्मिक स्थलों को मानवता और देशभक्ति का केंद्र बनाएं।
3. गरीबों को सशक्त बनाएं:
- रोजगार सृजन,
- कौशल विकास,
- व्यवसायिकता,
- स्वास्थ्य, रोजगार और आवास के अवसर।
4. परिवार और सामाजिक सुधार:
- छोटे परिवारों को बढ़ावा दें,
- जागरूकता फैलाएं,
- महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा को बढ़ावा दें।
5. आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार:
- नफरत फैलाने वालों से व्यापार न करें,
- अपने संसाधनों से शांतिप्रिय, देशभक्त स्रोतों का समर्थन करें।
6. वैचारिक साहस:
धर्म के भीतर सुधार और जागरूकता की माँग करें,
- मध्यमार्गी आवाजों को समर्थन दें,
कट्टरपंथ को खुलेआम उजागर करें।
अंतिम चेतावनी
अगर हम अभी भी सच्चाई बोलने से डरते रहे,
अगर हमने स्थायी समाधान की जगह सिर्फ दिखावटी संवेदनशीलता चुनी,
तो आने वाले युद्ध कहीं अधिक खूनी होंगे — और तब कोई भी देश सुरक्षित नहीं रहेगा।
आतंकवाद केवल राजनीतिक संकट नहीं है।
यह मानवता की आत्मा के लिए युद्ध है।
हम यह युद्ध जीत सकते हैं —
सिर्फ गोली से नहीं,
बल्कि सत्य, शिक्षा, सामाजिक सुधार और वैचारिक स्पष्टता से।
अब वक्त है उठ खड़े होने का।
नहीं तो देर हो जाएगी।
याद रखिए, हमें उन उग्रवादी और आतंकी संगठनों से लड़ना है जो धर्म, जिहाद, जन्नत और 72 हूरों के नाम पर इन गरीब बच्चों का शोषण कर रहे हैं।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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