अधर्म का नाश धर्म की रक्षा से अधिक आवश्यक है, क्योंकि अधर्म की समाप्ति ही धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करती है। जब अधर्म समाप्त हो जाएगा, तो धर्म स्वतः सुरक्षित हो जाएगा, और इसके साथ ही अन्य सभी समस्याएं भी क्रमशः समाप्त हो जाएंगी। यह विचार न केवल तर्कसंगत है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परंपराओं में भी गहराई से निहित है।
अवतारों का उद्देश्य: अधर्म का नाश
भगवान ने हर युग में अवतार लेकर अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना पर जोर दिया है। चाहे वह भगवान विष्णु के दशावतार हों या महाभारत और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों की कहानियां, हर स्थान पर अधर्म के नाश को प्राथमिकता दी गई है।
भगवान राम: रावण के अधर्म का अंत
रावण के अधर्म और अत्याचार का अंत कर धर्म की स्थापना की। रावण के नाश के बिना धर्म का प्रचार और लोक कल्याण संभव नहीं था।
भगवान कृष्ण: महाभारत में अधर्म का नाश
महाभारत के युद्ध में अधर्म रूपी कौरवों का नाश कर धर्म और न्याय की स्थापना की। उन्होंने गीता में स्पष्ट कहा,
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।”
इसका अर्थ है कि साधुओं की रक्षा, दुष्टों के विनाश, और धर्म की स्थापना के लिए भगवान हर युग में अवतार लेते हैं।
अधर्म: हमारी समस्याओं की जड़
आज जो समस्याएं समाज और देश के सामने खड़ी हैं, उनकी जड़ अधर्म है।
भ्रष्टाचार
अधर्म का ही एक रूप है, जो समाज की नैतिकता और ईमानदारी को खत्म कर देता है।
सामाजिक अन्याय
जाति, धर्म, और भाषा के नाम पर हो रहा भेदभाव अधर्म का उदाहरण है।
आतंकवाद और कट्टरता
ये अधर्म की ऐसी शक्तियां हैं जो समाज की शांति और स्थिरता को नष्ट करती हैं।
धार्मिक तुष्टिकरण
धर्म का राजनीतिक और स्वार्थी उपयोग अधर्म को बढ़ावा देता है और धर्म के वास्तविक उद्देश्य को कमजोर करता है।
जब तक अधर्म का नाश नहीं होगा, इन समस्याओं का समाधान असंभव है।
अधर्म का नाश: समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए अनिवार्य
धर्म की स्थापना का मूल
अधर्म तब तक जीवित रहेगा जब तक हम उसे सहन करते रहेंगे। धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का अंत पहली शर्त है।
सामाजिक समरसता
अधर्म समाप्त होने से जातिवाद, धार्मिक कट्टरता और असमानता जैसी बुराइयों का खात्मा होगा। यह समाज को शांति और समरसता की ओर ले जाएगा।
राष्ट्र की सुरक्षा और प्रगति
अधर्म का नाश आतंकवाद, भ्रष्टाचार, और आंतरिक विरोध जैसी समस्याओं को समाप्त करेगा, जिससे राष्ट्र प्रगति के पथ पर बढ़ सकेगा।
आध्यात्मिक उन्नति
अधर्म का अंत समाज में नैतिकता और ईश्वर की ओर झुकाव को प्रोत्साहित करेगा। इससे व्यक्ति और समाज दोनों की आध्यात्मिक उन्नति होगी।
हमारी भूमिका: अधर्म के खिलाफ संघर्ष
भगवान के अवतारों ने यह सिखाया है कि अधर्म के खिलाफ संघर्ष केवल ईश्वर का कार्य नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी भी है।
सत्य और धर्म का साथ दें
सत्य और धर्म की रक्षा के लिए हर स्तर पर प्रयास करें।
अधर्म का विरोध करें
अन्याय, भ्रष्टाचार, और कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाएं।
समाज को जागरूक करें
लोगों को अधर्म के खतरों और धर्म की महत्ता के बारे में शिक्षित करें।
संघर्ष के लिए तैयार रहें
जैसे अर्जुन को धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करना पड़ा, वैसे ही हमें भी अधर्म के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा।
धर्म और अधर्म का चिरंतन संघर्ष
धर्म और अधर्म का संघर्ष अनादि काल से चला आ रहा है। अधर्म के नाश के बिना धर्म की रक्षा असंभव है। इसलिए, हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अधर्म के खिलाफ खड़ा हो और धर्म की स्थापना के लिए कार्य करे।
जैसा कि महाभारत में भगवान कृष्ण ने कहा:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।”
(जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं।)
यह समय है कि हम अधर्म के खिलाफ अपनी जिम्मेदारी समझें और धर्म की स्थापना के लिए अपना योगदान दें। धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का नाश अनिवार्य है।
जय हिन्द! जय भारत!!