अगर सरदार वल्लभभाई पटेल हमारे पहले प्रधानमंत्री बने होते, तो भारत की राजनीति और विकास की दिशा कुछ और ही होती। पटेल की मजबूत नेतृत्व क्षमता, दृढ़ संकल्प और राष्ट्रहित में फैसले लेने की अद्भुत शैली ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता के रूप में स्थापित किया। इस लेख में हम यह कल्पना करेंगे कि अगर पटेल प्रधानमंत्री होते, तो उनका नेतृत्व भारतीय राजनीति पर किस तरह का प्रभाव डालता।
सनातन धर्म और भारत की नियति पर एक चिंतन“
भारत की आज़ादी से पहले के निर्णायक दिनों में एक ऐसा क्षण आया जिसने देश की राजनीतिक दिशा ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और अस्मिता की दशा भी तय कर दी।
जब देश के पहले प्रधानमंत्री का चयन होना था, तो सरदार वल्लभभाई पटेल को कांग्रेस कार्यसमिति के लगभग सभी सदस्यों का समर्थन प्राप्त था।
सभी वोट सरदार पटेल के पक्ष में थे, सिर्फ एक को छोड़कर।
पंडित नेहरू को एक भी वोट नहीं मिला।
लेकिन महात्मा गांधी ने लोकतांत्रिक निर्णय को नकार दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो वे अनशन पर बैठ जाएंगे — मृत्यु तक का उपवास (सत्याग्रह)।
इस दबाव में सरदार पटेल ने देश की एकता के लिए कदम पीछे खींच लिया, और नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया।
वह मोड़ जिसने हिंदुओं के दुख की नींव रखी
अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री बनते:
- सनातन धर्म की जय–जयकार होती।
- हिंदुओं की सांस्कृतिक शक्ति और आत्मगौरव अपने चरम पर होता।
- मुसलमानों की अत्यधिक तुष्टीकरण की नीति कभी नहीं अपनाई जाती।
- भारत को इस्लामीकरण के मार्ग पर कभी नहीं धकेला जाता।
लेकिन हुआ इसके उलट। दशकों तक चला वोट बैंक का खेल, जिसमें हिंदुओं की पीड़ा को नजरअंदाज किया गया और एक व्यवस्थित योजना के तहत हिंदू पहचान को दबाया गया।
2013 में आया एक खतरनाक प्रयास: ‘अल्पसंख्यक अधिकार विधेयक‘
2013 में यूपीए सरकार ने संसद में एक ‘अल्पसंख्यक अधिकार विधेयक‘ प्रस्तुत किया, जो:
- मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को विशेष संवैधानिक अधिकार देता, जो SC/ST से भी अधिक शक्तिशाली होते।
- इस विधेयक के लागू होने पर अगर कोई मुस्लिम किसी हिंदू पर झूठा भी आरोप लगाता, तो हिंदू के लिए न्याय पाना लगभग असंभव हो जाता।
- यह विधेयक बहुसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ एक कानूनी जाल बुन देता।
- यह विधेयक तीन बार संसद में पेश किया गया, लेकिन हर बार भारतीय जनता पार्टी के देशभक्त और दृढ़ विरोध के कारण विफल हो गया।
ईश्वर का धन्यवाद है कि यह बिल पास नहीं हुआ।
एक दिव्य मोड़: नरेंद्र मोदी और भाजपा का उदय
2014 में जब नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आए, तो वह एक दैविक हस्तक्षेप जैसा था। भारत माता की कृपा और हिंदू समाज की जागृति ने एक नया युग शुरू किया।
तब से:
हिंदुओं की दशा में लगातार सुधार हुआ है।
सनातन मूल्यों का पुनर्जागरण हो रहा है।
हिंदू समाज की आवाज को फिर से स्थान और सम्मान मिला है।
अब वह गलती दोहराई नहीं जानी चाहिए
हम यह कभी नहीं भूल सकते कि हम कितने करीब आ गए थे अपनी पहचान और संस्कृति के विनाश के।
अब समय है कि:
- हम सरदार पटेल की विरासत को सम्मान दें, सिर्फ स्मरण में नहीं, आचरण में।
- हम सनातन धर्म की रक्षा करें।
- हम भारत को फिर से एक गौरवशाली हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करें।
1947 की राजनीतिक भूल और 2013 के विधेयक की साजिश को अब कभी नहीं दोहराने देना है।
समय है पुनः उठ खड़े होने का, एकजुट होने का।
अब समय है सोच-समझकर वोट देने का, धर्म की रक्षा के लिए।
समय है उस कार्य को पूर्ण करने का जो सरदार पटेल ने आरंभ किया था —
एक स्वतंत्र, सुरक्षित और सनातनी भारत का निर्माण।**
जय भारत। जय सनातन धर्म। जय श्री राम।
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