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अमेरिका की वर्चस्व रणनीतियाँ

अमेरिका की वर्चस्व रणनीतियाँ: जापान, चीन और अब भारत?

इतिहास गवाही देता है कि जब भी कोई राष्ट्र अमेरिका की आर्थिक या सामरिक ताक़त के क़रीब पहुँचता है, वॉशिंगटन उसे प्रोत्साहित नहीं करता बल्कि कमज़ोर करने और रोकने का खेल शुरू करता है।

अमेरिका की चाल साफ़ है — मुद्रा में छेड़छाड़, व्यापार युद्ध, प्रतिबंध, तकनीक रोकना, सैन्य दबाव और कथित “मानवाधिकार” के नाम पर प्रोपेगेंडा।

आज यह खेल भारत के ख़िलाफ़ भी शुरू हो चुका है। पर फर्क यह है कि भारत के पास अब एक मज़बूत नेतृत्व और रणनीतिक दृष्टि मौजूद है — नरेंद्र मोदी और उनकी टीम।

📖 पहला अध्याय: जापान – भरोसा बना जाल

1980 के दशक में जापान अमेरिका को सेमीकंडक्टर, कार और इलेक्ट्रॉनिक्स में पछाड़ रहा था। वॉशिंगटन घबराया।

👉 फिर आया प्लाज़ा समझौता (1985)
अमेरिका ने जापान पर दबाव डालकर येन की वैल्यू 50% बढ़वाई।

परिणाम? जापान का निर्यात ढह गया। बबल फूटा और शुरू हुए खोए हुए दशक।
जापान फिर कभी खड़ा नहीं हो पाया।
➡️ रोकथाम पूरी।

📖 दूसरा अध्याय: चीन – जिसने झुकने से इनकार किया

चीन को भी शुरू में लुभाया गया। 2001 में अमेरिका की मदद से WTO में प्रवेश मिला। वॉशिंगटन को उम्मीद थी कि चीन खुलेगा और अमेरिकी नियम मानेगा।

लेकिन हुआ उल्टा।

👉 चीन ने अमेरिकी पूँजी और बाज़ार का इस्तेमाल करके 5G, AI, EVs, सौर ऊर्जा और दुर्लभ खनिजों में बढ़त बना ली।
2014 तक चीन PPP के आधार पर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।

जब अमेरिका ने ट्रेड वॉर, प्रतिबंध और इंडोपैसिफिक सैन्य गठबंधन शुरू किए… चीन टूटा नहीं। उसने रूस, BRICS, SCO और अपनी तकनीकी क्षमता पर भरोसा किया।
➡️ रोकथाम असफल।

📖 तीसरा अध्याय: भारत – अगला निशाना

भारत अब सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। आने वाले दशक में हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे।

👉 और यही अमेरिका की “खतरे की घंटी” है।

संकेत साफ़ हैं:

  • 2019 में भारत से GSP व्यापार लाभ छीना गया।
  •  रूस से S-400 खरीद पर प्रतिबंध की धमकी (CAATSA)।
  •  सस्ते रूसी तेल पर दबाव।
  •  “लोकतंत्र” और “अल्पसंख्यक अधिकार” के नाम पर लेक्चर।
  •  NGO और मीडिया के जरिए भारत की छवि खराब करना।
  •  ➡️ स्क्रिप्ट वही है। निशाना नया है।

⚔️ मोदी टीम – असली मजबूती

लेकिन यहाँ पर भारत जापान जैसा कमज़ोर और चीन जैसा अकेला नहीं है।

👉 मोदी टीम ने पिछले 11 सालों में आक्रामक तरीके से:

  • सैन्य शक्ति को आधुनिक बनाया – राफेल, तेजस, अर्जुन, अग्नि-5, पिनाका और INS विक्रांत जैसे स्वदेशी हथियार।
  • आर्थिक ताक़त को खड़ा किया – भारत अब चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।
  • निर्माण और निर्यात को मज़बूत किया – “मेक इन इंडिया” और PLI स्कीम से रिकॉर्ड निवेश आया। 
  • वैश्विक व्यापार विविधीकरण किया – अब भारत सिर्फ़ अमेरिका और यूरोप पर निर्भर नहीं, बल्कि खाड़ी देशों, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया में व्यापार बढ़ा रहा है।
  • ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य-राजनयिक कदम उठाकर वैश्विक उपस्थिति दिखाई।
  • हाल ही में अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध में भी भारत ने पीछे हटने के बजाय डटकर जवाब दिया।

👉 यह बताता है कि भारत अब सिर्फ़ झेलने वाला नहीं बल्कि जवाब देने वाला राष्ट्र बन चुका है।

⚠️ भीतरी रोकथाम – असली साज़िश

लेकिन खतरा सिर्फ़ बाहर से नहीं है।

👉 सात दशकों तक हिंदू इसलिए पिसे नहीं कि मुसलमान मज़बूत थे या ज़्यादा संख्या में थे… बल्कि इसलिए क्योंकि विपक्षी दलों ने हमें जाति, भाषा और पंथ में बाँटकर कमज़ोर किया।

👉 हमारी शान मिटाई गई।
👉 हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया।
👉 सनातन धर्म का अपमान हुआ।
👉 और हम चुप रहे।

आज भी एंटीहिंदू और एंटीनेशनल इकोसिस्टम अदालतों, मीडिया और NGOs तक में गहरी पैठ बना चुका है।
➡️ आतंकियों और धर्मांधों को प्राथमिकता मिलती है, जबकि आम हिंदू नागरिक और राष्ट्रीय मुद्दे लटके रहते हैं।

🔥 हिंदुओं की जिम्मेदारी – अब या कभी नहीं

सिर्फ़ 11 सालों में मोदीजी ने भारत को अराजकता और बीमार अर्थव्यवस्था से निकालकर चौथी सबसे बड़ी शक्ति बनाया।

👉 मुसलमान और विपक्ष समझ गए कि मोदीजी का भारत मज़बूत हो रहा है, इसलिए वे एकजुट होकर प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं।
👉 लेकिन हिंदू अब भी शिकायतों और विभाजन में उलझे हैं।

सच्चाई यही है:
हम कमज़ोर इसलिए हैं क्योंकि हम बँटे हुए हैं, न कि इसलिए कि वे मज़बूत हैं।

🛡️ आगे का रास्ता

भारत के पास अब मौका है: 

बाहरी रोकथाम को तोड़ने का → BRICS, SCO, G20 नेतृत्व और आत्मनिर्भर भारत के ज़रिए।

भीतरी रोकथाम को खत्म करने का → जाति-भाषा के विभाजन से ऊपर उठकर हिंदू एकजुटता और मोदीजी का पूर्ण समर्थन करके।

👉 अगर हम सब देशभक्त और हिंदू मिलकर मोदीजी का साथ दें, तो हम अमेरिका के प्रहार को जापान से कहीं बेहतर और चीन से भी मज़बूती से झेल सकते हैं।
👉 लेकिन अगर चूक गए तो देश पाकिस्तान या बांग्लादेश जैसा इस्लामी राष्ट्र बनकर भीख माँगने पर मजबूर होगा।

⚡ आख़िरी सवाल

अमेरिका की स्क्रिप्ट वही है।
एंटी-हिंदू इकोसिस्टम का एजेंडा भी वही है।

सवाल यह है —
👉 क्या हिंदू फिर से बँटे रहेंगे?
या इस बार मोदीजी के साथ खड़े होकर भारत को महाशक्ति बनाएँगे?

फ़ैसला हमारे हाथ में है।
और यही आने वाले हज़ार सालों में भारत की दिशा तय करेगा।

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