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सनातनी

अपनी सनातनी जड़ों को फिर से पहचानें

आज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब पश्चिमी दुनिया सनातन धर्म और इसकी गहरी आध्यात्मिकता को अपनाने की ओर बढ़ रही है, तब हम हिंदू अपनी ही महान संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर को त्यागकर अंधाधुंध पश्चिमी संस्कृति की ओर भाग रहे हैं।

सदियों से सनातन धर्म आध्यात्मिक ज्ञान, शांति और संतुलित जीवन का आधार रहा है। आज, पश्चिमी विद्वान, वैज्ञानिक, और आध्यात्मिक साधक योग, ध्यान, आयुर्वेद, वेदांत, और भगवद गीता का अध्ययन कर रहे हैं, मानसिक शांति, तनाव मुक्ति और सार्थक जीवन के समाधान के रूप में हमारी परंपराओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे महसूस कर रहे हैं कि हिंदू दर्शन केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है, जो शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करता है।

परंतु, विडंबना यह है कि शिक्षित हिंदू युवा अपनी ही संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही योजनाबद्ध सांस्कृतिक कंडीशनिंग का परिणाम है, जिसे औपनिवेशिक शिक्षा नीति और स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस द्वारा बढ़ावा दिए गए तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावाद ने और गहरा कर दिया। हमारी शिक्षा व्यवस्था ने पश्चिमी उपलब्धियों को महिमामंडित किया, जबकि हमारी अपनी महान सभ्यता के योगदान को या तो कम करके दिखाया या पूरी तरह से मिटा दिया। परिणामस्वरूप, आज का हिंदू युवा अपनी संस्कृति को पिछड़ा मानता है और पश्चिम की अंधी नकल करने में गर्व महसूस करता है।

 ऐसा क्यों हो रहा है?

  1. औपनिवेशिक और धर्मनिरपेक्ष प्रचार: ब्रिटिश शासकों ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली बनाई, जिसने हमें हमारी जड़ों से काट दिया। कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकारों ने इस षड्यंत्र को आगे बढ़ाया, हिंदू इतिहास को विकृत किया, आक्रमणकारियों को महिमामंडित किया, और सनातन धर्म को दमनकारी दिखाने का षड्यंत्र रचा, जबकि पश्चिमी मूल्यों को श्रेष्ठ बताने का कार्य किया।
  2. गलत प्राथमिकताएँ: जहां पश्चिमी लोग भारत आकर हमारी आध्यात्मिकता, मंदिरों और शास्त्रों में ज्ञान खोज रहे हैं, वहीं हम हिंदू इन्हीं चीजों को छोड़कर केवल भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं।
  3. मीडिया और पॉप कल्चर का प्रभाव: बॉलीवुड, मुख्यधारा की मीडिया और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली ने हिंदू परंपराओं को पिछड़ा और अप्रासंगिक दिखाया, जबकि पश्चिमी जीवनशैली को “आदर्श” के रूप में प्रस्तुत किया।
  4. अपनी धरोहर पर गर्व की कमी: आज का हिंदू युवा अपनी पहचान को खुले तौर पर अपनाने में संकोच करता है, क्योंकि उसे “रूढ़िवादी” या “सांप्रदायिक” कहे जाने का डर होता है। यह तब और दुखद हो जाता है जब हम देखते हैं कि पश्चिमी लोग बिना किसी झिझक के हिंदू मूल्यों को गर्व से अपना रहे हैं।

 हमें क्या करना होगा?

हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती हमारे शिक्षित हिंदू युवाओं को जगाना है, जो धर्मनिरपेक्ष और पश्चिमी मानसिकता से प्रभावित होकर सनातन संस्कृति से दूर चले गए हैं। अगर हम अब नहीं जागे, तो इसके दुष्परिणाम केवल हिंदू सभ्यता के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए घातक होंगे।

  • हमें अपने युवाओं को सनातन धर्म की महानता के बारे में शिक्षित करना होगा, जिससे उन्हें यह एहसास हो कि हमारी संस्कृति ही आत्मिक शांति, नैतिक मूल्यों और संतुलित जीवन की कुंजी है।
  • हमें वामपंथी इतिहासकारों, सेक्युलर लॉबी और हिंदू विरोधी प्रचार तंत्र द्वारा फैलाए गए झूठे आख्यानों का मुकाबला करना होगा।
  • हमें अपनी पहचान पर गर्व करना सीखना होगा और अपने रीतिरिवाजों, परंपराओं और धर्म को भूलने की गलती नहीं करनी चाहिए।

जब पश्चिमी दुनिया सनातन धर्म की ओर बढ़ रही है, तो हमें भी अपनी महान धरोहर को समय रहते पहचानना होगा, वरना यह मौका हमेशा के लिए हाथ से निकल सकता है। अब हमें तय करना है—क्या हम अपनी गौरवशाली संस्कृति को पुनः स्थापित करेंगे, या पश्चिमी आधुनिकता के मोह में फंसकर इसे मिटने देंगे?

आइए, एकजुट हों, अपनी जड़ों को पहचानें और सनातन धर्म को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें।

🚩 जय सनातन धर्म! जय भारत! 🚩

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