पश्चिम बंगाल में पुलिस भर्ती की एक लिस्ट हाल ही में वायरल हुई है, जिसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों को सब इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त किया गया है। यह लिस्ट पूरी तरह से सही है और आप इसे बंगाल पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर भी सत्यापित कर सकते हैं। यह तथ्य कोई सामान्य भर्ती का मामला नहीं है, बल्कि इस्लामीकरण की एक गंभीर रणनीति का हिस्सा है, जो भारतीय समाज की एकता और सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।
संवैधानिक अनियमितताएँ और मुस्लिमों को ओबीसी में आरक्षण
सबसे गंभीर बात यह है कि मुसलमानों को यह पद ओबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) के तहत दिया गया है। भारतीय संविधान के मुताबिक, केवल हिंदू ओबीसी समुदाय को ही आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने इस नियम को तोड़ते हुए मुस्लिमों को ओबीसी श्रेणी में डालकर असंवैधानिक तरीके से उन्हें लाभ दिया है। यह केवल एक भर्ती का मुद्दा नहीं है, बल्कि समाज के संवैधानिक ढांचे को कमजोर करने की कोशिश है।
सिर्फ यही नहीं, पश्चिम बंगाल में हिंदू ओबीसी जातियों के अधिकारों को मुसलमानों को खुलेआम सौंपा जा रहा है, और यह स्थिति हर दिन गंभीर होती जा रही है। पूरे भारत में, जैसे लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव की पार्टी, जो ओबीसी के अधिकारों की बात करती रही है, आज चुप्प हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों को हिंदू ओबीसी का हक दिया जा रहा है।
मुस्लिमों के बढ़ते प्रभाव और समाज पर असर
हम अगर नज़र डालें तो 2019 में जब आर्थिक आधार पर जनरल कैटेगरी में आरक्षण का कानून पारित हुआ था, तब समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने यह बयान दिया था कि ओबीसी आरक्षण को 60-65 प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाए। लेकिन अब जब पश्चिम बंगाल में हिंदू ओबीसी का हक मुसलमानों को दिया जा रहा है, तो वे चुप हैं। ये एक खतरनाक स्थिति का संकेत है।
पश्चिम बंगाल में हिंदू ओबीसी का हक मुसलमानों को दिया जा रहा है, इसका प्रभाव हमारे समाज और सांस्कृतिक ताने-बाने पर गहरा असर डालेगा। अगर हिंदू ओबीसी को रोजगार से वंचित किया गया, तो इसका असर उनके परिवारों तक पहुंचेगा। और जैसा कि हम जानते हैं, हर कोई अपनी बेटी की शादी एक सुरक्षित और खुशहाल परिवार में ही करना चाहता है, जो आगे चलकर बड़ी सामाजिक समस्याओं का कारण बन सकता है।
इस्लामीकरण की प्रक्रिया और इसके परिणाम
किसी भी राज्य में यदि मुसलमानों का प्रतिशत 30% से अधिक हो जाता है, तो फिर 15-20% गद्दार और लालची हिंदुओं की मदद से मुसलमान सत्ता पर काबिज हो सकते हैं, और उसके बाद इस्लामीकरण की प्रक्रिया तेज़ी से शुरू हो जाएगी। यही वह स्थिति है, जो हमें डॉ. अंबेडकर की चेतावनियों की याद दिलाती है।
डॉ. अंबेडकर ने अपनी पुस्तक “भारत का विभाजन” में इस बारे में विस्तार से लिखा था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि 1940 के आसपास भारतीय सेना में मुसलमानों की संख्या 40 प्रतिशत से अधिक हो गई थी, और इसका सीधा प्रभाव भारत के बंटवारे पर पड़ा। वे यह मानते थे कि यदि अफगानिस्तान के मुसलमान भारत पर हमला करते हैं, तो भारतीय मुसलमान अपने अफगान भाइयों के साथ मिलकर भारत में बड़े पैमाने पर हिंसा फैला सकते हैं। यह वही सिद्धांत था, जिसके आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था।
आज की स्थिति
आज के भारत में, मुसलमान विभिन्न क्षेत्रों में घुसपैठ करते हुए अपने प्रभाव का विस्तार कर रहे हैं। चाहे वह सेना, पुलिस, शिक्षा, कोचिंग संस्थान, या अन्य रोजगार के क्षेत्र हों, मुसलमानों का असर लगातार बढ़ रहा है। उनकी रणनीति स्पष्ट है—अपने समुदाय के लोगों को सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़ावा देना, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हिंदू समुदाय पहले मजबूत था।
टीचिंग, कोचिंग और यहां तक कि जिम ट्रेनिंग जैसे क्षेत्रों में भी, मुसलमानों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, और उनकी नज़रें अब हिंदू लड़कियों पर होती हैं, जिससे लव जिहाद जैसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, वो पारंपरिक हिंदू व्यवसायों जैसे कि बाल काटना, सब्जी व फल बेचना इत्यादि में भी अपने पैर जमाने में सफल हो चुके हैं। यह स्थिति न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से भी हमारे लिए खतरनाक हो सकती है।
पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का प्रभाव बढ़ने के खतरे
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार द्वारा मुसलमानों को पुलिस और सुरक्षा बलों में भर्ती करने का कदम सीधे तौर पर राज्य की सुरक्षा और एकता को खतरे में डाल सकता है। हिंदू समुदाय, जो पहले से ही पुलिस थानों के बाहर उत्पीड़न का शिकार हो रहा है, अब अंदर भी अपनी शिकायत दर्ज नहीं कर पाएगा। अगर पुलिस का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों से भर जाएगा, तो हिंदू नागरिकों के लिए न्याय पाना मुश्किल हो जाएगा।
कानूनी लड़ाई की अपील
मैं भारत के न्यायविदों और वकीलों से अपील करता हूं कि ममता बनर्जी की इस असंवैधानिक नीति के खिलाफ अदालत में जाएं। यह संभव नहीं है कि कोई व्यक्ति एक साथ अल्पसंख्यक और ओबीसी आरक्षण का लाभ उठाए। इस पर कानूनी दरवाजा खटखटाना और न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना जरूरी है, ताकि संविधान की रक्षा हो सके और भारत के सामाजिक ढांचे को सही दिशा में रखा जा सके।
यह समय हमारी एकजुटता का है। अगर हम अब भी चुप रहते हैं और इस स्थिति को नजरअंदाज करते हैं, तो हम आने वाले संकट का सामना करने के लिए तैयार नहीं होंगे। हम सबको इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इस दिशा में कदम उठाने चाहिए।