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बंगाल का खून बहता सच

बंगाल का खून बहता सच: जब कानून धर्म के विरुद्ध खड़ा हो जाए

आज बिरभूमि, पश्चिम बंगाल से जो दृश्य सामने आया है, वह कोई अकेली घटना नहीं है। यह सनातन धर्म और हिंदू पहचान पर सुनियोजित हमले का हिस्सा है, जो “धर्मनिरपेक्षता” और “प्रशासन” के नाम पर किया जा रहा है।

एक हिंदू युवक को बेरहमी से पीटा गया—ना किसी दंगाई या गुंडे ने, बल्कि खुद उन पुलिसवालों ने जिनका कर्तव्य उसकी रक्षा करना था

और ये पुलिसवाले कौन हैं?

  • एसपी निशात परवेज
  • एडीएसपी फरहत अब्बास

इस बर्बरता का कारण क्या था?

पीड़ित ने हनुमान जयंती पर प्रभात फेरी (सुबह की शोभायात्रा) का आयोजन किया था।

यह कानून का पालन नहीं, बल्कि एकतरफा उत्पीड़न है।
यह विचारधारा से संचालित पुलिस व्यवस्था है, जिसे ममता बनर्जी की सरकार ने प्रश्रय दिया है, जिसने बंगाल को तुष्टीकरण, सांप्रदायिकता और भय का अड्डा बना दिया है

⚠️ जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं

पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल पुलिस में मुस्लिम अधिकारियों की भारी संख्या में भर्ती की गई है।

भर्ती में विविधता अच्छी बात है, लेकिन जब यह विविधता असंतुलन बन जाए और इसका इस्तेमाल बहुसंख्यकों को दबाने के लिए किया जाए, तो यह जनतंत्र नहीं, सांप्रदायिक षड्यंत्र बन जाता है।

क्या यह विडंबना नहीं है कि जिस जमीन पर सनातन संस्कृति ने सभ्यता की नींव रखी, वहीं आज उसके अनुयायियों को अपने पर्व मनाने के लिए भी अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है?

🧑‍⚖️ न्यायपालिका कहाँ है? यह चुप्पी क्यों?

जब मणिपुर जल रहा था, सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। तत्काल कार्रवाई हुई, मीडिया ने दिन-रात रिपोर्टिंग की।

लेकिन आज बंगाल जल रहा है

  • मंदिर तोड़े जा रहे हैं,
  • हिंदू पीटे जा रहे हैं,
  • शोभायात्राएं रोकी जा रही हैं,
  • मासूम बच्चे डरे हुए हैं।

और फिर भी सुप्रीम कोर्ट मौन है

यह सिर्फ पक्षपात नहीं है, यह न्याय की आत्मा पर चोट है।

मनन कुमार मिश्रा, वरिष्ठ वकील व राज्यसभा सांसद ने ठीक ही कहा:
“जब बंगाल में हिंदू पीटे जा रहे हैं, तब सुप्रीम कोर्ट चुप क्यों है? मुरशिदाबाद में आग लगी है, लेकिन अदालत की आँखें बंद क्यों हैं?” हमें राजनीतिक एजेंडे से ऊपर उठकर न्याय चाहिए, ना कि चयनात्मक संवेदनशीलता

🧨 जड़ में है तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति

आरक्षण प्रणाली आज़ादी के बाद पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए बनाई गई थी—और यह सराहनीय कदम था।

यह समान अवसर देने के लिए थी, समान परिणाम के लिए नहीं। और यह सीमित समय के लिए थी।

लेकिन आज?

यह स्थायी तुष्टीकरण की राजनीति बन गई है

जातीय विभाजन का हथियार

मेघा (गुणवत्ता) को नजरअंदाज कर दिया गया है

और इसे मतदाताओं को बांधने का जरिया बना दिया गया है।

अगर हम सभी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों को मदद दें, तो वह एक न्यायसंगत कदम होगा। लेकिन अगर हम मेधा (गुणवत्ता) के मानकों को कम करेंगे, तो हम एक अक्षम पीढ़ी तैयार करेंगे जो समाज के विकास में बाधा बनेगी।

यह केवल मेधावी युवाओं के साथ अन्याय नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य के लिए खतरा है।

🧠 सनातनी को अपनी नींद से जागना होगा

स्थिति को और भी भयावह बनाता है हमारी अपनी निष्क्रियता और बिखराव

जब भी कोई हिंदू संगठन एकत्र होने का आह्वान करता है, बहुत ही कम लोग पहुँचते हैं।
क्यों?
क्योंकि बाक़ी लोग सोचते हैं:

  • “चलो, शर्मा जी चले जाएंगे, मैं सब्ज़ी लेने निकल जाता हूँ।”
  • “सक्सेना जी तो वैसे भी बेरोज़गार हैं, वो जरूर जाएंगे।”
  • “मेरे न जाने से क्या फर्क पड़ेगा?”

यही मानसिकता हमें गुलाम बनाती है
यही सोच चुनावों में भी हमें कमजोर बनाती है।
और यही वजह है कि आज हम पीटे जा रहे हैं, और कल गुलामी करेंगे

एक पूर्व सैनिक की विनती: उठो, जागो, संगठित हो जाओ

एक पूर्व सैनिक की विनती है—एक सैनिक के रूप में नहीं, एक सनातनी भाई के रूप में:

भाइयों और बहनों,
अब बहानों का समय नहीं है।
अब सामूहिक जागरूकता का समय है।

  • हमें न हिंसा करनी है,
    न शहर जलाने हैं।
  • बस हमें संगठित होकर खड़ा होना है,
    शांति से एकजुटता दिखानी है,
    अपनी संख्या का प्रभाव दिखाना है

इतना ही काफी है विधर्मियों को यह एहसास दिलाने के लिए कि अब सनातन सोया नहीं है

🚩 अब क्या करें? – कार्ययोजना

  • जब भी सनातन पर चोट हो, एकजुट होकर खड़े हो
  • हर सनातनी आयोजन में भाग लें, चाहे कितनी भी व्यस्तता हो
  • बंगाल जैसे मामलों में कानूनी लड़ाई का समर्थन करें
  • मीडिया के पक्षपात को एक्सपोज करें
  • अपने समुदाय को शिक्षित करें—न्यायिक चुप्पी और राजनीतिक चालों पर
  • चुनावों में हिंदू एकता से मतदान करें, जाति, भाषा, क्षेत्र से ऊपर उठकर

🔱 सनातन धर्म को कोई नहीं हरा सकता जब हम उसे मिलकर बचाएं

हम कायर नहीं हैं।
हम छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, गुरु गोबिंद सिंह जैसे महान योद्धाओं की संतान हैं।

हमें हथियार नहीं चाहिए,
हमें चाहिए सिर्फ़—
संकल्प, संगठन, और धर्म के प्रति समर्पण।

आइए, बंगाल की ये घटना टर्निंग पॉइंट बने।
बिरभूमि  की पुकार हर मंदिर, हर गांव, हर दिल तक पहुँचे।

“कौओं का साहस वहीं तक होता है, जहाँ तक शेर सोया रहता है।
आज हमें नए शेर नहीं चाहिए,
बस हमें भेड़ों की तरह सोना बंद करना होगा।”

जय सनातन। जय भारत। जय धर्म।

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