बंगाल की बाढ़ पर ममता का नया नाटक
- पश्चिम बंगाल एक बार फिर भीषण बाढ़ की चपेट में है। लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो चुके हैं,
- सैकड़ों गांव जलमग्न हैं और प्रशासन पूरी तरह ठप पड़ा है।
- जहां जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर वही पुराना राजनीतिक नाटक खेल रही हैं — अपनी विफलता छिपाने और केंद्र पर दोष मढ़ने का।
🔹 ठगबंधन का स्थायी पैटर्न – त्रासदी पर राजनीति, राहत पर उदासीनता
यह दृश्य केवल बंगाल तक सीमित नहीं है। जहां-जहां ठगबंधन (TMC, कांग्रेस, RJD, SP, DMK, लेफ्ट आदि) की सरकारें हैं, वहां हर आपदा के समय यही कहानी दोहराई जाती है।
- जब जनता बाढ़, तूफान या महामारी से जूझती है, ये नेता राहत कार्यों से ज़्यादा राजनीतिक बयानबाज़ी में व्यस्त रहते हैं।
- हिंदू बहुल क्षेत्रों को जानबूझकर अनदेखा किया जाता है, जबकि तुष्टिकरण आधारित इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाई जाती है।
- वोट-बैंक बचाने के लिए झूठे आरोपों और गुमराह करने वाले बयानों की बाढ़ आ जाती है।
बंगाल की स्थिति – जिम्मेदारी से भागती सरकार
ममता बनर्जी ने दावा किया कि “यह मानव निर्मित बाढ़ है” और इसका दोष दामोदर वैली कॉरपोरेशन (DVC), बिहार, झारखंड और भूटान पर डाल दिया।
लेकिन वास्तविकता यह है कि—
- बंगाल सरकार ने वर्षों से नदियों की सफाई, डी–सिल्टेशन और तटबंध मरम्मत के काम को नजरअंदाज किया।
- केंद्र ने बाढ़ प्रबंधन के लिए 1,290 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दी, मगर उसका उपयोग सही ढंग से नहीं हुआ।
- राज्य प्रशासन ने भू–राजनीतिक और तकनीकी बैठकें में भाग तो लिया, पर कोई ठोस योजना नहीं बनाई।
स्पष्ट है कि यह प्राकृतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक विफलता का परिणाम है।
केंद्र और RSS के कार्यकर्ता ही सच्चे रक्षक
- हर बार जब ऐसी आपदा आती है, तब केंद्र सरकार की एजेंसियां — NDRF, SDRF, सेना और RSS, VHP, बजरंग दल के स्वयंसेवक ही राहत कार्यों में सबसे आगे होते हैं।
- राज्य सरकार केवल कैमरे के सामने दिखावे के दौरे करती है, जबकि असली मदद देने वालों को श्रेय भी नहीं देती।
- यह वही पैटर्न है जो हर “ठगबंधन” शासित राज्य में देखा जाता है —
राजनीति और तुष्टिकरण को प्राथमिकता, और जनता की पीड़ा को उपेक्षा।
ठगबंधन का पुराना खेल – वादे, फोटोशूट और भूल
- आपदा आते ही ममता और उनके सहयोगी “मुआवजा” और “राहत पैकेज” का वादा करते हैं।
- मीडिया में बड़े-बड़े बयान दिए जाते हैं, पर जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता।
- फिर चुनाव आते हैं, वही झूठे वादे दोहराए जाते हैं, और जनता को फिर ठगा जाता है।
- कई बार देखा गया है कि स्थानीय प्रशासन राहत सामग्री को अपने कार्यकर्ताओं में बांट देता है, जबकि गरीब ग्रामीण परिवारों तक कुछ नहीं पहुंचता।
हर बार एक जैसा नाटक – वोट-बैंक बचाने की कोशिश
- हर ठगबंधन शासित राज्य में, चाहे वह बंगाल हो, बिहार हो या तमिलनाडु — जब भी संकट आता है, सरकारें “वोट–बैंक बचाओ” मिशन में लग जाती हैं।
- हिंदू गांवों में राहत देरी से भेजी जाती है या बिल्कुल नहीं दी जाती।
- सरकारी सहायता “चयनित समुदायों” को प्राथमिकता के साथ दी जाती है।
- और केंद्र की मदद को “राजनीतिक हस्तक्षेप” बताकर अस्वीकार किया जाता है।
- जब चुनाव आते है तो यही नेता वोट मांगने वालों की और झूठे वादे करने वाली लाइन मैं सबसे आगे होते है और चुनावों के बाद थे नेता और उनके वादे दोनों गायब हो जाते हैं।
जनता अब जाग रही है
अब बंगाल और भारत की जनता समझ रही है कि यह सब एक सोची-समझी रणनीति है। जनता देख रही है कि—
- आपदा के समय केंद्र सरकार, सेना और RSS कार्यकर्ता ही मैदान में उतरते हैं।
- और “ठगबंधन” के नेता केवल फोटो खिंचवाने और केंद्र को कोसने में व्यस्त रहते हैं।
- यह स्पष्ट संकेत है कि अब जनता का विश्वास इन स्वार्थी और तुष्टिकरणवादी नेताओं से उठ चुका है।
🔹अब निर्णय जनता के हाथ में
- बंगाल की यह त्रासदी एक चेतावनी है।
- अगर जनता अब भी नहीं चेती, तो हर बार यही होगा —
- “ठगबंधन” वोट-बैंक की राजनीति करता रहेगा और जनता अपने ही राज्य में पीड़ित बनी रहेगी।
अब समय है कि बंगाल और भारत की जनता यह तय करे
- क्या वे इन झूठे, भ्रष्ट और वोट-बैंक आधारित नेताओं को फिर सत्ता देंगे,
- या एक ऐसी सरकार को, जो राष्ट्र, धर्म और जनता के हित में कार्य करती है?
✍️ यह राजनीति नहीं, यह जनसेवा बनाम ठगबंधन का संघर्ष है। अब जनता को ही सच्चाई पहचाननी होगी।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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