प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है। यदि एक पल के लिए मान लें कि यह आरोप सही है, तो इसमें क्या गलत है? आखिरकार, भारत ही वह पवित्र भूमि और मातृभूमि है जहां दुनियाभर के हिंदू निवास करते हैं। 95% हिंदू भारत में रहते हैं, और यह न केवल 5,000 साल पुरानी सनातन हिंदू सभ्यता का केंद्र है, बल्कि हिंदू धर्म का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र भी है।
अन्य धर्मों के पास अपनी आध्यात्मिक भूमि और राष्ट्र होते हैं जो उनके धार्मिक पहचान से मेल खाते हैं। 53 मुस्लिम-बहुल देशों में से 27 ने आधिकारिक रूप से इस्लाम को अपने राज्य धर्म के रूप में अपनाया है। 100 से अधिक ईसाई-बहुल राष्ट्र, जैसे यूनाइटेड किंगडम, ग्रीस, और डेनमार्क, ने ईसाई धर्म को अपने राज्य धर्म के रूप में मान्यता दी है। यहां तक कि 6 देशों में बौद्ध धर्म को राज्य धर्म के रूप में अपनाया गया है और इज़राइल एक यहूदी राज्य है। फिर, जब भारत हिंदू राष्ट्र बनने की बात करता है, तो वामपंथी और तथाकथित उदारवादी तुरंत विरोध करने लगते हैं और इसके खिलाफ कोई ठोस तर्क प्रस्तुत नहीं कर पाते।
ऐतिहासिक संदर्भ और भारत की सहिष्णुता
भारत का इतिहास यह दिखाता है कि इसकी धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहिष्णुता हिंदू संस्कृति में गहराई से निहित है। पारसी, यहूदी, ईसाई, जैन, सिख, और बौद्ध सदियों से भारत में शरण पाते आए हैं और हिंदुओं के संरक्षण में फले-फूले हैं। हालांकि हिंदू धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, इसका भौगोलिक प्रसार मुख्य रूप से भारत तक सीमित है। अन्य धर्मों के विपरीत, जो धर्मांतरण के माध्यम से फैलते रहे हैं, हिंदू धर्म आक्रामक रूप से धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं देता, जो इसे स्वाभाविक रूप से सहिष्णु और समावेशी बनाता है।
कुछ लोग तर्क देते हैं कि यदि भारत एक हिंदू राष्ट्र बनता है, तो यह उसकी धर्मनिरपेक्षता को खतरे में डाल देगा। हालांकि, भारत की धर्मनिरपेक्षता 1976 के संवैधानिक संशोधन का परिणाम नहीं है, बल्कि इसकी हिंदू बहुसंख्यक आबादी की स्वाभाविक सहिष्णुता से उत्पन्न हुई है। यह हिंदू धर्म का स्वभाव है, न कि कागज का टुकड़ा, जिसने 1,000 वर्षों की सहिष्णुता के बाद धर्मनिरपेक्षता की गारंटी दी है।
वैश्विक मान्यता में दोहरा मापदंड
यदि हम वैश्विक राजनीति की गंभीर जांच करें, तो स्पष्ट रूप से दोहरे मापदंड सामने आते हैं। जब 53 मुस्लिम देशों ने इस्लाम को अपने राज्य धर्म के रूप में स्वीकार किया, या 100 से अधिक ईसाई देशों ने ईसाई धर्म को अपनाया, तो कोई विवाद नहीं हुआ। लेकिन जब भारत हिंदू राष्ट्र बनने की बात करता है, तो विरोध क्यों होता है? क्यों अन्य देशों के मानवाधिकारों का मुद्दा उठाने वाले लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों के खिलाफ अमानवीय अत्याचारों पर चुप रहते हैं?
भारत में, सरकार की नीतियां अक्सर अल्पसंख्यकों को फायदा पहुंचाती हैं जबकि हिंदुओं को नज़रअंदाज़ किया जाता है। उदाहरण के लिए, हज सब्सिडी की बात करें। एक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देश में यह असामान्य है कि किसी विशेष धर्म के अनुयायियों को धार्मिक यात्रा के लिए सरकारी सब्सिडी मिले। हिंदू करदाताओं के पैसे से इस सब्सिडी को वित्त पोषित किया गया, जबकि सऊदी अरब जैसे देशों में हिंदू प्रतीकों और पूजा पद्धतियों पर प्रतिबंध है। इसके विपरीत, हिंदू तीर्थयात्राओं के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं है, चाहे वह अमरनाथ यात्रा हो या कुंभ मेला।
आगे का रास्ता: हिंदू राष्ट्र और धर्मनिरपेक्षता
यह धारणा कि एक हिंदू राष्ट्र बनने से भारत की धर्मनिरपेक्षता समाप्त हो जाएगी, पूरी तरह गलत है। वास्तव में, एक हिंदू राष्ट्र बनने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि धर्मांतरण के नाम पर हो रहे छल-बल और अल्पसंख्यकों की तुष्टीकरण की राजनीति खत्म हो। हिंदू वास्तव मैं धर्मनिरपेक्ष होते हैं, क्योंकि वे अनेक आस्थाओं के सहअस्तित्व में विश्वास करते हैं। भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर, देश न केवल हिंदुओं की बल्कि बौद्ध, जैन, और सिख धर्मों की भी रक्षा करेगा, क्योंकि इनका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हिंदू धर्म से जुड़ा है।
एक हिंदू राष्ट्र समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की दिशा में भी कदम उठाएगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी नागरिकों के लिए समान कानून हो, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। यह उन प्रथाओं को खत्म करेगा जो धार्मिक संघर्षों का कारण बनती हैं, जैसे ज़बरदस्ती धर्मांतरण। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित करेगा कि कानून का शासन कायम हो, जो किसी भी देश के विकास के लिए अत्यावश्यक है।
जागरूकता और एकता की पुकार
हिंदुओं ने लंबे समय तक उन समूहों के प्रयासों को अनदेखा किया है जो भारत की जनसांख्यिकी और सांस्कृतिक ताने-बाने को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। कश्मीरी पंडितों की जबरन निर्वासन की कहानी और कश्मीर में 50,000 मंदिरों के विनाश की घटनाओं पर कोई आवाज नहीं उठी। पिछली सरकारों और वामपंथी बौद्धिकों ने हिंदू धरोहर की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं। यह मोदी सरकार की कोशिशों का परिणाम है कि आज ये सच्चाइयाँ सामने आ रही हैं, जो पहले दबा दी गई थीं।
निष्कर्ष: हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता—एक ही सिक्के के दो पहलू
भारत में धर्मनिरपेक्षता इसलिए जीवित है क्योंकि हिंदुत्व में सहिष्णुता निहित है। हिंदुत्व का अर्थ केवल धार्मिक पहचान से नहीं है, बल्कि यह भारत की प्राचीन विरासत को सुरक्षित रखने और हिंदू धर्म को इसके जन्मस्थान में फलने-फूलने का मौका देने से है। भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में घोषित करना उसी सच्चाई को औपचारिक रूप से मान्यता देना होगा, जो पहले से ही स्पष्ट है—भारत हिंदुओं का घर है, एक ऐसा देश जहां वे हजारों वर्षों से निवास करते आ रहे हैं।
हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक हिंदू बहुसंख्या है, तब तक भारत धर्मनिरपेक्ष रहेगा। भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में मान्यता देना इसका मतलब होगा कि भारत अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करेगा।
प्रासंगिक उदाहरण, केस स्टडीज और आगे की राह
- ऐतिहासिक संदर्भ: धार्मिक सहिष्णुता और हिंदू संस्कृति का संरक्षण
उदाहरण: भारत का पारसी और यहूदी समुदायों के प्रति व्यवहार भारत की धार्मिक सहिष्णुता का सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि दुनिया भर में पारसी और यहूदी जहाँ अत्याचारों का सामना कर रहे थे, वहीं भारत ने उन्हें शरण दी। पारसियों को 8वीं शताब्दी में, और यहूदियों को 2000 साल पहले भारत में शरण मिली, जहाँ वे शांति से रहने लगे और इस देश के विकास में योगदान दिया। ये समुदाय आज भी भारत में फल-फूल रहे हैं, बिना किसी डर के अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन कर रहे हैं।
केस स्टडी: तटीय केरल में यहूदियों का बसना केरल के कोचीन में यहूदी समुदाय का बसना इस बात का प्रमाण है कि भारत ने हमेशा शरणार्थियों को सम्मान के साथ जगह दी है। भारत में यहूदी समुदाय का 1,800 साल पुराना इतिहास है, जहाँ उन्होंने न केवल अपनी धार्मिक आस्थाओं को बनाए रखा, बल्कि भारतीय समाज के साथ सह-अस्तित्व में भी योगदान दिया।
निष्कर्ष: यह उदाहरण इस बात को दर्शाता है कि यदि भारत एक हिंदू राष्ट्र बनता है, तो भी इसकी ऐतिहासिक सहिष्णुता और विविधता का सम्मान बना रहेगा। भारत में हमेशा से धार्मिक विविधता को अपनाया गया है, और हिंदू राष्ट्र बनने से यह परंपरा और भी मजबूत होगी। - अन्य राष्ट्रों का दृष्टिकोण: राज्य धर्म और धार्मिक स्वतंत्रता
उदाहरण: मुस्लिम-बहुल देशों में इस्लाम का राज्य धर्म होना मुस्लिम-बहुल देशों जैसे सऊदी अरब, पाकिस्तान, और अन्य 27 देशों ने इस्लाम को अपना राज्य धर्म घोषित किया है। इसके बावजूद, इनमें से कई देश अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की सीमित डिग्री प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब में गैर-मुस्लिम धार्मिक प्रतीकों और पूजा स्थलों पर प्रतिबंध है, फिर भी भारत में सऊदी अरब की धार्मिक शिक्षाएं और धन प्रवाह जारी रहता है।
केस स्टडी: सऊदी अरब और हज सब्सिडी भारत में हज सब्सिडी का एक उल्लेखनीय मामला देखा गया, जहाँ हिंदू करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल भारतीय मुस्लिमों को हज यात्रा कराने में किया गया, जबकि सऊदी अरब में हिंदू प्रतीकों पर प्रतिबंध है और वहाँ मंदिर निर्माण भी अवैध है। भारत ने 2000 से अब तक 1.5 मिलियन से अधिक भारतीय मुस्लिमों को हज यात्रा के लिए सहायता दी थी। हालांकि, भारत का सर्वोच्च न्यायालय ने 2012 में इस सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का निर्देश दिया था।
निष्कर्ष: यह दिखाता है कि यदि अन्य देश धर्म को राज्य स्तर पर महत्व दे सकते हैं, तो भारत को भी अपनी हिंदू पहचान के साथ गर्वित होना चाहिए। इसके बावजूद भारत की धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चित करेगी कि अल्पसंख्यक धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लें। - भारत में अल्पसंख्यकों का योगदान और सह-अस्तित्व
उदाहरण: पारसी और जैन समुदायों का विकास पारसी और जैन जैसे अल्पसंख्यक समुदाय भारत में बहुत छोटे होने के बावजूद, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। टाटा समूह, जो पारसी समुदाय से है, भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। जैन समुदाय भी भारत के सबसे धनी और शिक्षित समुदायों में से एक है और उनका शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व देश की सहिष्णुता का प्रतीक है।
केस स्टडी: बौद्ध और सिख धर्म का विकास बौद्ध धर्म और सिख धर्म, हिंदू धर्म की ही शाखाएँ हैं, और इन धर्मों ने भारत में स्वतंत्र रूप से विकास किया है। भारत ने न केवल इन धर्मों को जन्म दिया, बल्कि उनकी वैश्विक मान्यता और प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। धर्मों के इस सह-अस्तित्व ने भारत को एक अनूठा धार्मिक और सांस्कृतिक समागम बनाया है।
निष्कर्ष: हिंदू राष्ट्र बनने से भारत में अन्य धर्मों का स्थान और मजबूत होगा, क्योंकि हिंदू धर्म स्वाभाविक रूप से सहिष्णु और विविधता को स्वीकार करने वाला है। - हिंदू संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता
उदाहरण: कश्मीरी पंडितों का विस्थापन और मंदिरों का विनाश 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों को उनके ही घर से निष्कासित कर दिया गया और लगभग 50,000 से अधिक मंदिरों को या तो नष्ट कर दिया गया या बंद कर दिया गया। यह हिंदू समाज पर अत्याचार का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसे वर्षों तक नज़रअंदाज़ किया गया। केंद्र सरकार के तहत कश्मीरी पंडितों की वापसी और मंदिरों के पुनर्निर्माण की योजनाएं अब शुरू हुई हैं, लेकिन इन घटनाओं ने स्पष्ट किया कि हिंदू संस्कृति और धार्मिक स्थलों की रक्षा की आवश्यकता कितनी अधिक है।
केस स्टडी: मंदिरों का सरकारी नियंत्रण भारत में सैकड़ों हिंदू मंदिर राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित हैं, जबकि मस्जिद और चर्च पूरी तरह से स्वायत्त हैं। मंदिरों की संपत्ति का उपयोग अक्सर गैर-धार्मिक कार्यों में किया जाता है, जिससे हिंदू मंदिरों की स्वायत्तता और धर्मस्थलों की पवित्रता खतरे में पड़ जाती है।
निष्कर्ष: हिंदू राष्ट्र बनने से मंदिरों की स्वायत्तता और उनके संरक्षण को प्राथमिकता दी जाएगी, और इससे धार्मिक धरोहर सुरक्षित रह सकेगी।
आगे की राह: हिंदू राष्ट्र की दिशा में क्या कदम उठाने चाहिए?
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का कार्यान्वयन: एक हिंदू राष्ट्र में समान नागरिक संहिता लागू करना आवश्यक होगा, जिससे सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वे किसी भी धर्म का पालन करते हों। यह अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले धार्मिक-आधारित भेदभाव को खत्म करेगा।
धर्मांतरण पर सख्त नियंत्रण: धोखे या बलपूर्वक धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए एक मजबूत कानून बनाना चाहिए, जिससे धार्मिक शांति बनी रहे और किसी भी धर्म के अनुयायी सुरक्षित रूप से अपनी आस्था का पालन कर सकें।
मंदिरों की स्वायत्तता बहाल करना: हिंदू मंदिरों का सरकारी नियंत्रण समाप्त करके उन्हें स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि उनकी संपत्ति और धार्मिक कार्य स्वतंत्र रूप से संचालित किए जा सकें।
धर्मनिरपेक्षता की वास्तविक परिभाषा को स्थापित करना: भारत की धर्मनिरपेक्षता की नींव हिंदू संस्कृति की सहिष्णुता पर आधारित है। इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए और भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में देखा जाना चाहिए, जो सभी धर्मों का सम्मान करता है।
शिक्षा प्रणाली में हिंदू संस्कृति का समावेश: देश के शिक्षा पाठ्यक्रम में हिंदू इतिहास और संस्कृति को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहे और सांस्कृतिक गर्व विकसित हो।
निष्कर्ष
भारत का हिंदू राष्ट्र बनना एक स्वाभाविक कदम होगा जो उसकी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करेगा। यह हिंदू धर्म की सहिष्णुता और विविधता का प्रतीक होगा, जहाँ सभी धर्मों के अनुयायी स्वतंत्र रूप से अपनी आस्थाओं का पालन कर सकेंगे। हिंदू राष्ट्र न केवल भारत की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करेगा, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर एक सशक्त और संप्रभु राष्ट्र के रूप में भी स्थापित करेगा