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नौकरशाही, भ्रष्टाचार और जनता की ज़िम्मेदारी

भारत की बदकिस्मती: नौकरशाही, भ्रष्टाचार और जनता की ज़िम्मेदारी

भारत की सबसे बड़ी बदकिस्मती यही रही है कि नौकरशाही और कानून पहले खुलेआम बिकते थे, और आज भी, भले ही छुपे रूप में, वही खेल जारी है। एक दशक पहले जो भ्रष्टाचार खुलकर किया जाता था, वह आज सतह के नीचे छिपकर किया जा रहा है।

वर्तमान सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद, नौकरशाही और बड़े पैसेवाले खरीदारों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं हो पाया है। यह केवल एक प्रशासनिक समस्या नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई शक्तियाँ काम कर रही हैं, जो सत्ता और भ्रष्ट तंत्र को बचाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं।

भ्रष्टाचार की जड़ें: न्यायपालिका और नौकरशाही में पुरानी व्यवस्था

इसकी एक मुख्य वजह यह है कि ऊँची अदालतों और नौकरशाही में अब भी वे लोग भरे पड़े हैं, जो पुराने शासन के दौरान विशेष लाभ उठाते थे। ये लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं और नई सरकार को सहयोग देने के बजाय, उसके मार्ग में बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं।

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की सरकार की कोशिशों से इनकी अतिरिक्त आय खत्म हो गई है। जहाँ पहले घूसखोरी और अनुचित लाभ लेना आम था, वहीं अब सख्ती बढ़ने से इनकी कमाई पर असर पड़ा है। परिणामस्वरूप, वे खुलेआम सरकार का विरोध कर रहे हैं और देशभर में एक ऐसा नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे जनता को गुमराह किया जा सके।

घूस देकर काम करवाने की प्रवृत्ति केवल नौकरशाहों तक सीमित नहीं रही, बल्कि आम जनता भी इसमें शामिल हो चुकी है। लोग जल्द से जल्द लाभ कमाने और कानून को धता बताने के लिए स्वयं भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में भी लूट-खसोट जारी है।

यही वजह है कि आज कई प्रभावित लोग सरकार से इसलिए नाराज़ नहीं हैं कि वह गलत कर रही है, बल्कि इसलिए कि उसकी नीतियों ने उनकी गैर-कानूनी आमदनी को बंद कर दिया है। अब जब उनकी अवैध रोजी-रोटी पर असर पड़ा है, तो वे सभी चोर एकजुट होकर ईमानदार चौकीदार को ही “चोर” बताने की कोशिश कर रहे हैं।

जनता की मानसिकता और सतही समझ

अगर गहराई से अध्ययन किया जाए, तो स्पष्ट हो जाता है कि यह पूरा षड्यंत्र केवल सत्ता विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भ्रष्ट व्यवस्था को बचाने की कोशिश है।

लेकिन समस्या यह है कि आम लोग इतनी गहराई में जाकर चीज़ों को नहीं समझते। वे केवल वही देखते हैं जो उनके सामने पेश किया जाता है, या फिर जो उनके निजी जीवन में घटित हो रहा होता है।

यही कारण है कि लोगों की सोच को प्रभावित करने के लिए मीडिया, अफवाहों और गलत जानकारी का इस्तेमाल किया जाता है। जनता को केवल तत्कालीन परिणामों से मतलब होता है, दीर्घकालिक सुधारों की प्रक्रिया को समझना उनके लिए कठिन होता है।

सरकार अकेले क्या कर सकती है?

सरकार की मंशा चाहे जितनी भी अच्छी हो, लेकिन वह अकेले देश को सुधार नहीं सकती। उसके पास शक्ति और संसाधन तो हैं, लेकिन उसे सभी राज्य सरकारों, न्यायपालिका, नौकरशाही और जनता के संपूर्ण समर्थन की आवश्यकता है।

गलतियाँ निकालकर आलोचना करने से बेहतर है कि हम स्वयं भी अपने कर्तव्यों को निभाएँ। यह सोचना कि केवल सरकार को ही सब कुछ करना चाहिए, एक बड़ी भूल है। इसके बजाय, हमें सरकार के प्रयासों को समर्थन देना चाहिए और एक ज़िम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए।

अगर हम सभी अपनी ज़िम्मेदारियाँ ईमानदारी, समझदारी और उत्तरदायित्व के साथ निभाएँ, तो हर समस्या का समाधान आसानी से निकल सकता है। जनता को जागरूक करना होगा, उन्हें समझाना होगा कि केवल सरकार को दोष देने से कुछ नहीं होगा। जब तक लोग स्वयं अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे और सही मार्ग पर नहीं चलेंगे, तब तक कोई भी सरकार देश को पूरी तरह भ्रष्टाचार-मुक्त नहीं बना सकती।

साफसफाई में समय लगेगा, धैर्य रखना होगा

जो अव्यवस्था पिछले सात दशकों में खड़ी हुई है, उसे पूरी तरह साफ करने में समय लगेगा। यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें जनता का सहयोग, धैर्य और प्रतिबद्धता आवश्यक है।

विभाजन के बाद से अब तक देश में जो गंदगी जमा हुई है, उसे एक झटके में मिटाना असंभव है। इसलिए, जो लोग यह सोचते हैं कि बदलाव तुरंत आ जाना चाहिए, उन्हें यह समझना होगा कि सफाई में समय लगता है।

अगर हम सभी मिलकर सरकार के प्रयासों को समर्थन दें, अपने कर्तव्यों को समझें और धैर्यपूर्वक इस बदलाव की प्रक्रिया का हिस्सा बनें, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक सशक्त, आत्मनिर्भर और भ्रष्टाचार-मुक्त राष्ट्र बनकर उभरेगा।

बदलाव हमसे शुरू होता है

सरकार की भूमिका अपनी जगह पर है, लेकिन असली बदलाव जनता के सोचने और कार्य करने के तरीके में आना चाहिए। हमें खुद से पूछना चाहिए – हम क्या कर रहे हैं? क्या हम खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं दे रहे? क्या हम सरकार का साथ दे रहे हैं या सिर्फ आलोचना कर रहे हैं?

बदलाव कभी भी केवल सत्ता परिवर्तन से नहीं आता, बल्कि यह नागरिकों की मानसिकता और कार्यों से आता है। इसलिए, अपने कर्तव्यों को समझें, ज़िम्मेदारी से कार्य करें और भारत को बेहतर बनाने में अपना योगदान दें।

“आओ, एकजुट हों और राष्ट्र के सशक्तिकरण में अपनी भूमिका निभाएँ!”

जय भारत! जय हिन्द!

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