राष्ट्र की पुकार
- आज भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है — जहाँ सत्य, धर्म और संस्कृति पर एक साथ अनेक दिशाओं से आक्रमण हो रहे हैं।
- राजनीतिक द्वेष, वैचारिक भ्रम और विदेशी षड्यंत्र हमारी राष्ट्रीय चेतना को धीरे-धीरे कमजोर कर रहे हैं।
- बहुजन समाज, आंबेडकरवादी, जय भीम समर्थक और वामपंथी तबकों में फूट डालने के प्रयास चल रहे हैं।
- सोशल मीडिया को इस विभाजन को और गहराने के औज़ार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
- मोदी सरकार, आरएसएस और सनातन धर्म पर हो रहे हमले दरअसल राष्ट्र की आत्मा पर हमले हैं।
- अब यह समझना आवश्यक है कि यह संघर्ष केवल सत्ता या विचारधारा का नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न है।
1. समाज में बढ़ता भ्रम और आत्मविस्मृति
- भारत का सबसे बड़ा संकट बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक है — हम स्वयं अपने शत्रु बनते जा रहे हैं।
- शिक्षित वर्ग का एक हिस्सा तथाकथित आधुनिकता के नाम पर अपनी जड़ों से कटता जा रहा है।
- सोशल मीडिया पर झूठे नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं कि मोदी सरकार और सनातन विचारधारा के विरोधी हैं।
- यह प्रचार असली शत्रुओं की पहचान को धुंधला कर देता है, और हम आपस में ही लड़ने लगते हैं।
वास्तव में यह एक योजनाबद्ध वैचारिक आक्रमण है, जो भारत को भीतर से कमज़ोर करने के लिए रचा गया है।
2. राजनीतिक स्वार्थ का खेल
- आज कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जातीय और सांप्रदायिक विभाजनों को अपनी मुख्य राजनीतिक रणनीति बना लिया है।
- “सामाजिक न्याय” के नाम पर समाज को वर्गों में बाँटने का खेल चल रहा है।
- हिंदू समाज की एकता को तोड़ा जा रहा है ताकि भारत आत्मरक्षा के सामूहिक भाव से दूर रहे।
- इन विरोधी दलों को हिन्दू समाज की समृद्धि से नहीं, बल्कि उसके विभाजन से लाभ मिलता है।
इन शक्तियों का उद्देश्य केवल नेतृत्व बदलना नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति और आत्मबोध को नष्ट करना है।
3. इतिहास का चेतावनीपूर्ण सबक
- सन् 1947 का विभाजन आज भी हमारे लिए एक ज्वलंत चेतावनी है।
उस समय भी समाज टुकड़ों में बँटा था — और परिणाम हुआ मातृभूमि का विभाजन। - पाकिस्तान में रह गए हिंदुओं को या तो धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया या देश छोड़ना पड़ा।
- महिलाओं के अपमान, बच्चों के उत्पीड़न और धार्मिक अत्याचार की घटनाएँ उस पीड़ा की साक्षी हैं।
- आज वही एजेंडा भारत के भीतर विचारधाराओं और मीडिया के माध्यम से संचालित किया जा रहा है।
- अगर हमने इसे समय रहते नहीं पहचाना, तो आने वाली पीढ़ियाँ वही दर्द झेलेंगी जो विभाजन के समय हमारे पूर्वजों ने झेला था।
4. हिन्दू समाज की सबसे बड़ी भूल
हमने अपनी शक्ति पहचानने के बजाय जातीय और संप्रदायिक दीवारें खड़ी कर लीं।
यह किसी एक वर्ग की गलती नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक आत्मविस्मृति का परिणाम है।
- ऊँच-नीच की बहसों ने हमारी संयुक्त विरासत को कमजोर किया।
- विवेकानंद, तुलसीदास, कबीर और डॉ. आंबेडकर — इन सबका संदेश एक ही था: आत्मगौरव, विभाजन नहीं।
- यदि सनातन संस्कृति की जड़ों में हमारा विश्वास टूटता है, तो कोई भी व्यवस्था हमें बचा नहीं सकती।
सच्ची समानता और न्याय हमारी वैदिक परंपरा और धर्मनिष्ठ जीवन शैली में ही निहित हैं — न कि विदेशी विचारधाराओं में।
5. भारत माता की रक्षा का एकमात्र मार्ग
आज भारत के अस्तित्व की रक्षा के लिए एक सशक्त राष्ट्रवादी नेतृत्व आवश्यक है।
आतंकवाद, वामपंथी वैचारिक प्रदूषण, आर्थिक अस्थिरता और धर्मांतरण जैसे संकटों के बीच केवल एक नेतृत्व ने भारत को दिशा दी है —
- मोदी सरकार ने भारत को आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और वैश्विक सम्मान के मार्ग पर अग्रसर किया है।
- इस सरकार ने हिन्दू समाज, सनातन धर्म और राष्ट्रवाद को जो वैचारिक मज़बूती दी है, वह अभूतपूर्व है।
- यही सरकार भारत माता, संस्कृति और सनातन परंपरा की रक्षा की एकमात्र गारंटी है।
- अगर हमने अभी निर्णायक कदम नहीं उठाया और इस सरकार का समर्थन नहीं किया, तो भविष्य में हमारे पास न नेतृत्व रहेगा, न पहचान।
भारत माता की रक्षा के लिए अब कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।
6. समय की तात्कालिकता
- यह संघर्ष भविष्य के लिए नहीं, वर्तमान की सुरक्षा के लिए है।
- हर दिन का विलंब हमारे अस्तित्व के लिए घातक हो सकता है।
- विरोधी शक्तियाँ पहले से संगठित हैं, जबकि राष्ट्रभक्त समाज अभी भी असमंजस में है।
- सोचने का समय समाप्त हो चुका है; अब केवल कार्य, समर्पण और संगठन का समय है।
- जो समाज इतिहास की चेतावनी को अनसुना करता है, वह अपने भविष्य का विनाश स्वयं करता है।
हमें व्यक्तिगत विचारों और दलगत मतभेदों से ऊपर उठना होगा और यह स्वीकार करना होगा कि भारत की सुरक्षा केवल एकता और दृढ़ नेतृत्व पर निर्भर है।
7. आत्मगौरव और एकता का संकल्प
हर भारतीय को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह किसी भी राजनीतिक प्रचार के प्रभाव में नहीं आएगा।
- हमारी जड़ एक है — सनातन संस्कृति और भारत माता।
- चाहे बहुजन हों या सवर्ण, दक्षिण भारत का हों या उत्तर भारत का — हम सब एक हैं।
- हमें अपने महापुरुषों की विरासत का सम्मान करना होगा, चाहे वे किसी भी काल या पंथ से जुड़े हों।
- यह एकता केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पुनरुत्थान की नींव है।
जब भारत अपनी आत्मा के साथ खड़ा होता है, तब पूरी दुनिया उसके सामने नतमस्तक होती है।
8. जागो, एक हो जाओ या इतिहास बन जाओ
भारत आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। आगे केवल दो रास्ते हैं —
- पहला — राष्ट्रवादी और सनातन समर्थक मार्ग, जो आत्मगौरव और सुरक्षा की ओर ले जाता है।
- दूसरा — विभाजन और अराजकता का मार्ग, जो हमें इतिहास के अंधकार में धकेल देगा।
- अब हमें यह स्वीकार करना ही होगा —
- मोदी सरकार और सनातन धर्म के प्रति निष्ठा ही हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी है।
- जो अब भी भ्रम में हैं, वे याद रखें — समय किसी का इंतजार नहीं करता।
- अब कार्य करने, संगठित होने और भारत माता के चरणों में समर्पित होने का समय है।
जागो भारतवासी, जागो सनातनी — यही अस्तित्व की अंतिम पुकार है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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