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भारत का निर्णायक मोड़ ग्राहक नहीं, निर्माता बनें

भारत का निर्णायक मोड़: ग्राहक नहीं, निर्माता बनें और विश्व शक्ति बनें।

भारत का निर्णायक मोड़

भारत का निर्णायक मोड़ आ चुका है। अब तय करना है—हम केवल ग्राहक बनकर रहेंगे या निर्माता बनकर विश्व शक्ति बनेंगे।

🔴 1. रूस: मित्र नहीं, भाईचारा और भरोसे की मिसाल

  • भारत और रूस के संबंध केवल व्यापारिक या राजनयिक नहीं हैं, बल्कि दशकों पुराने रणनीतिक विश्वास पर टिके हैं।
  • चाहे 1971 का बांग्लादेश युद्ध हो, UNSC में कश्मीर पर भारत के पक्ष में वीटो हो, या ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना — रूस ने हर समय भारत का समर्थन किया है।
  • विशेषकर ऑपरेशन सिंदूर जैसे कठिन समय में, जब भारत ने आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की:
  • अमेरिका, यूरोप और अरब देश या तो चुप रहे या “शांति की अपील” करने लगे
  • लेकिन रूस ने न केवल समर्थन किया बल्कि पाकिस्तान और चीन को भी स्पष्ट संदेश दिया

रूस की नीति भारत के प्रति हमेशा रही है:

साझेदारी बराबरी की होनी चाहिए, न कि मालिकगुलाम की।

आज भी जब रूस भारत को Su-57E स्टील्थ फाइटर जेट्स ऑफर कर रहा है, वह केवल बिक्री नहीं कर रहा — वह हमें टेक्नोलॉजी का पूरा मालिक बना रहा है।

  • 100% तकनीकी ट्रांसफर
  • भारत में निर्माण
  • संयुक्त विकास

दीर्घकालिक रणनीतिक सहयोग

⚠️ 2. अमेरिका: रणनीतिक अवसरवादी, नीतिगत अस्थिरता का प्रतीक

अमेरिका अपने मित्रों से भी केवल व्यापार करता है, भावनात्मक या ऐतिहासिक संबंधों से नहीं।

भारत के साथ उसका रुख सदैव रहा है:

  • “हथियार खरीदो, लेकिन हमसे सवाल मत पूछो”
  • “हमारी नीति बदलती रहेगी, तुम्हें बस हमें फॉलो करना होगा”

F-35A जेट के मामले में भी यही हुआ:

  • अमेरिका भारत को हाई-एंड जेट्स देने की बात करता है,
  • लेकिन उसमें न तो तकनीकी ट्रांसफर है,
  • न भारत में निर्माण की अनुमति
  • और न ही रणनीतिक समानता

इसके अलावा:

  • अमेरिका बार-बार चीन को खुश करने के लिए भारत के खिलाफ बयान देता है
  • पाकिस्तान को सैन्य सहायता देना कभी नहीं रोकता
  • कश्मीर मामले में UN में भारत को अकेला छोड़ देता है
  • और सीमा विवादों में निष्पक्षता का ढोंग करता है, लेकिन असल में व्यापार की भाषा बोलता है

🇮🇳 3. भारत: अब सिर्फ हथियारों का खरीदार नहीं, खुद एक निर्माता और निर्यातक बन रहा है

भारत की रक्षा क्षमताएं अब केवल आयात पर निर्भर नहीं हैं:

  • भारत में बने तेजस फाइटर जेट, ब्रह्मोस मिसाइल, पिनाका रॉकेट सिस्टम, आकाश एयर डिफेंस सिस्टम अब विश्वस्तरीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं
  • HAL, DRDO, BEL जैसे संस्थानों ने नवाचार और उत्पादन क्षमता में वैश्विक स्टैंडर्ड बनाए हैं
  • ऑपरेशन सिंदूर और F-35B रडार डिटेक्शन ने दुनिया को दिखा दिया कि
    भारत के पास न केवल हमला करने की क्षमता है, बल्कि तकनीकी रूप से
    दुनिया के सबसे एडवांस्ड फाइटर जेट को पकड़ने की शक्ति भी है।

IACCS (Integrated Air Command & Control System) —

  • यह वही प्रणाली है जिसने ब्रिटिश F-35B जैसे अदृश्य जेट को ट्रैक किया,
  • जबकि अमेरिका खुद इसे “रडार-प्रूफ” कहता है।

🔧 4. आगे का रास्ता: आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक नेतृत्व

भारत को अब तीन स्तरों पर निर्णय लेना है:

(1) रणनीतिक साझेदारी

  • ऐसे देशों के साथ जुड़ना जो भारत को बराबरी का भागीदार मानें (जैसे रूस)
  • ऐसे देश नहीं जो भारत को बस हथियार खरीदने वाला बाजार समझें (जैसे अमेरिका)

(2) तकनीकी संप्रभुता

  • हर रक्षा समझौते में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में उत्पादन की शर्त अनिवार्य की जाए
  • इससे भारत अगली पीढ़ी के हथियारों और रक्षा प्रणालियों का मालिक और निर्माता बन सकेगा

(3) वैश्विक हथियार बाज़ार में नेतृत्व

  • भारत को अपने घरेलू रक्षा उपकरणों का निर्यात बढ़ाना चाहिए
  • पूर्वी एशिया, अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, दक्षिण अमेरिका में भारतीय रक्षा प्रणाली की बड़ी मांग है
  • भारत अमेरिका, रूस और चीन की हथियार मार्केट मोनोपॉली को चुनौती दे सकता है

भारत को तय करना है अपनी रणनीतिक पहचान

भारत अब दोराहे पर खड़ा है

  • एक रास्ता अमेरिका की तरफ जाता है — बिक्री, दबाव, और तकनीकी गुलामी का
  • दूसरा रास्ता रूस की तरफ जाता है — साझेदारी, तकनीकी स्वतंत्रता, और वैश्विक नेतृत्व का

यह सिर्फ जेट खरीदने का मामला नहीं —
यह भारत के राष्ट्रहित, सैन्य भविष्य, और वैश्विक पहचान का सवाल है।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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