🔹 प्रस्तावना – न्याय का उद्देश्य या न्याय का दुरुपयोग?
- भारत की न्याय प्रणाली, जिसे संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है, मूल रूप से देश की सुरक्षा, न्याय, समानता और जनहित की रक्षा के लिए बनी थी।
- लेकिन आज स्थिति इतनी विकृत हो चुकी है कि यही प्रणाली अक्सर आतंकवादियों, जिहादियों, देशद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों के संरक्षण का सबसे बड़ा माध्यम बन गई है।
- सवाल उठता है — क्या हमारी न्याय प्रणाली अब “जनता की सुरक्षा” के बजाय “देशद्रोहियों की सुरक्षा” का साधन बन चुकी है?
🔹1. न्यायपालिका की निष्क्रियता और दोहरे मापदंड
- जब बात देशद्रोहियों, आतंकियों या जिहादियों की आती है, तब अदालतें अचानक “मानवाधिकार” और “संविधान की मर्यादा” की दुहाई देने लगती हैं।
- लेकिन जब निर्दोष हिन्दू युवकों को “लव जिहाद”, “हिन्दू आतंकवाद” या “मॉब लिंचिंग” जैसे झूठे मामलों में फंसाया जाता है, तब यही न्यायालय चुप्पी साध लेते हैं।
- न्याय में वर्षों का विलंब आतंकियों के लिए राहत बन जाता है — चाहे वह अफजल गुरु हो, याकूब मेमन हो या हाल के समय के पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे संगठन।
ये देरी न सिर्फ न्याय की हत्या है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा को घायल करने जैसा है।
🔹2. “सेक्युलरिज़्म” के नाम पर हिंदू समाज से अन्याय
- संविधान की व्याख्या और न्यायालयों के कई निर्णयों में “सेक्युलरिज़्म” का अर्थ पूरी तरह एकतरफा बन गया है।
- हिंदू संस्थानों, मंदिरों और धार्मिक परंपराओं को नियंत्रित करने वाले कानूनों को “सेक्युलर” बताया जाता है, लेकिन मदरसों और चर्चों को “स्वायत्त” छोड़ दिया जाता है।
- मंदिरों की आय पर सरकार का नियंत्रण है, जबकि मस्जिदों और चर्चों की संपत्तियों पर कोई सरकारी निगरानी नहीं।
- न्यायालय ने आज तक यह नहीं पूछा कि “समानता” के नाम पर हिंदू धर्म के साथ ही भेदभाव क्यों?
🔹3. आतंकवादियों और देशद्रोहियों के प्रति नरमी
- कई बार देखा गया है कि जब किसी जिहादी या नक्सली को सजा मिलती है, तो तथाकथित “मानवाधिकार संगठन” और “सेक्युलर लॉबी” अदालत में उसकी पैरवी करने पहुंच जाती है।
- जघन्य अपराधों में लिप्त लोगों के लिए “सहानुभूति” दिखाई जाती है, जबकि सैनिकों या पुलिसकर्मियों के अधिकारों की बात करने वाले देशभक्तों को “कट्टर” कहा जाता है।
- यह वही सोच है जिसने अफजल गुरु और याकूब मेमन जैसे आतंकियों को “शहीद” की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की थी।
🔹4. आंतरिक और बाहरी दबाव – न्यायपालिका की कमजोरी
- आज न्यायपालिका पर विदेशी NGO, वामपंथी लॉबी और पश्चिमी संस्थानों का प्रभाव साफ दिखाई देता है।
- न्यायालयों में बैठे कुछ तथाकथित “उदारवादी” जजों की विचारधारा न्याय से ज्यादा “पॉलिटिक्स” से प्रेरित लगती है।
- यही कारण है कि राष्ट्रहित से जुड़ी नीतियों – जैसे CAA, NRC, UCC, राम मंदिर निर्माण – पर तुरंत याचिकाएं दाखिल होती हैं और वर्षों तक रोक लगाई जाती है।
- ऐसे में यह सवाल वाजिब है कि क्या न्यायपालिका राष्ट्र के साथ है या राष्ट्रविरोधी ताकतों के दबाव में है?
🔹5. भाजपा सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती
- वर्तमान भाजपा सरकार के सामने दो मोर्चे हैं —
1️⃣ बाहरी मोर्चा – चीन, पाकिस्तान, विदेशी लॉबी और पश्चिमी मीडिया।
2️⃣ आंतरिक मोर्चा – विपक्षी ठगबंधन, सेक्युलर मीडिया, और न्यायपालिका में छिपे वामपंथी विचारक। - अगर न्यायालय राष्ट्रवादी नीतियों पर अड़ंगे लगाते रहेंगे, तो सरकार का ध्यान विकास और सुरक्षा जैसे मूल उद्देश्यों से हट जाता है।
- इसलिए आज सबसे बड़ा समर्थन हिन्दू संगठनों, संघटित समाज और धार्मिक संस्थानों से मिलना चाहिए ताकि सरकार आंतरिक बाधाओं को पार कर भारत को शीर्ष-3 वैश्विक महाशक्तियों में शामिल कर सके।
🔹6. धर्मयुद्ध का समय – न्याय बनाम अन्याय
आज की स्थिति महाभारत जैसी है —
- आज का भारत महाभारत के युग जैसा प्रतीत होता है।
- पांडव उन देशभक्तों, राष्ट्रवादियों और धर्म के रक्षकों का प्रतीक हैं जो सत्य और न्याय के मार्ग पर डटे हुए हैं।
- कौरव उस भ्रष्ट, लालची और राष्ट्रविरोधी तंत्र का प्रतीक हैं जो व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वार्थ के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग कर रहा है।
- जैसे पांडवों के मार्गदर्शक भगवान श्रीकृष्ण थे, वैसे ही आज भारत को एक आधुनिक कृष्ण की आवश्यकता है — जो सनातनी शक्तियों को जागृत करे, उन्हें एकजुट करे और धर्म की विजय का मार्ग दिखाए।
- अब समय आ गया है कि “भाईचारे” और “अहिंसा” की उन गलत धारणाओं को त्याग दिया जाए जो केवल नैतिक और विवेकशील लोगों पर लागू होती हैं — न कि उन पर जो छल और विश्वासघात के माध्यम से राष्ट्र को नष्ट करते हैं।
- पांडवों को जागृत होकर इस संघर्ष की तैयारी करनी होगी — साम, दाम, दंड, भेद और यदि आवश्यकता पड़े तो चाल (रणनीति) का भी प्रयोग कर धर्म की अधर्म पर विजय सुनिश्चित करनी होगी।
- अब मंच सज चुका है एक आधुनिक महाभारत के लिए — कौरव तैयार हैं, परंतु पांडवों को अब निर्णायक रूप से आगे बढ़कर धर्म, भारत और सनातनी सभ्यता की रक्षा करनी होगी।
न्याय तभी सच्चा कहलाएगा जब वह राष्ट्र की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए खड़ा हो, न कि शत्रुओं की ढाल बन जाए।
🔹 न्याय को राष्ट्रधर्म से जोड़ने का समय
- भारत की न्याय प्रणाली को पुनर्संतुलित करने का समय आ गया है।
- यह तंत्र जनता की रक्षा के लिए है, न कि अपराधियों और आतंकवादियों के बचाव के लिए।
- न्याय का असली अर्थ केवल संविधान की पंक्तियों में नहीं, बल्कि राष्ट्रहित, धर्म और जनकल्याण में है।
- जब न्याय, नीति और राष्ट्रधर्म एक साथ खड़े होंगे — तभी भारत फिर से “विश्वगुरु” बनने की दिशा में अग्रसर होगा।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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