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बहुसंख्यक

भारत की सभ्यता पर हमला: बहुसंख्यक कैसे अपराधी बनाए गए

बहुसंख्यक अपराधी बनाए गए

1️⃣ स्वतंत्रता के बाद शुरू हुई चुप्पी की साज़िश

1947 केवल सत्ता हस्तांतरण नहीं था, वह नैरेटिव नियंत्रण का प्रारंभ था। सत्ता, शिक्षा, इतिहास और मीडिया—चारों पर एक ही विचारधारा का कब्जा स्थापित किया गया:

  • बहुसंख्यक दोषी
  • अल्पसंख्यक पीड़ित
  • तुष्टिकरण = धर्मनिरपेक्षता
  • राष्ट्रवाद = कट्टरता

जो सभ्यता इस भूमि की आत्मा थी, उसे राजनीतिक खतरा और सामाजिक बोझ बना दिया गया।

  • सनातन, जो विश्वगुरु का आधार था, उसे केवल रिवाज, पूजापाठ और मंदिरों तक सिमित कर दिया गया।

2️⃣ कश्मीर का उदाहरण: सभ्यता का विस्थापन और मौन सत्ता

  • कश्मीरी पंडित हजारों वर्षों से इस भूमि के रक्षक, संस्कृति के संवाहक थे। 1990 में:
  • धमकियाँ,
  • बंदूकें,
  • घोषणाएँ,
  • मस्जिदों से खुले जिहादी आदेश…
  • और पंडित रातों में अपने ही घरों से निकलते मजबूर हुए।
  • यह भारत के इतिहास में सबसे बड़ा सांस्कृतिक नरसंहार था—

पर पूरी व्यवस्था

  • सरकार,
  • मीडिया,
  • न्याय तंत्र,
  • वाम इतिहासकार चुप रहे

हिंदू अपने ही राष्ट्र में शरणार्थी हो गया, और यह अध्याय केवल “पलायन” नाम से किताबों में 2 लाइन में लिखा गया।

3️⃣ नाम, वंश और सत्ता का छल: गांधी और खान के बीच छिपा राजनीतिक खेल

  • स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही “नेहरू-गांधी” को भारत के भविष्य का एकमात्र संरक्षक दिखाया गया।
  • सारी महानता, नेतृत्व, चरित्र, राष्ट्रनिर्माण का श्रेय केवल एक वंश को दे दिया गया।

इससे तीन गंभीर परिणाम हुए:

  • अन्य सभी स्वतंत्रता सेनानी हाशिए पर चले गए।
  • राष्ट्रवाद को वंश विरोध करार दिया गया।
  • इतिहास = दिल्ली के खानदान की जीवनी बन गया।

4️⃣ हिंदू समाज का आंतरिक विघटन: सबसे खतरनाक हथियार

बाहरी आक्रमणों से अधिक खतरनाक रहा हिंदू समाज का अंदरूनी विखंडन:

  • जाति बनाम जाति
  • पंथ बनाम पंथ
  • उत्तर बनाम दक्षिण
  • मराठा बनाम राजपूत
  • मंदिर बनाम मठ
  • यह विखंडन स्वाभाविक नहीं, योजनाबद्ध था।

विभाजन के लिए कथा गढ़ी गई:

  • हिंदू दमनकारी है
  • हिंदू बहुसंख्यक होने के कारण जिम्मेदार है
  • हिंदू को अपराधबोध होना चाहिए

परंतु वही अपराधबोध किसी अन्य धर्म पर लागू नहीं

5️⃣ वाम नैरेटिव और शैक्षणिक कब्ज़ा: सबसे गहरी चोट

  • शिक्षा मंत्रालय, इतिहास विभाग, विश्वविद्यालय—सभी पर वाम-तुष्टिकरण गठजोड़ का आधिकारिक स्वामित्व रहा।

और फिर शुरू हुआ रिकॉर्ड बदलने का अभियान:

  • मंदिर तोड़ने वालों को क्षमा और गौरव
  • मंदिर बनाने वालों को चुप्पी
  • धर्मांतरण करवाने वालों को “मानवता”
  • धर्म बचाने वालों को “कट्टरता”

इसका नतीजा:

  • नई पीढ़ी अपनी ही सभ्यता से अपरिचित।
  • अपने धर्मग्रंथों से दूर,
  • अपने देवों से संकोच,
  • और मूल संस्कारों से अपराधबोध

6️⃣ धर्मनिरपेक्षता: असल रूप में एकतरफा बोझ

  • वास्तविकता यह नहीं कि सभी पर समान नियम लागू हों।

वास्तविकता यह रही:

  • धार्मिक अधिकार = अल्पसंख्यक
  • धार्मिक प्रतिबंध = बहुसंख्यक
  • मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण,
  • हिंदू संस्थाओं पर प्रतिबंध,
  • पर चर्च और मस्जिद स्वतंत्र, विदेशी फंड से समृद्ध।

धर्मनिरपेक्षता यदि संतुलन होती, तो बहुसंख्यक अपने ही धर्म में प्रतिबंधग्रस्त न होते।

7️⃣ मौन बहुसंख्यक: सबसे गंभीर चेतावनी

  • समस्या जिहादी या मिशनरी की नहीं,
  • समस्या मौन बहुसंख्यक मनोविज्ञान की है।

इतिहास में हर आक्रमण पर—

  • मुसलमान संगठित
  • मिशनरी संगठित
  • वामपंथ संगठित
  • सत्ता-वंश संगठित

परंतु हिंदू:

  • या तो बंटा हुआ,
  • या विमर्श से बाहर,
  • या अपने ही धर्म की आलोचना में व्यस्त।

8️⃣ अब सवाल यह नहीं कि नुकसान कितना हुआसवाल यह है कि जागरण कब होगा?

सभ्यता वही टिकती है जो:

  • अपने नायकों को पहचानती है,
  • अपने इतिहास को संरक्षित करती है,
  • और अपने धर्म को अपराधबोध से मुक्त करती है।

भारत को अब निर्णय करना ही होगा:

  • क्या सनातन केवल त्योहारों का धर्म रहेगा?
  • या यह राष्ट्र-चेतना का स्तंभ बनेगा?

9️⃣ सनातन बचा, तभी भारत बचेगा

  • यह केवल राजनीति नहीं,
  • यह सभ्यता का संघर्ष है।
  • इतिहास को न केवल सुधारा जाना है,
  • उसे पुनर्स्थापित, पुनर्प्रकाशित और पुनर्जीवित करना है।
  • झूठे नैरेटिवों का अंत,
  • और असली इतिहास का पुनर्जन्म—

यही भारत की अगली शताब्दी का धर्मयुद्ध है।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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