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स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था

भारत की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था: सेवा से मुनाफ़ाखोरी तक का पतन

भारत की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था

  • भारत की स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था ने हमेशा समाज में सेवा और ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया है। प्राचीन काल में वैद्य, ऋषि और गुरु समाज में अत्यंत आदरणीय माने जाते थे, क्योंकि उनका जीवन उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं था, बल्कि लोगों की सेवा करना और ज्ञान का प्रसार करना था। उनकी सोच ने समाज को सुदृढ़ और शिक्षित बनाया, और यह परंपरा आज भी भारतीय संस्कृति में एक आदर्श के रूप में जीवित है।
  • लेकिन दुर्भाग्य से आज ये दोनों क्षेत्र सबसे अधिक भ्रष्टाचार, व्यवसायिकता और लालच से प्रभावित हो चुके हैं।
  • आज डॉक्टर और शिक्षक सेवा भाव से नहीं, बल्कि धन कमाने की मशीन की तरह काम करने लगे हैं। जहाँ अस्पतालों में मरीज की जेब काटने का खेल चल रहा है, वहीं स्कूल और कोचिंग सेंटर माता-पिता की मेहनत की कमाई लूट रहे हैं।

🏥 डॉक्टर–केमिस्ट–फार्मा–डायग्नॉस्टिक गठजोड़

आज स्वास्थ्य सेवा एक सेवा नहीं, बल्कि एक विशाल इंडस्ट्री बन चुकी है। इसमें चार बड़े खिलाड़ी शामिल हैं – डॉक्टर, दवा विक्रेता (केमिस्ट), फार्मा कंपनियाँ और डायग्नॉस्टिक लैब्स।

1️⃣ डॉक्टर: सेवा से धंधा तक

  • डॉक्टर अब मरीज की बीमारी से ज़्यादा उसकी पेमेंट कैपेसिटी देखते हैं।
  • अस्पतालों में डॉक्टरों पर दबाव डाला जाता है कि वे ज़्यादा टेस्ट और ऑपरेशन लिखें।
  • कई डॉक्टर फार्मा कंपनियों से कमीशन लेते हैं और वही महँगी दवाएँ लिखते हैं।
  • जो ईमानदारी से इलाज करता है, उसे अक्सर सिस्टम से बाहर कर दिया जाता है।

2️⃣ केमिस्ट: दवाइयों का धंधा

  • दवा दुकानदारों को कंपनियाँ विशेष मार्जिन देती हैं ताकि वे महँगी दवाएँ बेचें।
  • मरीज को वही दवा दी जाती है जो सबसे ज़्यादा लाभदायक हो, न कि जो सस्ती और असरदार हो।
  • जनरिक मेडिसिन की उपलब्धता के बावजूद उसका प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता क्योंकि उसमें कमीशन कम है।

3️⃣ फार्मा कंपनियाँ: मुनाफ़े का साम्राज्य

  • फार्मा कंपनियाँ करोड़ों रुपये सिर्फ़ डॉक्टरों और अस्पतालों को लुभाने और खरीदने पर खर्च करती हैं।
  • उन्हें विदेशी टूर, कार, प्रॉपर्टी और नकद इनाम दिए जाते हैं ताकि वे उनकी महंगी दवा लिखें।
  • कोविड काल में उजागर हुआ कि कई कंपनियों ने करोड़ों रुपये सिर्फ़ “डोलो” और कुछ अन्य टैबलेट लिखवाने पर खर्च किए।

4️⃣ डायग्नॉस्टिक लैब्स: टेस्ट का व्यापार

  • डॉक्टर कई बार अनावश्यक MRI, CT स्कैन और ब्लड टेस्ट लिखते हैं।
  • हर टेस्ट का 40-50% कमीशन डॉक्टर की जेब में जाता है।
  • पूरे देश में 2 लाख से अधिक लैब्स हैं, लेकिन उनमें से केवल 1,000 ही प्रमाणित हैं। बाक़ी सब मुनाफ़े की फैक्ट्रियाँ हैं।

👉 नतीजा यह है कि मरीज का इलाज बीमारी से नहीं, बल्कि उसकी जेब की गहराई से तय होता है।

🎓 शिक्षा: स्कूल और कोचिंग माफ़िया

शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए चरित्र निर्माण, ज्ञान और संस्कार। लेकिन आज यह सबसे बड़ा कॉर्पोरेट बिज़नेस बन चुका है।

1️⃣ निजी स्कूलों का धंधा

  • बड़े निजी स्कूलों में सालाना फ़ीस लाखों रुपये तक पहुँच चुकी है।
  • बच्चों को एयर-कंडीशंड क्लासरूम, इंटरनेशनल करिकुलम और ब्रांडेड इमेज दिखाकर माता-पिता को फँसाया जाता है।
  • यूनिफॉर्म, किताबें और स्टेशनरी केवल चुनिंदा दुकानों से खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि स्कूल को भारी कमीशन मिले।
  • शिक्षा की गुणवत्ता की जगह यहाँ मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर ज़्यादा ध्यान है।

2️⃣ ट्यूशन और कोचिंग सेंटरों का साम्राज्य

  • स्कूलों में पढ़ाई नाम मात्र की होती है, ताकि बच्चे मजबूर होकर ट्यूशन और कोचिंग लें।
  • कोचिंग इंडस्ट्री आज हज़ारों करोड़ रुपये का हो चुका है।
  • कोटा, दिल्ली, पटना जैसे शहर शिक्षा से ज़्यादा कोचिंग फैक्ट्री के लिए बदनाम हैं।
  • बच्चों पर अनावश्यक दबाव, अवसाद और आत्महत्या की घटनाएँ इसी माफ़िया का नतीजा हैं।

👉 शिक्षा अब ज्ञान और संस्कार का मंदिर नहीं, बल्कि डिग्री और एग्ज़ाम पास कराने की फ़ैक्ट्री बन गई है।

🪙 समाज की सबसे बड़ी बीमारी: लालच और जल्दी अमीर बनने की चाह

  • इन सबका मूल कारण है हमारी समाजिक मानसिकता
  • हर कोई कम मेहनत और कम ईमानदारी से जल्दी अमीर बनने की चाह रखता है।
  • डॉक्टर, शिक्षक, व्यापारी, अफसर – सभी कहीं न कहीं नैतिकता से समझौता कर चुके हैं।
  • समाज में दिखावा और पैसा, सेवा और सत्य से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बन गया है।

👉 यह मानसिकता अगर नहीं बदली तो भारत की नई पीढ़ी को एक ऐसा देश मिलेगा जहाँ अस्पताल और स्कूल शोषण के अड्डे होंगे, सेवा और विद्या के नहीं।

✍️ निष्कर्ष और समाधान

  • सरकार को स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में कड़े सुधार लागू करने होंगे।
  • जनरिक दवाओं और सरकारी अस्पतालों को मज़बूत करना होगा।
  • शिक्षा क्षेत्र में फ़ीस पर सीमा, पारदर्शिता और गुणवत्ता अनिवार्य करनी होगी।
  • समाज को भी आत्मचिंतन करना होगा और सेवा तथा नैतिकता को प्राथमिकता देनी होगी।

👉 अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दशकों में भारत एक व्यापारिक मंडी बन जाएगा जहाँ इंसान और इंसानियत बिकेगी, और स्वास्थ्य व शिक्षा केवल अमीरों की पहुँच तक सीमित रह जाएँगे।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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