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भारत को निर्णय लेना होगा: सैनिकों को बचाएँ या आतंकियों को?

भारत को निर्णय लेना होगा: सैनिकों को बचाएँ या आतंकियों को?

न्यायिक दखल और राजनीतिक पतन से बना राष्ट्रीय संकट

  • दशकों से भारत के बहादुर सैनिक आतंकवादियों, घुसपैठियों और कट्टरपंथी भीड़ से लड़ते हुए अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं।
  • लेकिन उनकी बहादुरी का सम्मान करने के बजाय, उन्हें वर्षों तक कोर्ट-कचहरी, FIR, पूछताछ, NGO-प्रायोजित PIL और मीडिया-ट्रायल का सामना करना पड़ता है
  • जबकि वहीं आतंकवादी और पत्थरबाज़ “मानवाधिकार” के नाम पर विशेष सहानुभूति पाते हैं।
  • यह सिर्फ सेना बनाम आतंकवादी का युद्ध नहीं रहा,
    अब यह सेना बनाम सुप्रीम कोर्ट बनाम मानवाधिकार कार्यकर्ता बन गया है।

भारत को निर्णय लेना ही होगा — हम किसके साथ हैं?

🟥 SECTION 1 — ज़मीनी हकीकत: सैनिक आतंकियों से लड़ते हैं, लेकिन शक सैनिकों पर होता है

  • सैनिक रोज़ाना लड़ते हैं:
  • गोलियों और ग्रेनेड से
  • भीड़ में छिपे आतंकी नेटवर्क से
  • कट्टरपंथी भीड़ और उकसाने वालों से
  • विदेशी फंडेड मॉड्यूल्स से
  • सीमा पार लॉन्चिंग पैड्स से

और जब वे किसी आतंकी को मार गिराते हैं, तुरंत उनका सामना होता है:

  • FIR
  • कोर्ट सम्मन
  • इंसानियत के नाम पर PIL
  • टीवी डिबेट्स
  • मीडिया ट्रायल
  • सालों की पूछताछ

यह अंतर भारत की सुरक्षा के लिए घातक है।

🟥 SECTION 2 — 2014 से पहले: सैनिक बँधे हाथों से लड़ रहे थे

2014 के पहले स्थिति बेहद दर्दनाक थी:

लड़ाई से पहले अनुमति ज़रूरी

  • आतंकी सामने हो और सैनिक को “अनुमति” चाहिए — यह वास्तविकता थी।

न्यायिक डर

  • हर मुठभेड़ के बाद FIR, कोर्ट, पूछताछ का खतरा।

पुरानी और बेकार उपकरण

  • बुलेटप्रूफ जैकेट तक नहीं थीं। राइफलें पुरानी, संचार साधन विफल।

भ्रष्टाचार ने रक्षा बजट खोखला कर दिया था

  • कमीशन, दलाली, रक्षा सौदों में लूट — पैसा सैनिक तक पहुँच ही नहीं पाता था।

राजनीतिक इच्छाशक्ति शून्य

  • पाकिस्तान को जवाब देने की हिम्मत नहीं। आतंकी हमलों के बाद केवल भाषण।

अनावश्यक मौतें

  • साहस की कमी नहीं थी — सिस्टम ने सैनिकों को धोखा दिया था।

🟥 SECTION 3 — मोदी युग: सैनिकों के हाथ खोले गए, मनोबल शिखर पर

2014 के बाद तस्वीर बदली:

ऑपरेशन की पूरी स्वतंत्रता

  • अब सैनिक को किसी से अनुमति नहीं लेनी। स्थिति देखते ही कार्रवाई कर सकते हैं।

आधुनिक हथियार और उपकरण

  • नई असॉल्ट राइफलें
  • बुलेटप्रूफ जैकेट
  • नाइट विज़न डिवाइस
  • ड्रोन और UAV
  • थर्मल इमेजर
  • मल्टी-मोड कम्युनिकेशन
  • राफेल और अपाचे
  • अत्याधुनिक गोला-बारूद

भारत अब पहली बार विश्व-स्तरीय युद्ध क्षमता से लैस है।

भ्रष्टाचार बंद → रक्षा बजट सैनिकों तक

  • अब पैसा सुरक्षा में लगता है, जेबों में नहीं।

सबसे मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति

  • सर्जिकल स्ट्राइक
  • बालाकोट एयर स्ट्राइक
  • PoK में गुप्त अभियान
  • म्यांमार ऑपरेशन
  • चीन को करारा जवाब
  • आतंकी फंडिंग पर रोक

सैनिकों का मनोबल चरम पर

सैनिक खुलकर कहते हैं:

  • अब सरकार हमारे साथ खड़ी है आतंकियों के साथ नहीं।

🟥 SECTION 4 — फिर भी एक कमजोरी बची है: न्यायिक दखल

  • आज भी सैनिक डरते हैं:
  • कोर्ट सम्मन से
  • सालों तक चलने वाली जांच से
  • एनजीओ और एक्टिविस्टों की PIL से
  • मीडिया ट्रायल से

एक सैनिक को लड़ाई के बीच में लगने लगता है:

❌ “गोली चलाऊँ तो कोर्ट फँसाएगा।”

❌ “गोली न चलाऊँ तो आतंकी मार देगा।”

  • यह स्थिति खतरनाक है — देश की सुरक्षा के लिए भी, सैनिकों के लिए भी।

🟥 SECTION 5 — आतंकवादी इस सिस्टम का फायदा उठाते हैं

आतंकी और उनके नेटवर्क जानते हैं:

  • कौन सा NGO उनका केस लड़ेगा
  • कहाँ PIL दाखिल करनी है
  • फर्जी “फेक एनकाउंटर” कहानी कैसे बनानी है
  • मीडिया में प्रोपेगैंडा कैसे चलाना है
  • कोर्ट में सहानुभूति कैसे पाना है

इससे स्थिति ऐसी बनती है:

l  आतंकियों को मानवाधिकार,

  • सैनिकों को अदालतों की मार।

🟥 SECTION 6 — समाधान: सैनिकों के लिए नया कानूनी ढाँचा

भारत को तुरंत निम्न सुधार लागू करने चाहिए:

1. विशेष सैन्य न्यायालय (Military Combat Courts)

  • तेज़, गोपनीय, पेशेवर — जहाँ युद्ध क्षेत्र के मामलों की सुनवाई हो।

2. आतंक-रोधी ऑपरेशंस के लिए पूर्ण कानूनी सुरक्षा

  • सैनिक पर FIR न हो। उसकी कार्रवाई पर सार्वजनिक ट्रायल न हो।

3. झूठी PIL पर सख्त सजा

  • NGO/एक्टिविस्ट जानबूझकर केस चलाएँ → दंड।

4. ऑपरेशन की गोपनीयता बनी रहे

  • न कोर्ट में खुलासा, न मीडिया में।

5. राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च

  • “मानवाधिकार” आतंकियों के लिए नहीं, सैनिकों और नागरिकों के लिए हों।

🟥 SECTION 7 — एक पूर्व सैनिक का करारा संदेश

एक वेटरन का सवाल देश की आत्मा झकझोर देता है:

  • क्या आपने कभी गोलियाँ झेली हैं?”
  • क्या आपने अपने बेटे को तिरंगे में लौटते देखा है?”
  • क्या आपने फायरिंग के बीच फैसला लिया है?”
  • सैनिक की जगह खुद को रखकर सोचिए क्या यह न्याय है?”

ये सवाल गुस्से से नहीं, बल्कि बलिदान की पीड़ा से आते हैं।

🟥 SECTION 8 — हम लड़ाई में नहीं, पर सैनिकों की रक्षा में हाँ खड़े हो सकते हैं

हमारे कर्तव्य:

  • राष्ट्रीय जागरूकता
  • सैनिकों की कानूनी सुरक्षा की मांग
  • राजनीति से ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा
  • आतंकी-समर्थक नैरेटिव का विरोध
  • सोशल मीडिया पर गलत दुष्प्रचार का जवाब
  • संसद पर दबाव — नियम बदलने के लिए

हमारी एकता ही सैनिकों की शक्ति है। सैनिकों से ही देश सुरक्षित है।

जो राष्ट्र अपने रक्षकों की रक्षा नहीं करता — वह स्वयं बच नहीं सकता

सच्चाई साफ़ है:

  • युद्ध क्षेत्र कोर्ट नहीं होता
  • सैनिक अपराधी नहीं होते
  • आतंकवादी पीड़ित नहीं होते

सैनिक हमारी रक्षा खून-पसीने से करते हैं। हमें उनकी रक्षा आवाज़ और इच्छा-शक्ति से करनी होगी।

l  सैनिक मजबूत → भारत सुरक्षित

  • सैनिक कमजोर → भारत ध्वस्त

अब फैसला भारतीय नागरिकों का है।  

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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