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भारत को सच्ची आज़ादी 1947 से 2014 का सफर

भारत को सच्ची आजादी कब मिली?

भारत की आज़ादी का असली अर्थ

अगर आप किसी आम नागरिक से पूछें, तो जवाब मिलेगा: “1947”। हाँ — 1947 में हमने ब्रिटिश उपनिवेशवाद की बेड़ियाँ तोड़ दीं, जो 200 से अधिक वर्षों तक संगठित लूट, सुनियोजित आर्थिक विनाश और सांस्कृतिक मिटाने की नीतियों से भारत को कमजोर करता रहा।

ब्रिटिश राज केवल एक विदेशी सरकार नहीं था — यह एक सुनियोजित लूट मशीन थी।
हमारे उद्योग तोड़ दिए गए, आत्मनिर्भरता को गुलामी में बदला गया, और भारत की संपत्ति — आज के मूल्य में लगभग 45 ट्रिलियन डॉलर — खींचकर ले जाई गई।
हमारे गुरुकुल और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए, किसानों को गरीबी में धकेल दिया गया, और कारीगरों को भिखारी बना दिया गया।

हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों के रक्त, पसीने और बलिदान से यह संभव हुआ।
भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे वीर सेनानियों से लेकर, अनगिनत अज्ञात ग्रामीण नायक, किसान, मजदूर — सभी ने अपनी जान की परवाह किए बिना आज़ादी की लड़ाई लड़ी।

लेकिन जब वह क्षण आया, सारा श्रेय गांधी–नेहरू जोड़ी के खाते में डाल दिया गया। आज़ादी की कहानी इस तरह लिखी गई कि एक ही परिवार को महिमामंडित किया जाए — और इसने उस राजनीतिक वंशवाद की नींव रख दी जो दशकों तक भारत पर हावी रहा।

पहली बेड़ियाँ — हज़ार साल की गुलामी

हमारा संघर्ष ब्रिटिशों से शुरू नहीं हुआ था।
करीब एक सहस्राब्दी तक, भारत ने मुग़ल और अन्य इस्लामी आक्रमणों का सामना किया। यह केवल सैन्य विजय नहीं थी — यह एक सभ्यता पर हमला था।

  • मंदिर — हमारी संस्कृति का हृदय — हज़ारों की संख्या में तोड़े गए। काशी विश्वनाथ, सोमनाथ और अनगिनत अन्य मंदिर ध्वस्त या अपवित्र किए गए।
  • अपार धन — सोना, हीरे, रत्न, पवित्र ग्रंथ — लूटकर विदेश भेज दिए गए।
  • सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए परंपराओं का मज़ाक उड़ाया गया, त्यौहारों पर रोक लगाई गई, और नालंदा जैसे विद्या केंद्र जला दिए गए।
  • सामाजिक ताना-बाना तोड़ा गया — जबरन धर्मांतरण, जज़िया जैसे भेदभावपूर्ण कर, विदेशी भाषाओं और रीति-रिवाजों का थोपना।

फिर भी, हर युग में प्रतिरोध की ज्वाला जलती रही

  • छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठाओं ने स्वराज्य का निर्माण किया।
  • राजपूत योद्धाओं ने हल्दीघाटी और अनेक मोर्चों पर शौर्य दिखाया।
  • विजयनगर साम्राज्य दक्षिण में हिंदू संस्कृति का गढ़ बना।
  • सिख गुरुओं और खालसा योद्धाओं ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

इन वीरों ने असंभव बलिदानों के बावजूद स्वतंत्र भारत का सपना ज़िंदा रखा

दूसरी बेड़ियाँ — 1947 के बाद की राजनीतिक गुलामी

1947 हमारी स्वतंत्रता की भोर होनी चाहिए थी। लेकिन अगले 65 वर्षों तक हम कांग्रेस शासन मैं  एक अलग तरह की गुलामी में फँसे रहे —

  • लूट और शोषण खत्म नहीं हुआ; बस विदेशी हाथों से घरेलू भ्रष्ट नेताओं के हाथों में चला गया।
  • बोफोर्स, 2G, कोयला घोटाले जैसे मेगा स्कैम ने देश की संपत्ति लूट ली।
  • सनातन धर्म को शिक्षा, मीडिया और नीतियों में हाशिये पर धकेल दिया गया।
  • मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीतिशासन का आधार बन गई — एक वोट-बैंक नीति जिसने राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा बार-बार राजनीति की बलि चढ़ी — चाहे आतंकवाद हो या सीमा पर आक्रमण।
  • धीरे-धीरे इस्लामीकरण का वही ख़तरा फिर से सिर उठाने लगा, जिससे बचने के लिए हमने सदियों तक संघर्ष किया था।

लोगों से कहा गया कि वे आज़ाद हैं — लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता कायम रही। शासक भारतीय कपड़ों में थे, लेकिन सोच और नीति वही थी — जनता को बँटा, निर्भर और दबा हुआ रखना।

सच्ची मुक्ति — 2014

और फिर आया 2014 जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं था — यह सभ्यतागत मोड़ था।

  • दशकों से चल रहे भ्रष्टाचार के नेटवर्क तोड़ दिए गए।
  • पारदर्शी शासन ने चाटुकारिता और भाई-भतीजावाद को पीछे छोड़ा।
  • बुनियादी ढांचे, डिजिटलीकरण और आर्थिक सुधारों ने भारत को वैश्विक शक्ति बनने की राहपर डाल दिया।
  • सनातन धर्म और सांस्कृतिक गौरवको पुनः प्रतिष्ठित किया गया — त्यौहार खुलेआम मनाए गए, विरासत स्थलों का पुनर्निर्माण हुआ, और हमारी परंपराओं को विश्व मंच पर सम्मान मिला।
  • इस्लामीकरण के खतरे को पहचाना गया और उसका सामना किया गया, जिससे भारत की सभ्यतागत पहचान सुरक्षित रही।
  • आत्मनिर्भर भारत, रक्षा आधुनिकीकरण और दृढ़ विदेश नीति ने एक नए शक्तिशाली युग की शुरुआत की।

सदियों बाद, भारत ने एक आत्मविश्वासी, पूर्ण स्वाभिमानी सभ्यताकी तरह व्यवहार करना शुरू किया।

क्यों 2014 असली आज़ादी का वर्ष है

1947: विदेशी हुकूमत से मुक्ति
2014: आंतरिक विश्वासघात से मुक्ति

2014 में भारत ने छुटकारा पाया —

  • राजनीतिक वंशवाद और जागीरदारी राजनीति से।
  • दशकों की लूट और भ्रष्टाचार से।
  • वोट-बैंक तुष्टिकरण से।
  • सभ्यतागत विस्मृति से।
  • धार्मिक गुलामी के खतरे से।

यह वह पल था जब भारत ने अपनी आत्मा को पुनः प्राप्त किया

अब कभी नहीं

भारत अब कभी भी आक्रमणकारियों, विदेशी शासकों या भ्रष्ट वंशों के आगे नहीं झुकेगा।

  • हल्दीघाटी के रण से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन की गलियों तक, मराठा किलों से लेकर 2014 के मतपेटियों तक — यह यात्रा लंबी, रक्तरंजित और अडिग रही है।
  • 2014 सिर्फ चुनाव नहीं था — यह पुनर्जन्म था।

“हम आज़ाद हैं। सच में आज़ाद। और हम फिर कभी गुलाम नहीं बनेंगे।”

🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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