जब एक आतंकवादी को उम्रकैद या फांसी की जगह वीआईपी ट्रीटमेंट मिले, तो सवाल उठना लाज़मी है। मोहम्मद आरिफ का मामला सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि उस सिस्टम की तस्वीर है जहाँ इंसाफ और सहानुभूति के बीच की रेखा धुंधली पड़ जाती है।
लाल किले पर हमला और 24 साल की न्याय प्रक्रिया – इंसाफ या मज़ाक?
वर्ष 2000, दिल्ली: पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर–ए–तैयबा के आतंकियों ने लाल किले में तैनात भारतीय सेना की यूनिट पर हमला किया।
3 जवान शहीद हुए, भारत की अस्मिता को खुली चुनौती मिली।
दिल्ली पुलिस ने मात्र 4 दिन में मास्टरमाइंड मोहम्मद आरिफ उर्फ़ अश्फ़ाक को पकड़ लिया।
लगा कि अब न्याय तेजी से होगा… लेकिन उसके बाद जो हुआ – वो भारत की कमज़ोर, जड़, और आतंकियों को सुरक्षा देने वाली न्याय प्रणाली की सबसे बड़ी पोल है।
24 साल की न्याय प्रक्रिया – एक स्लो मोशन सिनेमा जैसा!
- 2005: ट्रायल कोर्ट ने 5 साल बाद मौत की सजा सुनाई।
- 2007: हाईकोर्ट ने पुष्टि की – 2 साल बाद।
- 2011: सुप्रीम कोर्ट ने समर्थन किया – 4 साल बाद।
- 2012: समीक्षा याचिका खारिज – 1 साल बाद।
- 2014: क्यूरेटिव याचिका खारिज – फिर 2 साल बाद।
- 2022: संविधान पीठ ने 8 साल में समीक्षा फिर खारिज की।
- 2024: राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज की।
और अब भी वो आतंकी ज़िंदा है। पूरे 24 साल हो गए – शहीदों को न्याय नहीं मिला, लेकिन आतंकी VIP सुविधा में ज़िंदा है, टैक्सपेयर्स के पैसे पर।
अब नया एपिसोड – ताहव्वुर राणा की होशियारी!
👉 26/11 मुंबई हमले का आरोपी ताहव्वुर राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित किया जाना है।
पाकिस्तान जाने की बजाय उसने भारत आना चुना।
“भारत आ जाऊँगा तो 20-25 साल आराम से कोर्ट केस चलता रहेगा,
पाकिस्तान जाऊँगा तो ‘अनजान बंदूकधारी’ गोली मार देगा।”
मतलब – उसे मालूम है भारत आतंकियों के लिए ‘सुरक्षित स्वर्ग’ है! क्यों?
यहाँ फांसी कभी समय पर नहीं होती।
25 साल केस चलेगा।
लिबरल वकील बचाने आएंगे।
मानवाधिकार का ढोंग होगा।
जेल में बिरयानी और टेलीविजन मिलेगा।
अब ताहव्वुर और आरिफ को “मानवाधिकार” दिलाने की तैयारी!
👉 कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद, प्रशांत भूषण जैसे “सेक्युलर कानून विशेषज्ञ” अब कहेंगे:
“इतनी देरी हो गई है, इसलिए फांसी की सजा माफ़ होनी चाहिए!”
👉 संविधान के अनुच्छेद 32 का हवाला देकर राहत मांगी जाएगी।
यानि –
जो देश में बम फेंके, जवानों को मारे, आम जनता को मार डाले –
उसे संविधान, वकील और कोर्ट सब मिल जाएंगे।
भारत को इससे क्या सबक लेना चाहिए?
- राष्ट्रद्रोह और आतंकवाद से जुड़े मामलों के लिए Fast Track कोर्ट अनिवार्य करें।
- सभी अपीलों की समयसीमा तय हो – अधिकतम 1 वर्ष।
- सुप्रीम कोर्ट को संवेदनशील मामलों में जल्द निर्णय देना अनिवार्य हो।
- राष्ट्रविरोधी केस में ‘मानवाधिकार‘ का उपयोग न हो – संविधान संशोधन किया जाए।
- जो वकील और नेता आतंकियों की पैरवी करते हैं, उनके विरुद्ध भी राष्ट्रद्रोह की कार्रवाई हो।
देश को शांति चाहिए, कानून का डर चाहिए – इंसाफ नहीं, फ़ॉर्मैलिटी नहीं!
भारत को संविधान की मर्यादा और राष्ट्रहित की रक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा।
वरना – हर ताहव्वुर राणा भारत को आतंक का अड्डा और इंसाफ का मज़ाक समझेगा।
✊ अब जागो भारत, और मांगो – “आतंकियों के लिए नहीं, शहीदों के लिए इंसाफ!”
🇮🇳 भारत माता की जय | 🚩 वंदे मातरम्
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