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लोकतंत्र या ‘न्यायतंत्र’

भारत में लोकतंत्र या ‘न्यायतंत्र’?

जब हर निर्णय कोर्ट ले रही है — तो जनता और सरकार का क्या मतलब रह गया है?

🔹 भूमिका — लोकतंत्र की आत्मा पर खतरा

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है —
जहाँ जनता संविधान की मूल आत्मा है और सरकार उस जनता की प्रतिनिधि।
पर आज स्थिति यह बन गई है कि —

  • “निर्णय सरकार नहीं, अदालत लेती है; नीति जनता नहीं, याचिका तय करती है।”

यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो न केवल शासन को कमजोर कर रही है,
बल्कि जनता के अधिकारों और जनादेश की अवहेलना भी कर रही है।

🔹 हर निर्णय अब अदालतों के हवाले — लोकतंत्र का असंतुलन

नीचे दिए गए कुछ उदाहरण देखें —
जहाँ जनता द्वारा चुनी सरकारों के निर्णय अदालतों द्वारा रोके या पलटे गए:

  • रोहिंग्या भारत में रहेंगे या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • कश्मीर में सेना कौन-सा हथियार इस्तेमाल करेगी (पैलेट गन या कुछ और) — कोर्ट तय करेगी
  • मूर्ति विसर्जन होगा या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • दीपावली पर पटाखे छोड़े जा सकते हैं या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • दही-हांडी की ऊँचाई क्या होगीकोर्ट तय करेगी
  • राममंदिर बनेगा या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • अपराधियों के घर बुलडोजर चलेगा या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • दंगाइयों से नुकसान की वसूली होगी या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • दुकानों पर असली मालिक का नाम लिखा जाएगा या नहीं — कोर्ट तय करेगी
  • ‘SIR’ लागू होगा या नहीं होगा  — कोर्ट तय करेगी

अब सवाल यह है —

  • अगर हर छोटा-बड़ा निर्णय कोर्ट को ही लेना है, तो चुनाव कराने और सरकार चुनने की आवश्यकता क्या है?

🔹 क्यों हर निर्णय सनातन, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति से जुड़ा होता है?

गौर करें,

  • इनमें से अधिकांश निर्णयों का संबंध हिंदू जीवन, परंपरा, आस्था या सुरक्षासे है।
    मंदिर, त्योहार, आरती, दीपावली, दही-हांडी, सेना, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रहित से
  • यानी हर वह विषय जो भारत की मूल आत्मा यानी सनातन धर्म और संस्कृतिसे जुड़ा है।

लेकिन जब बात आती है —

  • जिहादी नेटवर्क्स की फंडिंग,
  • मदरसे में चरमपंथी गतिविधियों की,
  • वामपंथी संगठनों की देशविरोधी भूमिका की,
  • या कांग्रेस नेताओं द्वारा आतंकियों के बचाव की,
  • तो वही अदालतें मौन हो जाती हैं।

यह एक “Selective Activism” है — जहाँ केवल हिन्दू संस्कृति और राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे निशाने पर होते हैं।

🔹 सदियों पुरानी बीमारी — गद्दारों की परंपरा

भारत को जितना नुकसान बाहरी आक्रमणों ने नहीं पहुँचाया, उससे कहीं अधिक नुकसान भीतरी गद्दारों और अवसरवादियों ने किया है।

  • जयचंद ने मुगलों को आमंत्रित किया।
  • मीरजाफर ने अंग्रेज़ों को बंगाल सौंप दिया।
  • नेहरूवादी राजनीति ने स्वतंत्र भारत में उसी गुलामी को नए रूप में कायम रखा।
  • और अब कांग्रेस व ठगबंधन ने इसे “सेक्युलरिज़्म” का नया नाम दे दिया है।

इन सबका मकसद एक ही रहा —

  • “हिंदुओं को बाँटो, अपराधियों को बचाओ, और वोट बैंक बनाओ।”

🔹 कांग्रेस और ठगबंधन की राजनीति — झूठ, षड्यंत्र और दोहराव

  • कांग्रेस ने आज़ादी के बाद से ही “झूठ को सच बनाने की कला” सीखी है।
  • जब सच्चाई उनके खिलाफ होती है, तो वे “नैरेटिव” बनाते हैं।
  • कथित सेक्युलर मीडिया और NGO नेटवर्क के ज़रिए वही झूठ बार-बार दोहराया जाता है।
  • धीरे-धीरे वही झूठ को “जनमत” बनाने का प्रयास किया जाता है।

इसी रणनीति के तहत —

  • राममंदिर आंदोलन को “सांप्रदायिक” कहा गया,
  • CAA और NRC को “मुस्लिम विरोधी” बताया गया,
  • आतंकियों पर कार्रवाई को “मानवाधिकार उल्लंघन” कहा गया,
  • और मोदी सरकार की हर सफलता को “तानाशाही” बताया गया।

पर अब जनता समझ चुकी है —

  • बार-बार झूठ बोलने से झूठ सच नहीं बन जाता।
  • सत्य देर से सही, लेकिन सामने आता जरूर है।

🔹 न्यायपालिका का दोहरा मापदंड — चुप्पी बनाम सक्रियता

  • जब कोई हिंदू संगठन या सनातनी मुद्दा उठाता है —
    तो तुरंत “Public Interest Litigation” दायर हो जाती है।
  • लेकिन जब कोई कट्टरपंथी संगठनवामपंथी NGO या अलगाववादी समूह खुलकर देश के खिलाफ नारे लगाते हैं,
  • तो न्यायपालिका और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग “अभिव्यक्ति की आज़ादी” का कवच ओढ़ लेते हैं।
  • क्या यह न्याय है या राजनीतिक झुकाव?
    क्या यह संविधान की आत्मा है या मानसिक गुलामी का पुनर्जन्म?

🔹 देशभक्तों के लिए नया संघर्ष — अब जागरूकता और संगठन ही अस्त्र हैं

  • आज स्थिति 1857 जैसी है —
    पर लड़ाई की भाषा बदल गई है।
  • अब युद्ध हथियारों से नहीं, नैरेटिव और कानूनों से लड़ा जा रहा है।

जो देशभक्त हैं — उन्हें अब“संविधान की मर्यादा में रहते हुए, जागरूकता और संगठन के शस्त्र उठाने होंगे।”

  • सोशल मीडिया पर सत्य फैलाइए।
  • जागरूक नागरिक बनिए।
  • मतदान में भाग लीजिए।
  • कानून का सम्मान कीजिए, पर गलत कानूनों के खिलाफ आवाज़ उठाइए।
  • बच्चों को भारत का सच्चा इतिहास सिखाइए।

🔹 भारत जनता का है, अदालतों का नहीं

  • लोकतंत्र तभी सशक्त रहेगा जब निर्णय जनता के हाथ में होंगे।
  • यदि हर नीति अदालत तय करेगी, तो जनता के मत और सरकार के जनादेश का कोई अर्थ नहीं बचेगा।
  • भारत का भविष्य अदालतों की फाइलों में नहीं, बल्कि जनता की चेतना में है।

अब समय है कि देशभक्त संगठित हों, जागें और लोकतंत्र की आत्मा — जनशक्ति — को पुनः स्थापित करें।

🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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