भारत-पाक संघर्ष
भारत-पाक संघर्ष अब उस मोड़ पर पहुँच चुका है जहां दया दिखाना कमजोरी बन चुका है। इतिहास गवाह है कि हमारी हर नरमी ने हमें ही घायल किया है—चाहे वह पृथ्वीराज चौहान की माफी हो या 1971 में 90,000 पाक सैनिकों को छोड़ना। दशकों तक हमने पाकिस्तान को भाई समझकर वार्ता और शांति का रास्ता चुना, लेकिन बदले में हर बार पीठ में छुरा खाया। अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान की आतंकी मशीनरी की रीढ़, उसकी सेना और ISI को जड़ से खत्म कर दिया जाए। शांति के लिए अब निर्णायक युद्ध ही एकमात्र रास्ता है—अधूरी कार्रवाई नहीं, बल्कि समूल नाश।
इतिहास गवाह है—हमारी दया ने हमें हमेशा घायल किया है
“दया दिखाना तब तक पुण्य है जब तक सामने वाला इंसान हो; राक्षस पर दया पाप बन जाती है।”
भारत ने दशकों तक पाकिस्तान को एक भाई की तरह समझाने की कोशिश की—वार्ता, शांति-प्रक्रिया, क्रिकेट डिप्लोमेसी, बस यात्रा, ट्रैक-2 कूटनीति… लेकिन बदले में क्या मिला? हर बार पीठ पर छुरा।
अब स्पष्ट है: पाकिस्तान न सिर्फ भारत का दुश्मन है, बल्कि यह एक आतंकी राज्य है जिसकी रीढ़ उसकी सेना है।
1. पाकिस्तान की सेना = आतंकवाद की रीढ़
- ISI, PAK Army, और जैश, लश्कर, हिजबुल—इनमें फर्क करना भूल है।
- आतंकी संगठनों को ट्रेनिंग कैंप, हथियार, कवर फायर, और कूटनीतिक संरक्षण—सब ISI और सेना से ही मिलता है।
- PAK Army ने आतंक को “Low Cost War Strategy” बना रखा है।
- जब तक इस सेना का ढांचा जिंदा रहेगा, भारत के मंदिर, बाजार और सीमा असुरक्षित रहेंगे।
2. इतिहास की चेतावनी: दया का नतीजा हमेशा विनाश रहा
- पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को माफ़ किया—गौरी लौटा, भारत को रौंदता हुआ।
- 1971 के युद्ध में हमने 90,000 पाक सैनिकों को छोड़ा—उनमें से कई आज ISI के ट्रेनर हैं।
- कारगिल में विजय के बाद भी हम LOC पार नहीं गए—आज फिर शहीद हो रहे हैं।
- सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भी हमने उन्हें मिटाया नहीं—वे फिर लौटे।
अब की बार अधूरी जवाबी कार्रवाई नहीं—Final Blow.
3. भारत की रणनीति की ऐतिहासिक गलतियाँ
- 1947-48: नेहरू ने UN जाकर कश्मीर का मामला उलझाया, पाकिस्तान को बचाया।
- 1965: हमारी सेना लाहौर के दरवाज़े पर थी, पर ताशकंद समझौता कर लिया गया।
- 1971: पाकिस्तान दो टुकड़े हुआ, पर मुक्ति के बदले 90,000 कैदी लौटा दिए।
- 1999: कारगिल जीतने के बाद भी पाकिस्तान की सेना को ध्वस्त करने का साहस नहीं किया।
- 2016–2024: उरी, पुलवामा, पहलगाम—हम जवाब देते हैं, पर शत्रु को जड़ से खत्म नहीं करते।
हर बार हमने छोड़ा, हर बार वे लौटे और काटा। क्या अब भी हम इंतज़ार करेंगे?
4. शांति के लिए युद्ध अब जरूरी है
- इज़राइल की नीति स्पष्ट है: “जो हमला करेगा, वह बचेगा नहीं।”
- भारत को भी यही नीति अपनानी होगी:
- पाकिस्तान की सेना की पूरी संरचना को ध्वस्त किया जाए
- POK को स्थायी रूप से भारत में मिलाया जाए
- आतंकी लॉन्च पैड, ट्रेनिंग सेंटर, और आर्मस डिपो को जमींदोज़ किया जाए
- ISI के मुख्यालय और रक्षा परिसरों पर निर्णायक हमला हो
5. दक्षिण एशिया में स्थायी शांति चाहिए? पाकिस्तान का पूर्ण सैन्य विघटन ज़रूरी है
- पाकिस्तान की सेना सिर्फ भारत के लिए नहीं, अफगानिस्तान, ईरान और खुद पाकिस्तान की जनता के लिए भी एक अभिशाप है।
- वहाँ की जनता भूखी है, पर सेना अरबों डॉलर खा रही है।
- युद्ध सिर्फ भारत की सुरक्षा के लिए नहीं, पूरा क्षेत्र स्थिर करने के लिए ज़रूरी है।
6. अब की बार कोई रहम नहीं—
- हर बार माफ़ करने की नीति ने हमें कमजोर किया है।
- अबकी बार युद्ध हो तो निर्णायक हो, अंतिम हो और ऐतिहासिक हो।
जैसे राम ने रावण का अंत किया, जैसे कृष्ण ने महाभारत रचाया—अब भारत को वैसी ही निर्णायक भूमिका लेनी होगी।
संदेश हर देशवासी के लिए:
सरकार को पूर्ण जनसमर्थन चाहिए—अब विरोध नहीं, एकजुटता हो।
हर हिन्दू, हर भारतीय—जाति, भाषा, राज्य से ऊपर उठकर—भारत माता के लिए एक हो।
“दया छोड़ो, धर्म निभाओ।”
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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