भारत पर साइलेंट वार
हम अक्सर सोचते हैं कि युद्ध तभी होता है जब गोलियाँ चलें, बम गिरें और सेनाएँ सीमा पार करें।
लेकिन भारत पर पिछले 100 वर्षों से एक ऐसा साइलेंट वार चल रहा है जिसे न तो न्यूज़ चैनलों ने दिखाया, न ही आम लोगों ने पूरी तरह पहचाना।
यह कोई पारंपरिक युद्ध नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक और वैचारिक युद्ध है — जो भारत की आत्मा, उसकी परंपराओं, इतिहास और सामाजिक संरचना को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए रचा गया है।
इस साइलेंट वार का मकसद है —
- परिवारों को तोड़ना
- इतिहास को भुलाना
- बाज़ारों के ज़रिए जीवनशैली बदलना
- और हिन्दुओं को आपस में बाँटना
यह युद्ध बिना शोर के लड़ा जा रहा है, लेकिन इसके असर हमारी सोच, हमारी शिक्षा, हमारी भाषा, और हमारे व्यवहार में गहराई से दिखने लगे हैं।
🧠 1. जब परिवार टूटते हैं, बाज़ार फलते हैं — उपभोक्तावाद का षड्यंत्र
👉 पहले भारत में संयुक्त परिवार थे — एक छत के नीचे 3-4 पीढ़ियाँ साथ रहती थीं।
👉 एक घर, एक रसोई, एक टीवी, एक कार, एक जीवन — जिसमें प्रेम था, त्याग था, सुरक्षा थी।
लेकिन अब:
- हर व्यक्ति अकेला रहना चाहता है — अपनी स्वतंत्रता के नाम पर।
- माँ-बाप वृद्धाश्रम में, बच्चे नौकरी के नाम पर विदेश में, और पति-पत्नी अलग-अलग तनाव में।
💰 नतीजा?
- अब हर व्यक्ति के लिए अलग घर, किचन, वॉशिंग मशीन, टीवी, कार, बीमा, मनोरंजन चाहिए।
- बाज़ार अब हमारी ज़रूरतों पर नहीं, टूटी हुई भावनाओं और अकेलेपन पर आधारित है।
👉 जब परिवार टूटता है, तो रिश्ते टूटते हैं। और जब रिश्ते टूटते हैं — तब बाज़ार राज करता है।
📚 2. शिक्षा के माध्यम से भारत की आत्मा पर हमला
ब्रिटिशों ने हमें गुलाम बनाने के लिए तलवार से ज़्यादा कलम और पाठ्यक्रम का इस्तेमाल किया।
- हमारे संतों, योद्धाओं, दर्शन और ग्रंथों को “पिछड़ा” और “अंधविश्वास“ बताया गया।
- अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का मकसद था: “Such Indians who look like Indians, but think like Britishers.”
- आज भी वही शिक्षा प्रणाली चल रही है — जिसमें:
- न रामायण पढ़ाई जाती है, न गीता।
- न सुभाष बोस का सच बताया जाता है, न वीर सावरकर का बलिदान।
- औरंगज़ेब जैसे अत्याचारी को “धर्मनिरपेक्ष” बादशाह बताकर पढ़ाया जाता है।
🏛️ 3. कांग्रेस और वामपंथियों ने स्वतंत्रता के बाद भारत के इतिहास और आत्मा को बदला
- मुग़लों की क्रूरता को गौरव बना दिया गया।
- राजपूतों, मराठों और सिखों के बलिदानों को दबा दिया गया।
- नेहरू–गांधी को राष्ट्रपिता और स्वतंत्रता के नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया — जबकि
- सुभाष चंद्र बोस,, भगत सिंह, वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक और सरदार पटेल जैसे महापुरुषों को या तो बदनाम किया गया या पूरी तरह भुला दिया गया।
🧨 4. हिन्दू समाज को बाँटने की सुनियोजित रणनीति
- धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एकतरफा तुष्टिकरण शुरू हुआ।
- आरक्षण और विशेष अधिकारों के ज़रिए हिन्दुओं को जातियों में बाँटा गया — दलित, पिछड़े, सवर्ण, आदिवासी, ओबीसी…
मुस्लिम वोट बैंक के लिए:
- बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाया गया।
- NRC और CAA का विरोध हुआ।
- कश्मीरी पंडितों का दर्द अनदेखा, लेकिन रोहिंग्या और आतंकवादियों के लिए आवाज़ बुलंद।
👉 हिंदुओं को जाति, भाषा, क्षेत्र, खानपान, रीति-रिवाज के नाम पर आपस में लड़ाया गया — ताकि हम कभी एक न हो सकें।
📺 5. मीडिया, बॉलीवुड और सोशल मीडिया का ज़हरीला उपयोग
- बॉलीवुड में इस्लामीकरण कर के लव-जिहाद को रोमांटिक बनाया गया।
- मीडिया ने हर हिन्दू त्योहार को “प्रदूषण“, “पाखंड“, और “अंधविश्वास“ कहा।
- सोशल मीडिया पर हिन्दू प्रतीकों का मज़ाक उड़ाना और कट्टरपंथियों को बचाना एक आदत बन गई है।
🚩 अब क्या करें?
👉 अब हमें समझना होगा कि ये कोई संयोग नहीं — बल्कि एक लंबी रणनीति है, जो अब निर्णायक मोड़ पर है।
🔴 अब हमें:
- जाति, भाषा, क्षेत्र से ऊपर उठकर एक हिन्दू के रूप में खड़ा होना होगा।
- अपने बच्चों को सच्चा इतिहास, धर्म और परिवार के मूल्य सिखाने होंगे।
- सनातन संस्कृति को गहराई से समझकर उस पर गर्व करना होगा।
- शत्रु के मनोवैज्ञानिक हथियारों को पहचानना और जवाब देना होगा।
- हमें अपने आपको अपने शास्त्र, संस्कृति, पारिवारिक मूलयो और शस्त्रों को धारण करके अपने विरोधियों को उचित जवाब देना होगा।
🕉️ यह समय है — पुनर्जागरण का।
- हमारे हाथों में कलम है, वोट है, चेतना है — और संकल्प हो तो परिवर्तन भी।
- हमें अपने परिवार, धर्म, इतिहास और भारत माता की रक्षा करनी है — और यही सच्ची राष्ट्रसेवा है।
- यदि हमने इस पर उच्च प्राथमिकता के आधार पर अभी कार्य नहीं किया,
तो भारत का इस्लामीकरण को रोकने के लिए बहुत देर हो जाएगी —
जैसा कि कांग्रेस और मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा पिछले 75 वर्षों से योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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