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चित्तौड़ का भूला हुआ बलिदान

चित्तौड़ का भूला हुआ बलिदान

मुझे यह जानकारी एक समूह द्वारा प्राप्त हुई , और मैं इसे आप सभी को इस लेख के रूप मे भेज रहा हूँ। कृपया एक क्षण लें और समझें कि हमारे पूर्वजों ने कितना दुःखद और शर्मनाक समय झेला।

मुझे अपने बचपन की एक धुंधली स्मृति याद है, जब मैं लगभग 10-12 वर्ष का था। हमारे घर एक पत्र आया था, जिस पर “74½” लिखा था। जिज्ञासावश मैंने अपने बाबूजी से इसका अर्थ पूछा। उन्होंने बताया कि यह 74½ मन (लगभग 2,980 किलोग्राम) जनेऊ का प्रतीक है, जो मारे गए हिंदुओं से एकत्र किया गया था।

जब मैंने इसके पीछे की पूरी कहानी जानी, तो मेरा खून खौल उठा। पहले मुझे इसकी विस्तृत जानकारी नहीं थी, लेकिन जब मैंने चित्तौड़ पर एक महाकाव्य लिखने के दौरान इसके बारे में गहराई से अध्ययन किया, तब यह भयावह कथा मेरे सामने आई। और अब मैं इसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ, ताकि आपका भी खून खौल जाए।

वह भयानक दिन: 23 फरवरी 1568

23 फरवरी 1568, आज से 456 वर्ष पूर्व, भारत के इतिहास का सबसे भीषण और भयावह नरसंहार हुआ। लेकिन, इस घटना को इतिहास की किताबों से मिटा दिया गया।

भारतीय इतिहास में कुल 12 जौहर और साका दर्ज हैं, जिनमें से तीन चित्तौड़गढ़ में हुए:

  1. पहला जौहर रानी पद्मावती द्वारा, अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान।
  2. दूसरा जौहर रानी कर्णावती द्वारा, जब उन्होंने महाराणा उदय सिंह को पन्ना धाय को सौंप दिया था।
  3. तीसरा और सबसे भयंकर जौहर, 23 फरवरी 1568 को अकबर के शासनकाल में हुआ।

हमारी शिक्षा पश्चिमी प्रभावों से प्रभावित रही है, विशेष रूप से नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया, जिसमें अकबर को महान बताया गया है। लेकिन अकबर के अपने दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल ने चित्तौड़ के विनाश के बारे में क्या लिखा, यह पढ़ें:

अकबर के आदेश पर पहले ८००० राजपूत योद्धाओं को बंदी बनाकर मार दिया गया। इसके अलावा, भोर से दोपहर तक ४०,००० किसानों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का भी कत्लेआम किया गया।
(अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)

चित्तौड़ की अंतिम लड़ाई

25 अक्टूबर 1567 को युद्ध शुरू हुआ।

  • महाराणा उदय सिंह ने उदयपुर में शरण ली और चित्तौड़ की रक्षा के लिए 8,000 राजपूत योद्धाओं को छोड़ा।
  • किले में मौजूद प्रमुख योद्धा थे:
  • जयमल राठौड़ और पत्ता चुंडावत
  • सैदास रावत, बल्लू सोलंकी, ठाकुर सांडा और ईसरदास चौहान

आठ महीनों तक किले को बचाने के बाद, जब राशन समाप्त हो गया, तब राजपूतों ने अंतिम युद्ध के लिए किले के द्वार खोल दिए।

12,000 महिलाओं का जौहर

जब यह स्पष्ट हो गया कि चित्तौड़ की हार निश्चित है, तब महारानी जयमल मेतावाड़िया समेत 12,000 क्षत्राणियों ने अकबर के हरम में जाने से बेहतर जौहर की अग्नि में जलकर भस्म होना चुना।

कल्पना करें:

  • विशाल गड्ढे में धधकती जौहर की आग
  • और उसमें 12,000 महिलाओं की हृदय विदारक चीखें, जो खुद को आग में समर्पित कर रही थीं।

8000 योद्धाओं का साका

जौहर की राख अपने माथे पर लगाकर 8000 राजपूत योद्धाओं ने मृत्यु को गले लगाने के लिए अंतिम युद्ध लड़ा।

  • हर योद्धा ने सैकड़ों मुगलों को काट गिराया, लेकिन 1,25,000 मुगल सैनिकों के सामने कब तक टिकते?

60,000 हिंदुओं का नरसंहार

जब सभी योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, तब अकबर की सेना ने निर्दोष नागरिकों पर हमला कर दिया।

  • 60,000 हिंदुओं की निर्मम हत्या कर दी गई।
  • बच्चों को भालों पर उछालकर मारा गया।
  • बुजुर्गों को तड़पातड़पा कर मार डाला गया।
  • हिंदुओं के जनेऊ (पवित्र धागे) इकट्ठा कर उनका वजन 74½ मन (2,980 किलोग्राम) निकला।

ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड लिखते हैं:

अकबर ने अपनी जीत का आकलन मारे गए हिंदुओं के जनेऊ से किया, जिनका कुल वजन 74½ मन था।

यदि एक जनेऊ लगभग 1 तोला (10 ग्राम) का होता है, तो यह संख्या 47,680 हिंदुओं के नरसंहार का प्रमाण देती है।

अकबर की सच्चाई, जो इतिहास से मिटा दी गई

इसके बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में अकबर को महान कहा और हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने उसे दयालु और धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में प्रस्तुत किया।

जबकि, अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार विंसेंट स्मिथ ने लिखा:

अकबर एक दुष्ट, निर्दयी और नरसंहार करने वाला क्रूर शासक था।

चित्तौड़ विजय के बाद अकबर ने कुछ फतहनामे (इस्लामिक घोषणाएँ) जारी किए, जिनसे यह स्पष्ट हुआ कि उसे हिंदुओं से कितनी घृणा थी।

अल्लाह की महिमा बढ़ाने के लिए, हमारे मुजाहिदीनों ने काफिरों (हिंदुओं) को चमकती तलवारों से वध कर दिया। हमने अपने समय और शक्ति को जिहाद में लगाया, काफिरों के शहरों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया।
(फतहनामाचित्तौड़, मार्च 1586, नई दिल्ली)

अब हमें अपने इतिहास को फिर से लिखना होगा

यह आश्चर्यजनक है कि हमारे स्कूलों में मुगल काल को भारत के स्वर्ण युग के रूप में पढ़ाया जाता है।

लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि भारत के सच्चे स्वर्ण युग वे थे जब हिंदू साम्राज्य फलेफूले:
मेवाड़ वंश (1000+ वर्ष)
अहोम वंश (600 वर्ष)
गुप्त साम्राज्य (300 वर्ष)
विजयनगर साम्राज्य (300 वर्ष)

लेकिन, इन महान हिंदू साम्राज्यों को इतिहास की किताबों से हटा दिया गया, और मुगलों को महानकहा गया।

अंतिम संदेश

आज, 23 फरवरी 1568 को याद करें, जब 8,000 राजपूतों ने बलिदान दिया, 12,000 क्षत्राणियों ने जौहर किया और 47,680 निर्दोष हिंदू मारे गए।

अब समय आ गया है कि हम अपने वास्तविक इतिहास को पुनः सीखें और आने वाली पीढ़ियों को सच्चाई बताएं।

जय मेवाड़! जय भारत !

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