आज कांग्रेस बार-बार यह दावा करती है कि संविधान की आत्मा और लोकतंत्र खतरे में हैं। लेकिन इतिहास पर ईमानदारी से नज़र डालें तो स्पष्ट होता है कि सत्ता के दौरान संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सबसे गहरे आघात उसी दौर में हुए। सत्ता बनाए रखने के लिए संविधान का चयनात्मक उपयोग और संस्थाओं को कमजोर करना कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा रहा है। आज सत्ता से बाहर होकर वही राजनीति अब नैरेटिव युद्ध के ज़रिए जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है।
सत्ता के लिए हर सीमा पार करती हुई राजनीति
- आज कांग्रेस बार-बार यह दावा करती है कि “संविधान खतरे में है” “लोकतंत्र खतरे मैं है”।
- लेकिन भारत के संवैधानिक इतिहास पर ईमानदारी से नज़र डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि संविधान की आत्मा और लोकतंत्र पर सबसे अधिक, लगातार और सबसे गहरे हमले कांग्रेस शासन के दौरान ही हुए हैं।
1️⃣ वोट-बैंक के लिए संविधान का दुरुपयोग
कांग्रेस ने दशकों तक सत्ता में रहते हुए संविधान को राष्ट्रीय सहमति का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि वोट-बैंक प्रबंधन का औज़ार बना दिया।
- दर्जनों संवैधानिक संशोधन केवल तुष्टिकरण की राजनीति के लिए
- समुदाय-विशेष को साधने हेतु कानूनों की मनमानी व्याख्या
- बहुसंख्यक हिंदू समाज और सनातन धर्म के हितों की व्यवस्थित उपेक्षा
- “सेक्युलरिज़्म” की आड़ में असमानता को वैधता
👉 परिणामस्वरूप, संविधान की मूल भावना — समानता, न्याय और राष्ट्रीय एकता — कमजोर होती गई।
2️⃣ तुष्टिकरण बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
कांग्रेस की तुष्टिकरण-आधारित राजनीति का सीधा असर देश की सुरक्षा, एकता और संप्रभुता पर पड़ा।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय असंतुलन
- अवैध घुसपैठ और कट्टरपंथी नेटवर्क पर नरमी
- आतंकवाद और अलगाववाद पर निर्णायक कार्रवाई से परहेज़
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को कमजोर दिखाने वाली ताकतों को अवसर
यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं थी, बल्कि राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता था।
3️⃣ सत्ता गई तो बदली रणनीति: अब नैरेटिव और मनोवैज्ञानिक युद्ध
आज, जब कांग्रेस सत्ता से बाहर है और देश को शारीरिक या प्रशासनिक रूप से नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं, तो उसने रणनीति बदल ली है।
अब उसके हथियार हैं:
- मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological Warfare)
- वैचारिक भ्रम (Ideological Confusion)
- फेक न्यूज़ और आरोपों की बाढ़
- संस्थाओं पर अविश्वास फैलाने का प्रयास
उद्देश्य साफ है:
- जनता को भ्रमित करना,
- हिंदू समाज को बाँटना,
- और मुस्लिम वोट-बैंक व एंटी-नेशनल / एंटी-हिंदू इकोसिस्टम के सहारे सत्ता में वापसी।
4️⃣ ‘ठगबंधन’ और वही पुराना खेल
कांग्रेस और उसके सहयोगी दशकों से एक ही फॉर्मूला अपनाते रहे हैं:
- जाति
- भाषा
- क्षेत्र
- समुदाय के आधार पर हिंदुओं कों बांटना
लेकिन मोदी युग में हिंदू समाज जाग चुका है।
अब:
- भावनात्मक नहीं, तर्कसंगत मतदान
- विकास, सुरक्षा और राष्ट्रीय हित प्राथमिकता
- डर और विभाजनकारी नारों का असर सीमित
👉 इसी कारण:
- लगातार चुनावी पराजय
- हर बार कमज़ोर जनादेश
- ठगबंधन की हताशा और आक्रामकता बढ़ती जा रही है
5️⃣ वैश्विक एंटी-इंडिया लॉबी और विफल साज़िशें
- भारत की तेज़ प्रगति, आत्मनिर्भरता और वैश्विक मंच पर बढ़ती भूमिका
कुछ अंतरराष्ट्रीय ताकतों को असहज कर रही है।
इन ताकतों ने:
- भारत-विरोधी नैरेटिव को हवा दी
- विपक्षी और अलगाववादी तत्वों को वैचारिक समर्थन दिया
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश की
लेकिन परिणाम उल्टा रहा—
- भारत और मज़बूत हुआ
- संस्थाएँ और सशक्त हुईं
- जनता और जागरूक हुई
6️⃣ जनता का फैसला: अब भ्रम नहीं चलेगा
आज का भारत:
- इतिहास से सीख रहा है
- नैरेटिव की परतें पहचान रहा है
- यह समझ चुका है कि कौन देश के साथ है और कौन सत्ता के लिए देश को दांव पर लगाता है
इसी कारण:
- कांग्रेस और ठगबंधन की हर चाल विफल
- झूठे आरोपों का असर न्यूनतम
- चुनावी नतीजे इस बदली चेतना का प्रमाण
7️⃣ आगे का रास्ता: राष्ट्रहित सर्वोपरि
देश की प्रगति के लिए आवश्यक है कि:
- तुष्टिकरण की राजनीति को निर्णायक रूप से अस्वीकार किया जाए
- विकास, सुरक्षा और समान अवसर की नीति को मज़बूती मिले
- राष्ट्रवादी शासन को राजनीतिक और सामाजिक समर्थन मिले
- ताकि बड़े और ज़रूरी सुधार तेज़ी से लागू हो सकें
- संविधान की आत्मा को चोट पहुँचाने वाले,
- राष्ट्रहित से समझौता करने वाले,
- और आज झूठे नैरेटिव से सत्ता में वापसी की कोशिश करने वाले अब जनता के सामने पूरी तरह उजागर हो चुके हैं।
भारत अब उस दौर में है जहाँ:
- सत्ता का रास्ता विभाजन से नहीं,
- बल्कि विकास, सुरक्षा और विश्वास से तय होता है।
और यही कारण है कि
- हर विफल प्रयास के साथ भारत और मज़बूत,
- और कांग्रेस एवं ठगबंधन अपने ही अतीत के बोझ तले और कमजोर होते जा रहे हैं।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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