कांग्रेस: ऑपरेशन ब्लू स्टार
1. सच्चाई की पहली किरण — कांग्रेस की आत्मस्वीकृति
- कई दशकों बाद कांग्रेस की अपनी गलती अब उनके ही वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम के बयान से उजागर हो गई है। उन्होंने स्वीकार किया कि ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ऐसी गलती थी जिसे टाला जा सकता था।
- यह मात्र गलती नहीं थी, बल्कि एक ऐसा राजनीतिक निर्णय था जिसने भारत की एकता, सिख समुदाय और धर्मनिरपेक्ष ताने–बाने को गहरा आघात पहुँचाया।
- कांग्रेस ने हमेशा इंदिरा गांधी की हत्या को ‘बलिदान’ के रूप में प्रचारित किया, लेकिन यह बयान दिखाता है कि असल में वह सत्ता के लिए रची गई राजनीति का परिणाम थी।
- चिदंबरम के स्वीकारोक्ति ने कांग्रेस के उस झूठ को उजागर कर दिया जिसे दशकों तक किताबों, मीडिया और प्रचार से छिपाया गया।
🔹 2. भिंडरावाले का उदय — कांग्रेस की खतरनाक चाल
1970 के दशक के उत्तरार्ध में जब अकाली दल का जनाधार पंजाब में मज़बूत हो रहा था, तब कांग्रेस ने इसे तोड़ने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले को धार्मिक नेता के रूप में उभारने की साजिश रची।
- कांग्रेस ने उसे राजनीतिक हथियार बनाकर अकाली दल को कमजोर करने की कोशिश की।
- इंदिरा गांधी के करीबी ज्ञानि जैल सिंह ने 1981 में उसे जेल से छुड़वाया।
- यह कदम पंजाब में धार्मिक उन्माद फैलाने की जड़ बना।
- कांग्रेस का यह प्रयोग बहुत खतरनाक साबित हुआ — जिस आग को उन्होंने सियासी लाभ के लिए जलाया, वही आग पूरे पंजाब को जलाने लगी।
पाकिस्तानी आईएसआई और विदेशी शक्तियों ने भी इस मौके का फायदा उठाकर खालिस्तान आंदोलन को हवा दी।
🔹 3. स्वर्ण मंदिर बना आतंकियों का ठिकाना — लेकिन इंदिरा ने देखा चुनावी अवसर
- 1983 में भिंडरावाले ने हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में शरण ली और उसे आतंक का अड्डा बना दिया।
- हालात नियंत्रण से बाहर जा रहे थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने सामरिक समाधान की बजाय राजनीतिक लाभ का अवसर देखा।
- उन्हें आने वाले 1984 के चुनावों में खुद को एक “निर्णायक नेता” के रूप में पेश करना था।
- उसी सोच से ऑपरेशन ब्लू स्टार की मंज़ूरी दी गई — जब शांतिपूर्ण समाधान संभव था।
- यह वही कांग्रेस थी जो हर संकट को राजनीतिक अवसर में बदलने की कला में माहिर थी —
- चाहे वह आपातकाल हो, विभाजन हो, या पंजाब की आग।
🔹 4. ऑपरेशन ब्लू स्टार — एक धार्मिक आस्था पर हमला
3 जून से 6 जून 1984 तक भारतीय सेना ने हरिमंदिर साहिब परिसर में सैन्य अभियान चलाया।
- सैकड़ों निर्दोष श्रद्धालु, महिलाएँ और बच्चे मारे गए।
- सिख समाज के लिए यह आस्था पर गहरा प्रहार था।
- सेना को उस पवित्र स्थल में भेजना धार्मिक असंवेदनशीलता और राजनीतिक अधीरता का उदाहरण था।
- 83 सैनिक शहीद हुए, सैकड़ों घायल हुए, और हजारों निर्दोषों ने बलिदान दिया —
लेकिन कांग्रेस की सत्ता बची रही।
🔹 5. 1984 सिख नरसंहार — सत्ता के लिए जनसंहार
- 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस नेताओं ने खुलेआम सिखों के खिलाफ हिंसा भड़काई।
- “जब बड़ा पेड़ गिरता है, धरती हिलती है” — राजीव गांधी का यह बयान कांग्रेस के असली चेहरे को दिखाता है।
- दिल्ली, कानपुर, भोपाल, इंदौर — हर जगह सिखों को निशाना बनाया गया।
- लगभग 15,000 सिख मारे गए, 50,000 से अधिक विस्थापित हुए।
- सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर और कमलनाथ जैसे नेताओं के नाम आज भी उन दंगों के साथ जुड़े हैं।
2025 तक न्यायालय इन मामलों की सुनवाई कर रहा है, जबकि कांग्रेस ने कभी माफी नहीं माँगी।
🔹 6. बीजेपी का प्रश्न और कांग्रेस की नैतिक पराजय
- बीजेपी ने सवाल उठाया कि अगर चिदंबरम का बयान सच है,
तो क्या कांग्रेस उन निर्णयकर्ताओं पर कार्रवाई करेगी जिन्होंने यह गलती की? - क्या कांग्रेस माफी माँगेगी उन हजारों परिवारों से जो 1984 में उजड़े?
- यह भी पूछा गया कि क्या कांग्रेस की राजनीति हमेशा “पहले सत्ता, बाद में राष्ट्र” की रही है?
🔹 7. कांग्रेस का चरित्र — सत्ता पहले, देश बाद में
- कश्मीर नीति से लेकर 26/11 मुंबई हमले तक कांग्रेस ने हमेशा राष्ट्रहित से पहले वोट–बैंक और छवि को प्राथमिकता दी।
- 26/11 के बाद भी पाकिस्तान पर कोई कार्रवाई नहीं हुई — डर था कि इससे विपक्ष को लाभ मिल जाएगा।
- ओबामा ने अपनी किताब में भी लिखा कि मनमोहन सिंह की सरकार निर्णय लेने से डरती थी।
यही कांग्रेस की मानसिकता है — वोट, विदेश और सत्ता के लिए राष्ट्रहित की बलि।
🔹 8. मोदी युग में नया भारत — राष्ट्रहित सर्वोपरि
- आज जब देश मोदी-योगी जैसे नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है, तब राष्ट्र की प्राथमिकता बदल चुकी है।
- अब सत्ता का लक्ष्य सेवा, सुरक्षा और सशक्तिकरण है —
न कि वोट बैंक या विदेशी तुष्टिकरण। - मोदी सरकार ने CAA, NIA सशक्तिकरण, आतंकवाद पर कड़ी नीति जैसी ऐतिहासिक पहलें कीं।
- योगी मॉडल ने दिखाया कि कानून का शासन कैसे देश को सुरक्षित और संगठित बना सकता है।
- कोई अपराधी या आतंकवादी अब राजनीतिक संरक्षण के भरोसे नहीं बच सकता।
- यह सब संभव हुआ क्योंकि अब सरकार देशभक्त, ईमानदार और निर्णायक है —
जिसे न तो विदेशी दबाव की परवाह है, न ही वोट-बैंक की राजनीति का डर।
🔹 9. सुधार की ज़रूरत — न्यायपालिका और नौकरशाही का समन्वय
- फिर भी एक बड़ी चुनौती अब भी बनी हुई है — न्यायिक और प्रशासनिक गति का अभाव।
- लाखों केस वर्षों से अदालतों में लंबित हैं।
- नौकरशाही के जटिल तंत्र के कारण कई नीतियाँ ज़मीनी स्तर तक पहुँचने में देर होती है।
- यह विलंब विकास की गति और जनता के हित को प्रभावित करता है।
- भारत को सुपरपावर बनने के लिए ज़रूरत है कि
न्यायपालिका और नौकरशाही दोनों “समयबद्ध, पारदर्शी और परिणाम–उन्मुख” बनें। - जब ये संस्थाएँ सरकार के साथ मिलकर राष्ट्रहित में कार्य करेंगी,
तभी भारत वास्तविक विश्वगुरु बन सकेगा।
🔹 इतिहास से सबक, भविष्य की दिशा
- कांग्रेस की सत्ता-लोलुप राजनीति ने भारत को अनेक बार पीड़ा दी —
चाहे विभाजन हो, आपातकाल, या सिख नरसंहार। - अब देश को चाहिए ऐसा नेतृत्व जो धर्म, जाति या वर्ग से ऊपर उठकर
राष्ट्र और धर्म दोनों की रक्षा करे। - मोदी-योगी मॉडल इसी दिशा में भारत की पहचान बन चुका है —
जहाँ निर्णय राष्ट्र के लिए, न कि सत्ता के लिए लिए जाते हैं।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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