11 वर्षों की सच्चाई बनाम 70 वर्षों की ठगी
🟥 1. जीत में उत्सव, हार में विलाप—ठगबंधन की दोहरी नीति
जब 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और ठगबंधन को अपेक्षा से अधिक सीटें मिलीं, तब:
- “EVM बिल्कुल पारदर्शी”
- “चुनाव आयोग निष्पक्ष”
- “लोकतंत्र पुनर्जीवित हो गया”
- “जनता ने सिस्टम को ठीक कर दिया”
- “सिस्टम महान”
लेकिन जैसे ही हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान, बिहार में हार का सिलसिला शुरू हुआ— ठीक उन्हीं EVM और उसी चुनाव आयोग पर हमला:
- “EVM चोरी!”
- “लोकतंत्र खतरे में!”
- “भारी साजिश!”
- “राजनीतिक षड्यंत्र!”
>जब जीतें → सिस्टम देवता
>जब हारें → सिस्टम शैतान
- यही है काँग्रेस और ठगबंधन की लोकतांत्रिक नैतिकता।
🟥 2. टाइमलाइन ऑफ़ उनका रोना: हार बढ़ती गई, चीख बढ़ती गई
- हरियाणा हारे → EVM सवालों में
- महाराष्ट्र हारे → लोकतंत्र की हत्या
- दिल्ली हारे → “Vote Chori का महाभारत”
- बिहार हारे → संविधान खतरे मैं
यानी सीटें घटती गईं, ड्रामा बढ़ता गया।
🟥 3. जनता अब भावुक नहीं, व्यवहारिक हो चुकी है
🔹 11 साल में पहली बार जनता ने देखा:
- बिना दलाली का शासन
- घोटालों का अंत
- इंफ्रास्ट्रक्चर की आँधी
- सेना की स्वतंत्र शक्ति
- आतंकवाद पर surgical जवाब
- कश्मीर में 370 हटकर राष्ट्र का पुनर्जन्म
- भारत का विश्व मंच पर सम्मान
🔹 अब जनता TV बहस, BBC रिपोर्ट, Washington Post लेख, Toolkits से प्रभावित नहीं, ज़मीन पर काम से प्रभावित होती है।
कांग्रेस की समस्या:
- अब जनता गलत दिशा में ले जाने वाली भाषण-राजनीति का शिकार नहीं,
बल्कि ज़मीन पर देखे विकास की साक्षी है।
🟥 4. “Vote Chori” नैरेटिव—नई बोतल में पुरानी शराब
हर हार के बाद वही बदहवासी:
- “लोकतंत्र खतरे में”
- “चुनाव आयोग बिक गया है”
- “EVM हैक्ड”
- “RSS का षड्यंत्र”
- “संविधान खतरे में”
लेकिन सवाल:
- जहां कांग्रेस जीती, क्या वहां “सिस्टम पवित्र” था?
- जहां वे हारे, क्या रातों-रात मशीनें भ्रष्ट हो गईं?
लॉजिक ज़ीरो, ड्रामा 100%
🟥 5. Propaganda की जगह Performance चाहिए
ठगबंधन की राजनीति अब तीन स्तंभों पर आधारित:
- विदेशी मंचों पर रुदन
- मीडिया पर “तानाशाही” का पोस्टर
- सोशल मीडिया पर फैलाया गया “Vote Chori” मिथक
जबकि जनता की राजनीति चार स्तंभों पर आधारित:
- विकास
- सुरक्षा
- स्थिरता
- ईमानदारी
जनता अब काग़ज़ी क्रांति से नहीं, विकास की क्रांति से प्रभावित होती है।
🟥 6. ठगबंधन की पुरानी आदत: हार आए तो देशद्रोही नैरेटिव
- चुनाव आयोग गलत
- सुप्रीम कोर्ट पक्षपाती
- सेना राजनीतिक
- ED/CBI अत्याचारी
- मीडिया बिकाऊ
- जनता भटकी हुई
और खुद? सत्य, पवित्र, गांधीवादी आत्मा
यानी… सारी दुनिया गलत, सिर्फ़ कांग्रेस सही।
🟥 7. लोकतंत्र का वास्तविक नैतिक परीक्षण
लोकतंत्र सिर्फ तब सम्मानित नहीं होता जब: जीत मिल जाए। लोकतंत्र का वास्तविक सम्मान तब साबित होता है जब:
- हार को स्वीकार किया जाए
- आरोपों की जगह आत्ममंथन हो
- रणभूमि नहीं, जनता को सुना जाए
- माइक्रोफोन्स नहीं, ग्राउंड रियलिटी को समझा जाए
हार में गरिमा ही लोकतांत्रिक परिपक्वता का शिखर है।
🟥 8. भारत की नई चेतना: जनता ठगबंधन से आगे निकल चुकी है
आज की जनता:
- जाति समीकरण से ऊब चुकी
- तुष्टिकरण से नाराज़
- धर्म के अपमान से आहत
- “लोकतंत्र खतरे में ” का रोना सुन-सुनकर थक चुकी
वह अब:
- राहुल के फालतू और फर्जी इंटरव्यू नहीं,
- राष्ट्रनिर्माण में लगी मोदी टीम की फैक्ट्स और फ़ील्ड रिपोर्टदेखती है।
सोशल मीडिया की झूठी चीख, अब सच को नहीं दबा सकती।
🟥 9. जितनी ऊँची आवाज़, उतनी गहरी हार
- जितना विलाप, उतनी राजनीतिक मृत्यु
- जितनी नौटंकी, उतनी सीटें ध्वस्त
- जितना “लोकतंत्र खतरे में”, उतना ठगबंधन का भविष्य खतरे में
- आखिरकार, “हार में गरिमा नहीं, तो राजनीति में भविष्य नहीं।”
भारत बदल चुका है। वोटर अब:
- शिकार नहीं
- रणनीतिक नागरिक है
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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