भारत के इतिहास में कुछ घटनाएँ केवल संयोग नहीं होतीं। अगर हम 1991 से 2016 तक की घटनाओं को ध्यान से जोड़कर देखें, तो साफ़ दिखता है कि कांग्रेस नेतृत्व, विदेशी NGOs, वामपंथी ताकतें, pseudo-seculars और अमेरिका/यूरोप की डीप स्टेट एजेंसियाँ एक ही धागे से जुड़ी हैं। इनका मकसद केवल एक था—भारत को कमजोर करना और “फ्री कश्मीर” के एजेंडे को बढ़ावा देना।
🕰️ घटनाओं की शुरुआत – राजीव गांधी की हत्या के बाद
राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को हुई। ठीक एक महीने बाद 21 जून 1991 को “राजीव गांधी फाउंडेशन (RGF)” का गठन किया गया। यह NGO बाद में भारत-विरोधी ताकतों और विदेशी फंडिंग का केंद्र बन गया।
- 1993 में सोनिया गांधी ने RGF की ब्रिटेन शाखा खोली। इसके बाद वे अमेरिका गईं। उसी साल, जॉर्ज सोरोस ने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) की शुरुआत की। और फिर 1994 में एक नया NGO – FDL-AP बना, जिसका मुख्य लक्ष्य था – “फ्री कश्मीर”।
- हैरानी की बात यह है कि सोनिया गांधी इस NGO की सह-अध्यक्ष बनीं और OSF इसका बड़ा फंडर था। यानी कांग्रेस नेतृत्व सीधे उस नेटवर्क से जुड़ा था, जो “स्वतंत्र कश्मीर” के लिए काम कर रहा था।
🛫 कंधार अपहरण और अमेरिकी भूमिका
- 1999 में IC-814 विमान अपहरण हुआ। विमान UAE में उतरा, लेकिन वहाँ अमेरिकी राजदूत को अंदर जाने दिया गया और भारतीय राजदूत को रोक दिया गया।
- फिर विमान कंधार पहुँचा, जहाँ तालिबान का राज था और वही तालिबान उस समय अमेरिका का मित्र था।
- आतंकियों ने 36 कैदियों की रिहाई मांगी, लेकिन सौदेबाजी के बाद मसूद अजहर समेत 3 आतंकियों को छोड़ा गया।
👉 ध्यान दें – मसूद अजहर को 1995 से 1998 के बीच भारतीय जेल में FBI ने कई बार इंटरव्यू किया था।यानी अमेरिका पहले से जानता था कि यह आतंकी उनके “काम का आदमी” है।
- रिहाई के बाद मसूद अजहर ने ISI की मदद से जैश-ए-मोहम्मद बनाया, जिसका लक्ष्य भी “फ्री कश्मीर” था।
🌍 सोनिया गांधी की रहस्यमयी विदेश यात्राएँ
- 2001 में सोनिया गांधी अपने सहयोगियों के साथ अमेरिका गईं। इससे पहले वे ब्रिटेन और आइसलैंड (Tax Havens) गईं। अमेरिका में उन्होंने काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस (CFR)और हेनरी किसिंजर से बंद कमरे में मुलाकात की।
👉 CFR वही संस्था है जो अमेरिकी राष्ट्रपति तक को कंट्रोल करती है।
👉 संसद पर हमला (13 दिसंबर 2001) जैश-ए-मोहम्मद ने किया और उसी दिन सोनिया गांधी संसद से पहले ही निकल गई थीं।
- 2004 चुनाव जीतकर कांग्रेस सत्ता में आई। सोनिया गांधी ने NAC बनाई जिसमें हर्ष मंदर और अरुंधति रॉय जैसे लोग शामिल हुए—जो सीधे सोरोस के नेटवर्क से जुड़े थे।
🕵️ NAC, शहरी नक्सल और आतंकियों की मदद
- NAC और HRLN जैसे NGOs ने भारत में नक्सलियों और अलगाववादियों को मदद दी।
- 2004 में कांग्रेस सरकार का पहला बड़ा फैसला था – POTA (आतंकवाद विरोधी कानून) हटाना।
- 2010 में कांग्रेस ने “सद्भावना” दिखाने के नाम पर 25 आतंकियों को छोड़ा, जिनमें लतीफ़ भी था।
- यही लतीफ़ बाद में 2016 में पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड बना।
क्या यह महज़ संयोग है? या फिर कांग्रेस की नीतियों का सीधा परिणाम?
🚨 कांग्रेस और विदेशी ताकतों का गठजोड़
- RTI रिपोर्ट के मुताबिक 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी की विदेश यात्राओं का कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं मिला।
- कांग्रेस प्रवक्ताओं ने इसे “मेडिकल यात्राएँ” बताया, लेकिन असली एजेंडा छुपाया गया।
Tax Havens में यात्राएँ
- अमेरिका और ब्रिटेन में CFR और सोरोस नेटवर्क से मुलाकातें
- NAC के जरिए भारत में शहरी नक्सल और अलगाववादियों को ताकत देना
- आजकल यह काम राहुल गांधी कर रहे हैं जो कि एक चिंताजनक विषय है।
👉 सब घटनाएँ बताती हैं कि कांग्रेस ने बार-बार भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदुओं के हितों से समझौता किया।
⚔️ असली तस्वीर
अगर हम सभी कड़ियों को जोड़ें, तो तस्वीर साफ़ है:
- RGF → विदेशी NGOs → सोरोस → फ्री कश्मीर एजेंडा
- कंधार अपहरण → FBI की भूमिका → मसूद अजहर और जैश
- संसद हमला और सोनिया गांधी की रहस्यमयी टाइमिंग
- NAC और शहरी नक्सलियों को बढ़ावा
- POTA हटाना और आतंकियों की रिहाई
- लतीफ़ की रिहाई और पठानकोट हमला
यह सब केवल संयोग नहीं हो सकता। यह एक गहरी साज़िश थी – भारत को कमजोर करने, हिंदुओं को असुरक्षित करने और मोदी जैसी मज़बूत सरकार को रोकने की।
भारत के असली दुश्मन केवल बाहर नहीं हैं। सबसे खतरनाक दुश्मन भीतर बैठे हैं – कांग्रेस, वामपंथी, pseudo-seculars, विदेशी NGOs और उनका मास्टरमाइंड सोरोस।
👉 अगर हम मोदी जी को पूर्ण बहुमत देकर मज़बूत नहीं बनाएंगे, तो भारत भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी स्थिति में पहुँच सकता है, जहाँ हिंदू आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
🙏 इसलिए हिंदू समाज को अब एकजुट होकर तय करना होगा –
भारत को बचाना है, या कांग्रेस और विदेशी ताकतों के हवाले करना है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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