डीप स्टेट, विदेशी NGOs और भारत-विरोधी साज़िश
- भारत आज उस मुकाम पर खड़ा है जहाँ केवल सीमाओं पर दुश्मनों से ही नहीं, बल्कि भीतर से चल रही डीप स्टेट जैसी गहरी साज़िशों से भी लड़ना पड़ रहा है।
- हम अक्सर मानते हैं कि देश की सबसे बड़ी चुनौतियाँ पाकिस्तान, चीन या आतंकवाद हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि विदेशी डीप स्टेट नेटवर्क और उनकी NGOs भारत की जड़ों को खोखला करने का सबसे खतरनाक हथियार बन चुके हैं।
- लद्दाख की हालिया घटनाएँ इसका सबसे ताज़ा और बड़ा उदाहरण हैं। सोनम वांगचुक, जिन्हें लंबे समय से “सामाजिक कार्यकर्ता”, “पर्यावरण प्रेमी” और यहाँ तक कि फिल्मों के जरिए “आदर्श शिक्षक” की छवि दी गई, असल में विदेशी हितों के लिए काम करने वाले एक मोहरे के रूप में सामने आए हैं।
🎭 कैसे बनाया गया एक “लोकल हीरो”
- यह रणनीति बिल्कुल नई नहीं है। विदेशी डीप स्टेट और उनकी NGOs पहले किसी लोकप्रिय व्यक्ति को चुनती हैं, फिर उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों, मीडिया और फिल्मों के जरिए “हीरो” के रूप में पेश करती हैं।
- बांग्लादेश का उदाहरण: मोहम्मद यूनुस को “गरीबों का मसीहा” और नोबेल विजेता बनाकर खड़ा किया गया, फिर उसी को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया।
- भारत का उदाहरण: सोनम वांगचुक, जिन्हें “थ्री इडियट्स” फिल्म के जरिए घर-घर में पहचान दिलाई गई। उसके बाद NGOs और विदेशी फंडिंग नेटवर्क ने उन्हें अपना मोहरा बनाया।
🕵️♂️ वांगचुक का असली चेहरा
- CBI की जांच में सामने आया कि वांगचुक के 9 बैंक खातों में से 8 फर्जी थे।
- उनकी संस्था पर FCRA उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे।
- उनके NGO के जरिए विदेशी फंडिंग आई, जिसका इस्तेमाल संवेदनशील इलाकों में आंदोलन और अस्थिरता फैलाने में हुआ।
- सरकार ने साफ कहा कि लद्दाख में जो हिंसा भड़की, उसमें वांगचुक का हाथ था।
- उन्होंने “अरब स्प्रिंग” और “नेपाल के GenZ आंदोलन” जैसे उदाहरण देकर लोगों को गुमराह किया और देशविरोधी नारों के साथ भीड़ को उकसाया।
🔥 लद्दाख की हिंसा – एक सुनियोजित षड्यंत्र
- 24 सितंबर 2025 को वांगचुक के भाषणों के बाद भीड़ भड़क उठी।
- सरकारी कार्यालयों को आग लगाई गई।
- पुलिस और CRPF पर हमला हुआ, 30 से ज्यादा जवान घायल हुए।
- पब्लिक प्रॉपर्टी का भारी नुकसान हुआ।
यह सब उस समय हुआ जब सरकार पहले ही लद्दाख के लिए बड़े-बड़े सुधार कर चुकी थी:
- अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84%।
- परिषदों में महिलाओं को 33% आरक्षण।
- भोटी और पुर्गी को आधिकारिक भाषा का दर्जा।
- 1,800 पदों पर भर्ती।
स्पष्ट है कि मुद्दा जनता की समस्या का समाधान नहीं बल्कि अशांति और अराजकता फैलाना था।
🌐 डीप स्टेट और NGOs का असली एजेंडा
- यह घटना केवल एक व्यक्ति या एक संगठन का मामला नहीं है। यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।
डीप स्टेट और विदेशी NGOs की रणनीति होती है:
- किसी स्थानीय “लोकप्रिय चेहरे” को अपनी NGO से जोड़ना।
- उसे खरीदकर “सामाजिक कारणों” के नाम पर भारत-विरोधी एजेंडा चलाना।
- पर्यावरण, मानवाधिकार और अल्पसंख्यक अधिकार जैसी संवेदनशील बातों का उपयोग करके प्रोजेक्ट्स रोकना और अस्थिरता फैलाना।
- सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि खराब करना।
यह सिर्फ लद्दाख तक सीमित नहीं है। देशभर में कई NGOs इसी टूलकिट पर काम कर रहे हैं। इनके छिपे हुए एजेंडे भारत की सुरक्षा, विकास और एकता को चुनौती दे रहे हैं।
⚔️ अब ज़रूरी है निर्णायक कदम
भारत सरकार को अब और देर नहीं करनी चाहिए।
- सभी विदेशी फंडेड NGOs की सख्त जांच होनी चाहिए।
- FCRA उल्लंघन करने वाले संगठनों और व्यक्तियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
- जनता को जागरूक करना होगा कि हर आंदोलन “सामाजिक कारण” के नाम पर सही नहीं होता, उसके पीछे छिपा एजेंडा भी समझना होगा।
- मीडिया और सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे झूठे नैरेटिव्स का जवाब सच्चाई और तथ्यों से दिया जाना चाहिए।
✊ राष्ट्रहित सर्वोपरि
- भारत का संविधान और कानून सबके लिए समान है। चाहे व्यक्ति कितना भी बड़ा या “लोकप्रिय” क्यों न हो, कानून से ऊपर कोई नहीं।
- आज ज़रूरी है कि राष्ट्रवादी ताक़तें, हिंदुत्व संगठन, धार्मिक नेता और देशभक्त युवा एकजुट होकर इस साजिश का मुकाबला करें।
- यह केवल किसी सरकार का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे भारत के भविष्य और हमारी सनातन संस्कृति की रक्षा का प्रश्न है।
- लद्दाख की घटनाएँ यह साबित करती हैं कि डीप स्टेट और विदेशी NGOs भारत को अस्थिर करने के लिए हर हथकंडा अपना रहे हैं।
- अगर हम समय रहते नहीं चेते, तो यही साजिशें कल को और बड़े संकट का रूप ले सकती हैं।
- हमें एकजुट होकर यह संदेश देना होगा कि भारत किसी विदेशी एजेंडा का मोहरा नहीं बनेगा।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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