भारतीय राजनीति के बदलते परिदृश्य में, पत्रकार दीपक चौरसिया भाजपा और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को समझने के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उनके विचार भाजपा के भीतर हुए बदलावों और देश की राजनीतिक व नैतिक दिशा पर इसके व्यापक प्रभावों को उजागर करते हैं।
मोदी से पहले और बाद की भाजपा: एक बदलाव की कहानी
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, भाजपा ने भगवान राम के आदर्शों से प्रेरित उच्च नैतिक और सांस्कृतिक मानदंडों का पालन किया—नैतिकता, मर्यादा और धर्म की प्रमुखता पर जोर दिया। हालांकि, ये आदर्श चुनावी सफलता में नहीं बदल सके और पार्टी को पूर्ण बहुमत पाने में संघर्ष करना पड़ा।
दीपक चौरसिया के प्रमुख उदाहरण:
अन्य पार्टियों के बड़े भ्रष्टाचार घोटालों के बावजूद, भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को केवल ₹1 लाख रिश्वत लेने पर तुरंत हटा दिया।
ताबूत घोटाले के समय, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने इस्तीफा दे दिया, जिससे पार्टी की जवाबदेही दिखी। इसके बावजूद चुनावी परिणामों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
जब कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया, लेकिन इसका राजनीतिक लाभ नहीं मिला।
इन घटनाओं से पता चलता है कि नैतिक श्रेष्ठता के बावजूद भाजपा को व्यापक जनसमर्थन पाने में कठिनाई हुई।
मोदी का आगमन: राम से कृष्ण तक का बदलाव
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व ने भाजपा के लिए एक नया अध्याय लिखा, जिसमें भगवान राम के मार्ग से भगवान कृष्ण के रणनीतिक कर्मयोगी मार्ग की ओर बदलाव हुआ।
दीपक चौरसिया के अनुसार, मोदी ने कृष्ण का दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें नैतिकता के बजाय बुराई के विनाश को प्राथमिकता दी गई।
आज की राजनीतिक स्थिति में, जहां देश आंतरिक और बाहरी खतरों से घिरा है, चौरसिया तर्क देते हैं कि केवल नैतिकता से सत्ता नहीं टिक सकती। देश की रक्षा के लिए, मोदी के नेतृत्व में भाजपा कूटनीति, संवाद और रणनीतिक गठबंधनों जैसे सभी साधनों का उपयोग करती है। चौरसिया का मानना है कि यह बदलाव भारत के खिलाफ साजिशों को रोकने के लिए जरूरी है।
महाभारत से सबक
चौरसिया महाभारत के उदाहरण देकर व्यावहारिक राजनीति की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि कर्ण का वध कर दें, भले ही उसका रथ फंसा हो, क्योंकि धर्म की रक्षा पारंपरिक नैतिकता से ऊपर है।
इसी तरह, चौरसिया सुझाव देते हैं कि आज के संदर्भ में भी निर्णायक कार्रवाई, चाहे वह क्रूर ही क्यों न दिखे, राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
अटल बिहारी वाजपेयी की नैतिकता बनाम मोदी की रणनीति
अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को याद करते हुए, चौरसिया बताते हैं कि वाजपेयी ने अपनी सरकार को केवल एक वोट से गिर जाने दिया क्योंकि वे नैतिकता के प्रति प्रतिबद्ध थे। यह निर्णय, हालांकि नैतिक था, लेकिन इसने भ्रष्ट ताकतों को देश का शोषण करने का मौका दिया।
इसके विपरीत, मोदी सरकार सत्ता बनाए रखने को प्राथमिकता देती है ताकि देश की रक्षा की जा सके। कूटनीति से लेकर रणनीतिक प्रबंधन तक, मोदी के नेतृत्व में भाजपा यह सुनिश्चित करती है कि पिछली गलतियों को दोहराया न जाए। इस व्यावहारिक दृष्टिकोण ने देश की सुरक्षा को मजबूत किया और इसकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया।
राजनीति में सत्ता का महत्व
चौरसिया जोर देते हैं कि सत्ता प्रभावी शासन की नींव है। वे “उपाय-चतुष्टय” (संवाद, दान, दंड और भेद) का उल्लेख करते हैं और कहते हैं कि आधुनिक राजनीति में ये तरीके अपरिहार्य हैं। आज की राजनीतिक स्थिति में, राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर नैतिक दुविधा की कोई जगह नहीं है।
एक भूला हुआ ऐतिहासिक प्रसंग
मोदी के नेतृत्व में बदलाव को रेखांकित करने के लिए, चौरसिया 1955 की एक घटना का उल्लेख करते हैं जब सऊदी राजा शाह सऊद भारत आए थे। उनके वाराणसी दौरे के दौरान मंदिरों को छिपा दिया गया था और इस्लामी प्रतीक वाले झंडे प्रमुखता से लगाए गए थे। इसके विपरीत, मोदी और योगी आदित्यनाथ के शासन में विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत भारत की आध्यात्मिक विरासत के भव्य प्रदर्शन के साथ किया जाता है, जिसमें गंगा आरती और मंदिर यात्राएं शामिल हैं।
नई राजनीतिक धर्मनीति
दीपक चौरसिया का संदेश स्पष्ट है: आज की राजनीतिक स्थिति में केवल नैतिकता को मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं बनाया जा सकता। भारत की पहचान, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए सत्ता बनाए रखना अनिवार्य है। रणनीतिक कार्रवाई पर आधारित व्यावहारिक राजनीति खतरों का मुकाबला करने और देश के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
जय हिंद!
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