देश में कानून और न्याय का उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। लेकिन हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि कुछ वकील और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) कानून का इस्तेमाल राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त अपराधियों की पैरवी के लिए कर रहे हैं। कासगंज मामले में न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी का ऐतिहासिक फैसला इस “मायाजाल” को उजागर करता है।
कासगंज की घटना और न्यायालय का फैसला
26 जनवरी, 2018 को कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान चंदन गुप्ता की निर्मम हत्या मुस्लिम समुदाय के 28 लोगों द्वारा की गई थी।
3 जनवरी, 2025 को NIA कोर्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने 28 आरोपियों को दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
कोर्ट ने 2 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
इस ऐतिहासिक फैसले में जज त्रिपाठी ने न केवल आरोपियों को सजा दी, बल्कि वकीलों और NGOs के पैसे के मायाजाल को लेकर कठोर टिप्पणी की।
NGOs और वकीलों की भूमिका पर सवाल
जस्टिस त्रिपाठी ने अपने आदेश में कहा कि:
- NGOs राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के आरोपियों को कानूनी सहायता देकर बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
- इन संगठनों की फंडिंग, उनके उद्देश्यों और उनके कानूनी समर्थन की गहन जांच होनी चाहिए।
- ये NGOs बड़े-बड़े वकीलों को भुगतान कर आतंकियों और अपराधियों की पैरवी कराते हैं।
उन्होंने आदेश की एक कॉपी केंद्रीय गृह मंत्रालय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजकर इस मुद्दे पर कार्यवाही करने की सिफारिश की।
न्यायालय द्वारा नामित NGOs
फैसले में इन सात संगठनों को विशेष रूप से नामित किया गया:
1.सिटीजन्स ऑफ जस्टिस एंड पीस, मुंबई
- पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, दिल्ली
- रिहाई मंच
- न्यूयॉर्क की अलायन्स फॉर जस्टिस एंड एकाउंटेबिलिटी
- इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, वाशिंगटन डीसी
- साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप, लंदन
- जमीयत उलेमा हिंद का लीगल सेल
देश के लिए खतरा: NGOs की फंडिंग और वकीलों की फीस
न्यायाधीश ने सवाल उठाया:
- ये NGOs आतंकियों और अपराधियों को समर्थन देने के लिए फंडिंग कहां से पाते हैं?
- क्या ये पैसे विदेशी ताकतों या आतंकवादी संगठनों से आ रहे हैं?
- बड़े-बड़े वकीलों की फीस का भुगतान कौन करता है?
हाई-प्रोफाइल वकीलों और “रोहिंग्या मामला”
2017 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित रोहिंग्या मामले में 6 बड़े वकील जैसे डॉ. राजीव धवन, प्रशांत भूषण, कपिल सिब्बल, आदि शामिल हुए।
ये वकील भिखारी जैसे दिखने वाले दो रोहिंग्याओं (मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर) की पैरवी कर रहे थे।
सवाल यह है कि इन वकीलों की भारी फीस कौन दे रहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इस मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया, जो देश की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।
भविष्य के लिए न्यायिक सुधार
जस्टिस त्रिपाठी का निर्णय न्याय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर जोर देता है।
- वकीलों की फीस सार्वजनिक होनी चाहिए।
फीस का भुगतान केवल चेक के माध्यम से हो।
वकीलों की आय और संपत्ति की जांच हो।
- NGOs की फंडिंग का ऑडिट अनिवार्य हो।
यह सुनिश्चित किया जाए कि राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए पैसा न लगे।
देश की जनता के लिए संदेश
- जागरूक बनें: यह समझें कि कुछ वकील और NGOs अपने स्वार्थ के लिए देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
- सत्य का समर्थन करें: कानून का उद्देश्य न्याय है, न कि अपराधियों को बचाना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दें: ऐसे संगठनों और व्यक्तियों का पर्दाफाश करें, जो देश-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं।
- जवाबदेही की मांग करें: वकीलों और NGOs की पारदर्शिता सुनिश्चित करना हर नागरिक का कर्तव्य है।
जस्टिस विवेकानंद शरण त्रिपाठी का फैसला एक उदाहरण है कि कैसे एक न्यायाधीश ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए न्याय किया। युवाओं को चाहिए कि वे इस विषय पर गहराई से सोचें और देश के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए अपनी आवाज उठाएं।
🇮🇳 जय हिंद! वंदे मातरम्!