I. प्रस्तावना – मौन की कीमत अब बहुत महंगी है
- भारत में आज जो स्थिति बन रही है, वह केवल राजनीतिक या सामाजिक नहीं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत अस्तित्व का प्रश्न बन चुकी है।
- हर दिन किसी न किसी रूप में हिंदू आस्था, देवी-देवताओं या मंदिरों पर हमला हो रहा है — कभी सोशल मीडिया पर अपमान, कभी सड़कों पर हिंसा, तो कभी प्रशासनिक उपेक्षा।
- इन सबके पीछे एक सुनियोजित षड्यंत्र है — हिंदू समाज को डराकर निष्क्रिय करने का।
- हिंदू जितना सहिष्णु है, उतना ही उसका मौन अब उसके खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है।
- हमारी सहनशीलता को कायरता समझ लिया गया है।
- और इस चुप्पी का फायदा उठाकर कुछ ताकतें देश के भीतर ही “धार्मिक युद्ध” छेड़ चुकी हैं।
II. षड्यंत्र का जाल – समाज को तोड़ने की चाल
यह कोई एक-दो घटनाओं तक सीमित नहीं है। यह दशकों से चल रही एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसमें देश और धर्म को कमजोर करने के लिए विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है।
1. मंदिरों और धर्मस्थलों पर हमले:
- देशभर में कई बार मंदिरों को निशाना बनाया गया।
- मूर्तियों को तोड़ा गया, धार्मिक जुलूसों पर पत्थरबाजी हुई।
- सरकारें और मीडिया अक्सर इन घटनाओं को “छोटी घटनाएं” बताकर टाल देती हैं।
2. देवी-देवताओं का अपमान:
- फिल्मों, वेब सीरीज, और सोशल मीडिया पर जानबूझकर हिंदू आस्थाओं का मज़ाक उड़ाया जाता है।
- धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का कवच मिल जाता है।
3. विदेशी NGO और फंडिंग नेटवर्क:
- अनेक तथाकथित सामाजिक संगठन विदेशी NGOs से पैसा लेकर “सुधार” और “मानवाधिकार” के नाम पर देश में जहर फैला रहे हैं।
- कांग्रेस शासन के दौरान ये चैनल “कमीशन और किकबैक” के माध्यम थे, अब ये चैनल विदेशी एजेंडा और दंगे-प्रदर्शन फंडिंग के साधन बन गए हैं।
4. “जिहाद” की अमानवीय मानसिकता:
- लव जिहाद, लैंड जिहाद, पॉपुलेशन जिहाद — ये सब अलग-अलग रूपों में समाज को कमजोर करने की रणनीतियां हैं।
- इस विचारधारा का उद्देश्य शांति या धर्म नहीं, बल्कि विस्तारवाद और आतंक है।
III. ठोस समाधान – केवल नारे नहीं, रणनीति
- अब वक्त आ गया है कि हिंदू समाज केवल “चिंता” नहीं, बल्कि “चेतना” और “चेतावनी” में परिवर्तित हो।
- यह लड़ाई बंदूक की नहीं, संगठन, जागरूकता और अनुशासन की है।
1. समाज स्तर पर संगठन:
हर मोहल्ले, गाँव, मंदिर और पंचायत में धर्म रक्षा समिति का गठन हो। इन समितियों का कार्य होगा –
- संदिग्ध गतिविधियों पर नज़र रखना,
- स्थानीय प्रशासन को तुरंत सूचना देना,
- और झूठी अफवाहों का मुकाबला करने के लिए सही जानकारी फैलाना।
2. धर्मगुरुओं की भूमिका:
- धर्मगुरु केवल प्रवचन देने तक सीमित न रहें।
- वे लोगों में राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और धर्मरक्षा का भाव जागृत करें।
- हर मंदिर को केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि शिक्षा, सेवा और सुरक्षा केंद्र बनाया जाए।
3. कानूनी और प्रशासनिक पहल:
- न्यायालयों को ऐसे लोगों की याचिकाएं स्वीकार नहीं करनी चाहिए जो देशविरोधी या विघटनकारी एजेंडे से प्रेरित हों।
- पुलिस और खुफिया एजेंसियों को धर्म-आधारित हिंसा फैलाने वाले संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
- सोशल मीडिया पर धार्मिक नफरत फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून लागू हों।
4. शिक्षा और जागरूकता:
- बच्चों और युवाओं को अपने धर्म, इतिहास और संस्कृति की सच्ची शिक्षा मिले।
- स्कूलों और कॉलेजों में भारतीय सभ्यता और मूल्यों पर आधारित नैतिक शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
- सोशल मीडिया पर युवाओं और जनता को “फेक नैरेटिव” से बचाने के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान चलाया जाए।
5. आत्मरक्षा और एकता:
- हर हिंदू को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेना चाहिए — मानसिक, शारीरिक और डिजिटल सभी रूपों में।
- समाज के भीतर जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर भेदभाव छोड़कर एकजुटता का भाव मजबूत करना होगा।
“हम सब सनातनी हैं” — यही हमारी पहचान, यही हमारी शक्ति है।
IV. धर्मयुद्ध का सही अर्थ – सत्य, संगठन और सेवा
- यह युद्ध किसी धर्म या व्यक्ति के खिलाफ नहीं है, यह अधर्म और अन्याय के खिलाफ है।
- धर्मयुद्ध का अर्थ हिंसा नहीं, बल्कि सत्य की रक्षा और अधर्म का प्रतिकार है।
- अगर कोई हमारी संस्कृति पर हमला करे, तो उसे तर्क और सत्य से परास्त करें।
- अगर कोई समाज को तोड़ने की कोशिश करे, तो संगठन से उसका जवाब दें।
- अगर कोई विदेशी ताकत भारत को कमजोर करने की कोशिश करे, तो एकता और देशभक्ति से उसे विफल करें।
“जब धर्म की रक्षा स्वयं धर्मनिष्ठ लोग नहीं करेंगे, तो अधर्म का राज्य स्थापित हो जाएगा।”
V. अब जागो भारत, अब नहीं तो कभी नहीं
- यह समय है जब हर हिंदू को अपने भीतर के अर्जुन और हनुमान को जगाना होगा।
- हमारे शत्रु न तो अदृश्य हैं और न ही अजेय — वे केवल हमारे बिखराव और मौन से ताकत पाते हैं।
- अगर आज हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी।
अब केवल प्रश्न यही है
- क्या हम फिर से “दासता के युग” में लौटेंगे,
- या “विजय के युग” की नींव रखेंगे?
उत्तर हमारे हाथ में है।
- यह राजनीति नहीं — यह धर्मयुद्ध है, और यह हमारी अस्तित्व रक्षा की पुकार है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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