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एक चौराहे पर खड़ा भारत स्वार्थ से सेवा की ओर

एक चौराहे पर खड़ा भारत: स्वार्थ से सेवा की ओर

आज के इस तेज़ रफ्तार युग में, जहाँ जीवन केवल करियर, पैसे और मनोरंजन तक सिमट गया है — हम भारतीय कहीं न कहीं अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना से दूर होते जा रहे हैं।

 

अहंकार और लालच की बेड़ियाँ

सच मानिए — आज हम में से अधिकतर अहंकारी, आत्मकेंद्रित और भौतिकतावादी बन चुके हैं। नौकरी हो, व्यवसाय हो या कोई पेशा — हमारा मुख्य उद्देश्य बन गया है ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना। हमारे जीवन की प्राथमिकताएं सीमित हैं: स्वयं, परिवार और मनोरंजन। समाज, समुदाय और देश के लिए सोचने का समय या भावना हमारे पास शायद ही बची हो।

हमारी प्रवृत्ति बन चुकी है कि न्यूनतम प्रयास में अधिकतम लाभ लिया जाए। हम भले ही कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें करें, लेकिन असल ज़िंदगी में हम अपने कहे हुए सिद्धांतों को अपनाते नहीं। यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है — जिसे दूर किए बिना हम न समाज को सुधार सकते हैं, न सनातन धर्म को बचा सकते हैं, और न भारत को विकसित राष्ट्र बना सकते हैं।

 

सामूहिक कर्तव्य की चुपचाप होती अनदेखी

हम विचारों के धनी हैं, उपदेश देने में माहिर हैं — लेकिन क्रियान्वयन में पिछड़े हैं। सोशल मीडिया पर देशभक्ति के मैसेज भेजते हैं, चाय पर बहस करते हैं, लेकिन जब वास्तव में कुछ करने की बारी आती है, तो पीछे हट जाते हैं। यह मानसिकता — “कोई और करेगा” — हमारी सबसे बड़ी हार है

देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आज आवश्यकता है कर्मवीरों की, विचारकों की नहीं। लेकिन अफ़सोस, हमारी अधिकांश ऊर्जा आपसी मतभेद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और व्यक्तिगत अहम में नष्ट हो जाती है।

 

सनातन धर्म पुकार रहा है — क्या हम सुन रहे हैं?

सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह हमारे अस्तित्व की नींव है। आज जब इस नींव को चुनौतियाँ मिल रही हैं — हमें एकजुट होकर उसका संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए। लेकिन हम उलझे हुए हैं — राजनीति, स्वार्थ, और निष्क्रियता में।

अगर हमने अभी जागरूकता नहीं दिखाई, तो हमारी पीढ़ियाँ एक ऐसे भारत में जीएंगी जो अपने मूल्यों से कट चुका होगा।

 

हमें क्या करना चाहिए — अभी, तुरंत

  • अहंकार छोड़ें — “मेरी सोच ही सही है” वाली मानसिकता से बाहर आएं। धर्म और देश के लिए मिलकर कार्य करें।
  • समय निकालें — हर सप्ताह समाज या राष्ट्रहित में एक घंटा भी दें, तो परिवर्तन संभव है।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक प्रयासों को समर्थन दें — गुरुकुल, संस्कार केंद्र, राष्ट्रवादी संस्थाओं को सहयोग करें।
  • जो बोलते हैं, उसे जीवन में उतारें — सत्य, सेवा, अनुशासन और दायित्व को व्यवहार में लाएं।
  • मतभेदों को भुलाकर एक हों — हमारी विविधता हमारी शक्ति है। एकजुट होकर कार्य करें।
  • संस्कारवान पीढ़ी तैयार करें — बच्चों को भारत के गौरव से परिचित कराएं और सेवा की भावना सिखाएं।

समय है — जागने का, उठने का, करने का

भारत इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अगर आज हम नहीं जागे, तो स्वार्थ, अहंकार और निष्क्रियता हमारे धर्म, संस्कृति और राष्ट्र को कमजोर कर देंगे।

आइए, हम केवल दर्शक न बनें — कर्तव्यपथ पर चलने वाले योद्धा बनें।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था:
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
आज वह पुकार फिर से हो रही है।

क्या हम उस पुकार का उत्तर देंगे?

🇳🇪 जय भारत, वन्देमातरम 🇳🇪

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