भारत में सामाजिक न्याय और समानता के नाम पर कई वर्गों को विशेष अधिकार और आरक्षण दिए गए हैं, ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके। लेकिन इसी व्यवस्था के बीच एक ऐसा वर्ग भी है जिसे न तो कोई विशेष अधिकार मिला, न ही कोई सहूलियत — और आज वही वर्ग सबसे ज्यादा अनदेखा किया जा रहा है। यही वर्ग है जनरल कैटेगरी, जिसकी उपेक्षा अब असहनीय होती जा रही है।
एक ऐसा वर्ग जो न राजनीति में सुरक्षित है, न नीति में, न शिक्षा में और न नौकरियों में। जिस वर्ग के छात्र आज भी अपने दम पर, अपनी मेहनत के बल पर, दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाएं निकालते हैं — लेकिन सिर्फ इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनके पास जाति या धर्म आधारित आरक्षण नहीं है।
🔍 राजनीतिक षड्यंत्र और आरक्षण का असली उद्देश्य:
आजादी के समय संविधान निर्माताओं ने सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए आरक्षण की नीति लागू की थी — लेकिन सिर्फ 10 सालों के लिए।
उद्देश्य था:
- पिछड़े वर्गों को शिक्षा और रोजगार में अवसर देना
- उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना
- उनके आत्मविश्वास और योग्यता को बढ़ावा देना
- लेकिन यह आरक्षण कभी खत्म नहीं हुआ।
वजह?
- भारत के नेताओं ने इस नीति को एक वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया।
- हर चुनाव में नए-नए जाति और धर्म के समूहों को आरक्षण का लालच देकर वोट खींचे गए।
इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा भुगता — जनरल कैटेगरी के लोगों ने।
⚠️ वर्तमान स्थिति – एक छात्र का दर्द, लाखों की पीड़ा:
- एक गरीब जनरल छात्र जिसकी पारिवारिक आय ₹3 लाख से कम है, उसे कॉलेज की फीस ₹30,000 से ज्यादा चुकानी पड़ती है।
- वही आरक्षित वर्ग का छात्र जिसकी आय ₹6 लाख से अधिक है, सिर्फ ₹6,000 फीस देता है और स्कॉलरशिप भी पाता है।
- मेस फीस, हॉस्टल फीस, कोचिंग, किताबें — सब जनरल छात्र खुद के पैसों से जुटाता है।
- CAT में 99 परसेंटाइल लाने वाला जनरल छात्र IIM नहीं पहुंच पाता, लेकिन 63 परसेंटाइल वाला आरक्षित छात्र IIM Ahmedabad चला जाता है।
- प्लेसमेंट में 8.1 GPA वाला जनरल छात्र रिजेक्ट होता है, जबकि 6.9 GPA वाला आरक्षित सिलेक्ट हो जाता है।
- GATE स्कोर में अधिक अंक लाने के बावजूद जनरल छात्र को स्कॉलरशिप नहीं मिलती, जबकि कम अंक वाले को सरकारी पैसा और इंटर्नशिप दोनों मिलते हैं।
❓ सवाल ये है:
- क्या योग्यता का कोई मूल्य नहीं?
- क्या गरीब जनरल छात्र को कोई अधिकार नहीं?
- क्या देश को वोटबैंक राजनीति की भेंट चढ़ा दिया गया?
🧨 अब धर्म के आधार पर आरक्षण – एक नया खतरा:
- आज पश्चिम बंगाल, कर्नाटक जैसे विपक्षी शासित राज्य मुस्लिम समुदाय को विशेष आरक्षण देने की तैयारी कर चुके हैं या दे चुके हैं।
- अब आरक्षण धर्म के आधार पर भी बंट रहा है।
- क्या ये संविधान सम्मत है?
- क्या ये भारत के “धर्मनिरपेक्ष” स्वरूप का अपमान नहीं है?
- क्या ये अन्य समुदायों के अधिकारों की सीधी अवहेलना नहीं है?
🔁 समाधान क्या है? – समय की मांग:
- आरक्षण जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति और योग्यता के आधार पर हो।
- आरक्षण केवल शिक्षा तक सीमित हो, सरकारी नौकरियों, पदोन्नति, और संवेदनशील पदों पर सिर्फ योग्यता आधारित चयन हो।
- संविधान में संशोधन कर एक समान कानून लागू किया जाए, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो, चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से हों।
🛑 आरक्षण का दुष्परिणाम – देश की क्षमता को नुकसान:
- आज देश की कई महत्वपूर्ण संस्थाओं में अयोग्य लोग पदों पर बैठे हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें आरक्षण मिला।
- इससे प्रशासनिक क्षमता, नीति निर्माण, और सेवा वितरण बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
- देश को आगे बढ़ाने के लिए हमें प्रतिभा आधारित व्यवस्था को अपनाना ही होगा।
🔊 अब संसद, न्यायपालिका और नौकरशाही को जागना होगा!
अब चुप्पी अपराध है।
देश के भविष्य, शिक्षा की गुणवत्ता और नौकरियों की गरिमा को बचाने के लिए संसद को सशक्त नीति लानी होगी, न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना होगा और नौकरशाही को निष्पक्षता से काम करना होगा।
अब “समानता का अधिकार” सिर्फ किताबों तक नहीं, जमीनी हकीकत बनना चाहिए।
🚩 यदि आप इस अन्याय के खिलाफ हैं, तो इस आवाज को फैलाएं!
जनरल कैटेगरी की पीड़ा अब देश की चेतना बने, तभी बदलाव आएगा।
यह किसी जाति या वर्ग के खिलाफ नहीं, बल्कि न्याय और समानता की मांग है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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