कभी-कभी विचार आता है कि 1500 ईस्वी के बाद के ब्रिटिश कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जो ठंडे प्रदेश से निकलकर अनजान रास्तों पर चलकर अजनबी देशों पर शासन करने पहुंचे।
उनकी संख्या और संसाधन भारत जैसे विशाल देश के सामने नगण्य थे। फिर भी, उन्होंने न केवल हमें गुलाम बनाया बल्कि हमारे ही संसाधनों से अपनी समृद्धि और साम्राज्य खड़ा कर लिया।
छोटी संख्या, बड़ा शासन
ब्रिटेन का जनसंख्या और क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है।
उन्होंने दशकों तक नहीं, बल्कि शताब्दियों तक आधी दुनिया पर राज किया।
भारत में, जहाँ करोड़ों की जनसंख्या थी, मात्र हजारों अंग्रेजों ने हमें न केवल गुलाम बनाया, बल्कि हमारे ऊपर अत्याचार और लूटपाट भी की।
क्या यह साहस था या हमारी कमजोरी?
ब्रिटिश इतने कम संख्या में होकर भी हमारे देश में अपनी सत्ता जमाए रहे।
एक जिले में 50 से ज्यादा अंग्रेज नहीं होते थे।
फिर भी, वे लाखों भारतीयों को शासन और दमन से नियंत्रित कर लेते थे।
हमारी अपनी कमजोरी
इतिहास बताता है कि अंग्रेजों ने अपने अत्याचार के लिए भी हमारे ही लोगों का उपयोग किया।
हमने उनकी सेना में भर्ती होकर अपने ही भाइयों पर अत्याचार किए।
चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे गिने-चुने देशभक्तों को हमारी ही समाज ने तिरस्कार किया।
आज वही कायर समाज उन चंद देशभक्तों के नाम की आड़ लेकर अपनी कायरता छुपाने का प्रयास करता है।
अरब के आक्रमणकारी और हमारी असफलता
हमारी गुलामी की कहानी सिर्फ अंग्रेजों तक सीमित नहीं है।
अरब के रेगिस्तान से आए आततायी भी हमारी संस्कृति और स्वाभिमान को रौंद गए।
उन्होंने मंदिर तोड़े, बलात्कार किए, लेकिन हमने इसका संगठित प्रतिरोध नहीं किया।
उनके अत्याचारों के आगे हमने सामाजिक रक्षात्मक उपाय अपनाए:
शादी जल्दी कर ली, ताकि बेटियां बच सकें।
बेटी को जन्मते ही मारने की कुप्रथा शुरू हो गई।
संघर्ष और सबक
हमने अपनी नाकामियों का कभी मंथन नहीं किया।
जब हम पर मुस्लिम आक्रमण हो रहे थे, हमारा समाज ‘कोऊ नृप हो हमें का हानि’ की मानसिकता में फंसा हुआ था।
राजाओं की सुरक्षा को सिर्फ क्षत्रियों का कार्य मान लिया।
परिणामस्वरूप:
राजस्थान और कुछ अन्य क्षेत्रों को छोड़कर पूरा भारत धराशायी हो गया।
जहां-जहां समाज ने एकजुट होकर संघर्ष किया, वहां विजय मिली।
इजरायल से सबक
आज भी इजरायल, जो शत्रुओं से घिरा हुआ है, सुरक्षित है क्योंकि:
वहां का हर नागरिक अपनी धर्म और देश की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
युद्धकाल में सब लोग लड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
इसके विपरीत, हमने हमेशा युद्ध और रक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ एक वर्ग पर डाल दी।
अंग्रेजों के खिलाफ हमारी निष्क्रियता
एक उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण में आता है:
एक युद्ध जीतने के बाद 1000 अंग्रेज सैनिकों ने विजय-जुलूस निकाला।
सड़क के दोनों ओर 20,000 भारतीय खड़े होकर इसे देखते रहे।
अगर वे 20,000 लोग सिर्फ पत्थर या डंडे से भी हमला करते, तो अंग्रेज भाग जाते।
लेकिन यह 20,000 लोग मूक दर्शक बने रहे।
वर्तमान में हमारी स्थिति
आज, अंग्रेजों और मुगलों के स्थान पर नई गद्दार शक्तियां आ गई हैं।
वामपंथी और सेकुलर गद्दार भारत के मूल धर्म और संस्कृति को तोड़ने में लगे हैं।
एक विशेष डायनेस्टी ने सत्ता हथिया रखी है।
लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि:
हम आज भी बंटे हुए हैं।
100 करोड़ होकर भी मूकदर्शक बने रहते हैं।
हमारा दुर्भाग्य और समाधान
जब तक संपूर्ण समाज एकजुट नहीं होगा, देश का दुर्भाग्य समाप्त नहीं होगा।
अगर 1000 साल पहले पूरा समाज क्षत्रिय बनकर लड़ा होता, तो हम कभी गुलाम नहीं होते।
सामान्य परिस्थिति में वर्गीकरण उचित है, लेकिन संकट के समय नीतियों में बदलाव अनिवार्य है।
इतिहास से सबक लें
हमें मूकदर्शक बनने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी।
हर नागरिक को देश और धर्म की सुरक्षा का दायित्व निभाना होगा।
बिना एकजुटता और जागरूकता के, हम इतिहास के दुर्भाग्य को बार-बार दोहराते रहेंगे।
जय श्री राम!
संपूर्ण जागृति ही भारत का भविष्य है।गुलामी से जागृति तक: इतिहास का कठोर सबक
कभी-कभी विचार आता है कि 1500 ईस्वी के बाद के ब्रिटिश कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जो ठंडे प्रदेश से निकलकर अनजान रास्तों पर चलकर अजनबी देशों पर शासन करने पहुंचे।
उनकी संख्या और संसाधन भारत जैसे विशाल देश के सामने नगण्य थे। फिर भी, उन्होंने न केवल हमें गुलाम बनाया बल्कि हमारे ही संसाधनों से अपनी समृद्धि और साम्राज्य खड़ा कर लिया।
छोटी संख्या, बड़ा शासन
ब्रिटेन का जनसंख्या और क्षेत्रफल गुजरात के बराबर है।
उन्होंने दशकों तक नहीं, बल्कि शताब्दियों तक आधी दुनिया पर राज किया।
भारत में, जहाँ करोड़ों की जनसंख्या थी, मात्र हजारों अंग्रेजों ने हमें न केवल गुलाम बनाया, बल्कि हमारे ऊपर अत्याचार और लूटपाट भी की।
क्या यह साहस था या हमारी कमजोरी?
ब्रिटिश इतने कम संख्या में होकर भी हमारे देश में अपनी सत्ता जमाए रहे।
एक जिले में 50 से ज्यादा अंग्रेज नहीं होते थे।
फिर भी, वे लाखों भारतीयों को शासन और दमन से नियंत्रित कर लेते थे।
हमारी अपनी कमजोरी
इतिहास बताता है कि अंग्रेजों ने अपने अत्याचार के लिए भी हमारे ही लोगों का उपयोग किया।
हमने उनकी सेना में भर्ती होकर अपने ही भाइयों पर अत्याचार किए।
चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे गिने-चुने देशभक्तों को हमारी ही समाज ने तिरस्कार किया।
आज वही कायर समाज उन चंद देशभक्तों के नाम की आड़ लेकर अपनी कायरता छुपाने का प्रयास करता है।
अरब के आक्रमणकारी और हमारी असफलता
हमारी गुलामी की कहानी सिर्फ अंग्रेजों तक सीमित नहीं है।
अरब के रेगिस्तान से आए आततायी भी हमारी संस्कृति और स्वाभिमान को रौंद गए।
उन्होंने मंदिर तोड़े, बलात्कार किए, लेकिन हमने इसका संगठित प्रतिरोध नहीं किया।
उनके अत्याचारों के आगे हमने सामाजिक रक्षात्मक उपाय अपनाए:
शादी जल्दी कर ली, ताकि बेटियां बच सकें।
बेटी को जन्मते ही मारने की कुप्रथा शुरू हो गई।
संघर्ष और सबक
हमने अपनी नाकामियों का कभी मंथन नहीं किया।
जब हम पर मुस्लिम आक्रमण हो रहे थे, हमारा समाज ‘कोऊ नृप हो हमें का हानि’ की मानसिकता में फंसा हुआ था।
राजाओं की सुरक्षा को सिर्फ क्षत्रियों का कार्य मान लिया।
परिणामस्वरूप:
राजस्थान और कुछ अन्य क्षेत्रों को छोड़कर पूरा भारत धराशायी हो गया।
जहां-जहां समाज ने एकजुट होकर संघर्ष किया, वहां विजय मिली।
इजरायल से सबक
आज भी इजरायल, जो शत्रुओं से घिरा हुआ है, सुरक्षित है क्योंकि:
वहां का हर नागरिक अपनी धर्म और देश की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
युद्धकाल में सब लोग लड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
इसके विपरीत, हमने हमेशा युद्ध और रक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ एक वर्ग पर डाल दी।
अंग्रेजों के खिलाफ हमारी निष्क्रियता
एक उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण में आता है:
एक युद्ध जीतने के बाद 1000 अंग्रेज सैनिकों ने विजय-जुलूस निकाला।
सड़क के दोनों ओर 20,000 भारतीय खड़े होकर इसे देखते रहे।
अगर वे 20,000 लोग सिर्फ पत्थर या डंडे से भी हमला करते, तो अंग्रेज भाग जाते।
लेकिन यह 20,000 लोग मूक दर्शक बने रहे।
वर्तमान में हमारी स्थिति
आज, अंग्रेजों और मुगलों के स्थान पर नई गद्दार शक्तियां आ गई हैं।
वामपंथी और सेकुलर गद्दार भारत के मूल धर्म और संस्कृति को तोड़ने में लगे हैं।
एक विशेष डायनेस्टी ने सत्ता हथिया रखी है।
लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि:
हम आज भी बंटे हुए हैं।
100 करोड़ होकर भी मूकदर्शक बने रहते हैं।
हमारा दुर्भाग्य और समाधान
जब तक संपूर्ण समाज एकजुट नहीं होगा, देश का दुर्भाग्य समाप्त नहीं होगा।
अगर 1000 साल पहले पूरा समाज क्षत्रिय बनकर लड़ा होता, तो हम कभी गुलाम नहीं होते।
सामान्य परिस्थिति में वर्गीकरण उचित है, लेकिन संकट के समय नीतियों में बदलाव अनिवार्य है।
इतिहास से सबक लें
हमें मूकदर्शक बनने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी।
हर नागरिक को देश और धर्म की सुरक्षा का दायित्व निभाना होगा।
बिना एकजुटता और जागरूकता के, हम इतिहास के दुर्भाग्य को बार-बार दोहराते रहेंगे।
जय श्री राम!
संपूर्ण जागृति ही भारत का भविष्य है