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जिहाद और आतंकवाद

हलाल के ठप्पे से कमाई से जिहाद और आतंकवाद का समर्थन

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलाल सर्टिफिकेट के नाम पर चल रहे बड़े आर्थिक खेल का खुलासा किया है। सरकार ने बताया कि हलाल सर्टिफिकेट अब मांस उत्पादों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका दायरा सीमेंट, सरिया, आटा, बेसन और यहां तक कि पानी जैसे उत्पादों तक पहुंच चुका है। इस प्रमाणन प्रक्रिया के चलते उत्पाद महंगे हो रहे हैं, जिससे आम उपभोक्ता पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।

हलाल सर्टिफिकेट का बढ़ता दायरा

25 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने अदालत को बताया कि हलाल सर्टिफिकेट अब केवल मांस उत्पादों तक सीमित नहीं है। बेसन, आटा, सरिया, और सीमेंट जैसे निर्माण सामग्री पर भी हलाल का ठप्पा लगाना अनिवार्य कर दिया गया है।
तुषार मेहता ने यह भी कहा, “हलाल मीट को लेकर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन गैर-मांस उत्पादों पर हलाल सर्टिफिकेट लगाने की जरूरत समझ से परे है। यह प्रक्रिया केवल कमाई का जरिया बन चुकी है।”

लाखोंकरोड़ों की कमाई का आरोप

केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि हलाल प्रमाणन के नाम पर कई एजेंसियां करोड़ों रुपये कमा रही हैं। इन सर्टिफिकेट्स के लिए वसूली जाने वाली फीस के कारण उत्पादों की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को महंगे उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह सवाल भी उठाया गया कि जो गैर-मुस्लिम हलाल उत्पाद नहीं चाहते, उन्हें ऐसे महंगे सामान लेने पर क्यों मजबूर किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार का बैन और विवाद

2023 में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने राज्य में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों के उत्पादन, वितरण, और भंडारण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार ने यह निर्णय लेते हुए कहा कि हलाल सर्टिफिकेट किसी उत्पाद की गुणवत्ता से संबंधित नहीं है, बल्कि यह भ्रम की स्थिति पैदा करता है।
इस प्रतिबंध के खिलाफ कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसके बाद मामले में कोर्ट ने इन एजेंसियों पर कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। अब मार्च 2025 में इस मामले पर अगली सुनवाई होगी।

महंगे उत्पाद और उपभोक्ताओं पर असर

सरकार ने तर्क दिया कि हलाल सर्टिफिकेट का ठप्पा उत्पाद की लागत बढ़ाने का मुख्य कारण बन रहा है। हलाल सर्टिफिकेट के चलते जो फीस वसूली जाती है, वह उपभोक्ताओं से वसूली जा रही है। इससे गैर-मुस्लिम उपभोक्ताओं को भी ऐसे उत्पाद खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जो उनकी प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।

आगे की कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के हलाल सर्टिफिकेट पर दाखिल जवाब की प्रति याचिकाकर्ता संगठनों को सौंपने का निर्देश दिया है। मार्च 2025 में इस मामले पर फिर सुनवाई होगी। सरकार का कहना है कि हलाल सर्टिफिकेट के कारण उपभोक्ताओं और बाजार पर पड़ रहे आर्थिक प्रभावों पर विचार करना बेहद जरूरी है।

यह मामला केवल धार्मिक प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके व्यापक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव हैं। हलाल सर्टिफिकेट के दायरे का विस्तार और इसके कारण बढ़ती कीमतें उपभोक्ताओं के अधिकारों और बाजार की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाता है।

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