आज हिंदू समाज विभाजन, आक्रमण और अपनी निष्क्रियता से उत्पन्न कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस महत्वपूर्ण समय में हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यदि हम एकजुट नहीं हुए, तो हमारी संस्कृति, धर्म और अस्तित्व को गहरी क्षति पहुंच सकती है। यह समय जागरूक होने और संगठित प्रयास करने का है।
संदेश का भावार्थ: एकता का महत्व
आज हिंदू समाज को जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर विभाजित किया जा रहा है। यह एक लंबी रणनीति है, जिसका उपयोग कुछ राजनीतिक दल और बाहरी शक्तियां हमारे खिलाफ कर रही हैं। स्वतंत्रता के बाद से हम बार-बार “सेक्युलरिज़्म” के नाम पर ऐसी नीतियों को समर्थन देते आ रहे हैं, जिन्होंने हिंदू समाज को कमजोर किया है।
बंदरों के समुदाय का उदाहरण लें, जिन्होंने एकजुट होकर अपने बच्चे पर हुए हमले का बदला लिया। हमें उनसे सीखने की जरूरत है। हिंदू समाज, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है, यदि संगठित हो जाए, तो किसी भी आक्रमणकारी शक्ति को पराजित कर सकता है। लेकिन अगर हम निष्क्रिय बने रहेंगे, तो संख्या में विशाल होने के बावजूद हमारी शक्ति का कोई उपयोग नहीं होगा।
आवश्यकता: संगठित नेतृत्व और समर्थन
संतों और धार्मिक प्रचारकों की भूमिका
बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री जी, अनिरुद्धाचार्य जी, देवकीनंदन ठाकुर जी और अन्य संतों ने हिंदुओं को जागरूक और एकजुट करने के लिए आवाज उठाई है। हमें उनका अनुसरण करना चाहिए और अपने परिवारों को धर्म, शास्त्र और शस्त्र का ज्ञान देना चाहिए।
राजनीतिक समर्थन
आज जब प्रधानमंत्री मोदी जी, योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेता हिंदुत्व और राष्ट्र की रक्षा के लिए अग्रसर हैं, तो हमें उन्हें मजबूती से समर्थन देना चाहिए। मोदी जी और उनकी टीम ने पिछले एक दशक में जो प्रयास किए हैं, वे प्रशंसा के योग्य हैं, लेकिन उन्हें सफलता तभी मिलेगी जब हम संगठित होकर उनका समर्थन करें।
चुनावों में एकजुटता
हम देख सकते हैं कि किस प्रकार अन्य समुदाय सामूहिक रूप से विपक्षी दलों को वोट देकर भाजपा को हराने की कोशिश करते हैं। हिंदुओं को भी समझदारी से काम लेना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर चुनाव में 100% मतदान करके भाजपा और एनडीए को भारी बहुमत दिलाया जाए। हर वोट मायने रखता है, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन नेताओं का समर्थन करें, जो हमारे धर्म और संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं।
धर्मयुद्ध में रणनीति: समयानुसार परिवर्तन
हमारे धर्मग्रंथ यह सिखाते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए समय और परिस्थिति के अनुसार रणनीति अपनानी चाहिए। आज के समय में हमें त्रेता युग की मर्यादा से अधिक द्वापर युग की तरह साम, दाम, दंड, भेद और छल का सहारा लेना चाहिए। यह कलियुग है, और हमें इज़राइल जैसे देशों से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने अपने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाए।
भविष्य की चुनौतियां और हमारा कर्तव्य
अगर हम आज भी जागरूक नहीं हुए तो हमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह अपने विनाश को स्वीकार करना होगा, जहाँ हिंदू धर्म को दबाया गया और वे राष्ट्र इस्लामिक बन गए। विपक्षी दल और विरोधी शक्तियां हिंदुओं को विभाजित कर भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिश कर रहे हैं। हमें यह याद रखना होगा कि वे केवल “काफिर” ही देखते हैं—हिंदू धर्म के भीतर कोई भेदभाव नहीं करते।
स्वामी विवेकानंद के शब्द आज भी प्रासंगिक हैं:
“जो अपने देश, धर्म और संस्कृति पर आघात होते हुए देखकर भी मौन है, वह मरा हुआ है।”
इन शब्दों को हमें गहरी गंभीरता से लेना चाहिए। आज हमें संगठित होकर अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा करनी होगी।
निष्कर्ष: जागरण का समय
यह एक जागरण का समय है। सभी हिंदू संगठनों, संतों, धार्मिक प्रचारकों और देशभक्त नागरिकों को एक मंच पर आकर एकजुट प्रयास करना होगा। हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है। यदि हम एकजुट नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ियां केवल इतिहास के पन्नों में हिंदू धर्म को पढ़ेंगी।
हमें मोदी जी, योगी जी और भाजपा नेतृत्व को उनके मिशन में पूरा सहयोग देना चाहिए, ताकि भारत को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाया जा सके। यह केवल एक धर्म की रक्षा का प्रयास नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, पहचान और अस्तित्व को सुरक्षित रखने की लड़ाई है।
अब वक्त है कि हम जागें, संगठित हों और भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।