हिंदू समाज की ऐतिहासिक भूलें
हिंदू समाज ने इतिहास में कई बार विश्वासघात झेला है, अक्सर अपनी ही भूलों के कारण। आज फिर समय एक कठिन परीक्षा ले रहा है—क्या हम जागेंगे या फिर वही पुरानी गलतियां दोहराएंगे?
📜 1. इतिहास की सज़ा आज भी मिल रही है
- हमें आज़ादी मिली, लेकिन हिंदू चेतना की आज़ादी अभी तक अधूरी है।
हमारे पूर्वजों ने वीरता दिखाई, बलिदान दिया, लेकिन हमने अपने नायकों को अपमानित किया, अकेला छोड़ा। - वीर सावरकर, जिन्होंने क्रांतिकारिता की मशाल जलाई — उन्हें संगठन के भीतर और बाहर गद्दार कहा गया।
- गुरु तेग बहादुर, जिन्होंने धर्म के लिए शीश कटाया — उनके नाम को स्कूल की किताबों में सिर्फ एक लाइन में समेट दिया गया।
- स्वामी श्रद्धानंद, जिन्होंने घर वापसी की नींव डाली — उन्हीं को मुसलमानों ने मार दिया और हिंदू समाज मौन रहा।
क्या यह हिंदू समाज की दुर्बलता नहीं थी कि उसने अपने असली रक्षकों को कभी पूरा समर्थन नहीं दिया?
📍 2. 6 दिसंबर 1992: कल्याण सिंह का बलिदान, लेकिन जनता का मौन
रामभक्तों पर गोली न चलाने वाले कल्याण सिंह को:
- सत्ता से हटा दिया गया
- जेल भेजा गया
- जनता ने अगली बार चुनाव में पराजित कर दिया
- वामपंथी मीडिया ने उन्हें “असंवैधानिक” कहकर कलंकित किया
कांग्रेस और समाजवादी ताक़तों ने उन्हें सांप्रदायिक घोषित कर दिया
लेकिन सबसे ज़्यादा दुखद यह था कि हिंदू समाज भी चुप रहा।
यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है —
- जो हमारे लिए लड़ता है, हम उसे अकेला छोड़ देते हैं। और जो हमें धोखा देता है, उसके पीछे तालियाँ बजाते हैं।
🌐 3. आज वही खेल फिर खेला जा रहा है
आज भी:
- जो राष्ट्रवादी सरकार भारत को आत्मनिर्भर, सुरक्षित और शक्तिशाली बना रही है — उसी पर “तानाशाह“, “लोकतंत्र का दुश्मन” जैसे झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं।
- जो मीडिया और फ़िल्म इंडस्ट्री हिन्दू-विरोधी एजेंडा चला रही है — हम उसी का मनोरंजन करते हैं, उसी को पैसे देते हैं।
- जो लोग CAA, NRC, Uniform Civil Code, Population Control जैसे राष्ट्रहित के कानूनों का विरोध कर रहे हैं — उन्हीं को “धर्मनिरपेक्ष” और “सच्चा नेता” मानते हैं।
हम आज भी भ्रमित हो रहे हैं, जैसे हम 1947, 1992 और 2004 में हुए थे।
⚔️ 4. अगर अब नहीं जगे तो क्या होगा?
- “पाकिस्तान में हिंदू 22% से घटकर 1.5% हो गए। बांग्लादेश में 30% से घटकर 7%।”
- क्या आपको लगता है भारत में ऐसा नहीं हो सकता?
अगर आज भी हमने:
- हिंदू नेतृत्व का साथ नहीं दिया
- जनसंख्या असंतुलन के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई
- अपनी बेटियों को लव जिहाद से नहीं बचाया
- अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग नहीं किया
- अपने वोट को धर्म, देश और संस्कृति के आधार पर संगठित नहीं किया
तो आने वाले वर्षों में भारत भी उन्हीं देशों की राह पर चला जाएगा — जहाँ कभी हिंदू बहुसंख्यक थे, और आज अपने ही घर में पराए बन चुके हैं।
🕉️ 5. क्या अब हिंदू समाज एक होगा?
हमने अपनी ही कमजोरियों से अपनी शक्ति खोई है।
अब समय है:
- अपनी भूलों को स्वीकारने का और सुधारने का
- भ्रम और मोह को त्यागने का
- संगठित होकर सत्य और धर्म के साथ खड़े होने का
अगर 100 करोड़ हिंदू संगठित होकर सरकार और राष्ट्रवादी नेतृत्व का साथ दें, तो भारत को हिंदू राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।
> यह कोई सांप्रदायिक विचार नहीं — यह संस्कृति, पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है।
📣 6. अंतिम आह्वान:
- क्या हम फिर धोखा खाएंगे?
- क्या हम फिर अधर्मी ताक़तों के जाल में फँसेंगे?
- या इस बार हम अपने नायकों के साथ, अपने धर्म के लिए, और अपने भारत को बचाने के लिए संगठित होंगे?
> निर्णय आपके हाथ में है।
> आपकी चुप्पी भी एक वोट है — पर अधर्म के लिए?
✋ आज यह 3 संकल्प लें:
- हर राष्ट्रवादी और सनातनी नेतृत्व का सक्रिय समर्थन करें
- धर्मद्रोही, राष्ट्रद्रोही और हिंदूविरोधी एजेंडे का बहिष्कार करें
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर संगठित होकर, भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में कार्य करें
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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