सेकुलर पत्रकारिता की पक्षपाती मानसिकता
भारत में हिंदुओं के अधिकारों पर बहस में अक्सर तथाकथित ‘सेकुलर’ पत्रकारिता पक्षपात दिखाती है, जिससे सामाजिक संतुलन और समान अधिकारों पर सवाल उठते हैं।
✊ अब हिंदू मौन नहीं रहेगा… उठेगा, बोलेगा और अपने अधिकारों के लिए लड़ेगा!
🔶 I. बांग्लादेशी हिंदुओं पर क्रूरता: पर भारत में खामोशी क्यों?
- 2023-24 में बांग्लादेश में जो हुआ — हिंदू मंदिरों को जलाया गया, मूर्तियों को तोड़ा गया, लड़कियों का बलात्कार हुआ, दर्जनों हिंदू घर उजाड़े गए — ये सब कोई पहली बार नहीं हुआ।
- पिछले 75 वर्षों में बांग्लादेश में हिंदू आबादी 23% से घटकर मात्र 7% रह गई है!
- यह जनसंहार, धर्मांतरण और भय का परिणाम है।
👉 ऐसे नरसंहारों पर भारत के सेक्युलर बुद्धिजीवी वर्ग, पत्रकार और तथाकथित मानवाधिकार संगठन चुप क्यों हैं?
🔶 II. जब मुसलमानों के लिए आवाज़ें उठती हैं, तो हिंदुओं के लिए मौन क्यों?
- यदि भारत में किसी मुस्लिम के साथ कुछ हो जाए — वह सच हो या fabricated — सेकुलर पत्रकार तुरंत प्रेस कांफ्रेंस, कॉलम, ट्वीट्स और प्रदर्शन करने लगते हैं।
- लेकिन जब हिंदू लड़कियों को बांग्लादेश में उठाया जाता है, मंदिर तोड़े जाते हैं, उनकी चुप्पी अपमानजनक होती है।
📌 यह चुप्पी सिर्फ “चुप्पी” नहीं है — यह एक वैचारिक सहमति और हिंदू विरोध की परोक्ष रणनीति है।
🔶 III. फिलिस्तीन के नाम पर प्रदर्शन, लेकिन बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए कोई मार्च नहीं?
- इजरायल–फिलिस्तीन युद्ध में हमास जैसे आतंकी संगठन का समर्थन करने के लिए भारत के मुस्लिम छात्र संगठनों और वामपंथियों ने सड़कें भर दीं।
- विदेशी मुद्दों पर आंसू बहाने वाले, भारत के भीतर के पीड़ित हिंदुओं के लिए मौन व्रत धारण कर लेते हैं।
❗ यह Muslim Brotherhood के एजेंडे की सफलता है — लेकिन हिंदू समाज अभी भी बंटा हुआ, निष्क्रिय है।
🔶 IV. भारत: अंतिम और एकमात्र हिंदू राष्ट्र — और वही सबसे असुरक्षित?
- भारत वो राष्ट्र है जहाँ हिंदू अपनी संस्कृति के अनुसार जी सकते हैं — फिर भी उन्हें “Majoritarianism”, “Communal”, “Extremist” जैसे टैग से बदनाम किया जाता है।
- क्या फ्रांस ईसाई राष्ट्र कहलाना शर्म की बात है?
- क्या सऊदी अरब इस्लामिक राष्ट्र होने पर कोई सवाल करता है?
👉 लेकिन भारत यदि “Hindu Rashtra” कहे, तो NDTV, Scroll, The Wire जैसे प्लेटफॉर्म्स हाय-तौबा मचाने लगते हैं।
🔶 V. सेकुलर पत्रकारों की रणनीति: पब्लिक ओपिनियन पर नियंत्रण
मीडिया का एक वर्ग सच को दबाने का काम कर रहा है।
उनके एजेंडे का मुख्य लक्ष्य है:
- हिंदू चेतना को कुंद करना
- सनातन संस्कृति को पिछड़ा और असहिष्णु दिखाना
- आतंकवाद को ‘प्रतिरोध’ कहना
- हिंदुओं के आंदोलनों को ‘हेट स्पीच’ और ‘मॉब’ बताना
📌 ये पत्रकारिता नहीं — वैचारिक हिंसा है।
🔶 VI. सनातनी अब जाग रहा है — और यह बदलाव रोकना अब असंभव है
1000 वर्षों की ग़ुलामी, 75 वर्षों की राजनीतिक उपेक्षा और 10 वर्षों की जागृति के बाद हिंदू समाज अब प्रश्न पूछ रहा है:
- “हम कब तक केवल सहन करेंगे?”
- “हमारी पीड़ा भी कभी प्राथमिकता बनेगी क्या?”
- “हम भी वोटर हैं — हमारी भावनाओं की कोई क़ीमत है या नहीं?”
✅ आज भारत का युवा, छात्र, प्रोफेशनल वर्ग धीरे-धीरे एकजुट हो रहा है — वह अब केवल दंगों में मरने वाले हिंदू नहीं बनना चाहता — वह एक निर्णायक शक्ति बनना चाहता है।
🔶 VII. सुझाव: सनातन जागरण के लिए संगठित प्रयास की आवश्यकता
1. मीडिया वैकल्पिक प्लेटफॉर्म बनाए जाएं:
- YouTube चैनल, इंस्टाग्राम पेज, मोबाइल एप्स — जहाँ हिंदू दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाए।
2. कानूनी और सामाजिक रक्षा संगठन सक्रिय हों:
- NHRC, सुप्रीम कोर्ट, RTI — इन माध्यमों से हिंदू अधिकारों की रक्षा के लिए प्रेशर ग्रुप बने।
3. बांग्लादेशी हिंदुओं की आवाज़ बनें:
- UNHRC, Amnesty, और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रामाणिक डाटा के साथ दावे रखें।
4. सेक्युलर झूठ का तथ्यों से जवाब दें:
- Fake narratives को एक्सपोज करने के लिए तथ्य और दस्तावेजों का सहारा लें।
✅ निष्कर्ष:
- हिंदू होना अब शर्म का नहीं — गर्व का विषय है!
- हिंदू की पीड़ा भी खबर है,
- उसका विरोध भी आंदोलन है,
- और उसकी आवाज भी इंसानियत है।
सेकुलर पत्रकारिता का पक्षपात न केवल सच्चाई को धुंधला करता है, बल्कि समाज में अविश्वास और असंतुलन भी पैदा करता है।
अब हिंदू मौन नहीं रहेगा — संगठित होगा, संगर्ष करेगा और सनातन की रक्षा करेगा।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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