वर्तमान आत्मविश्वास का संकट
- आज हिंदू समुदाय साहस और आत्मविश्वास के अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है — जो हमारे सनातन पूर्वजों की निस्संदेह निडर भावना से बिलकुल भिन्न है।
- देश भर में हिंदू भय के साये में जी रहे हैं और खतरे व आक्रमण को चुपचाप सह रहे हैं, बजाय इसके कि उनका सामना किया जाए।
- यह भयभीत निष्क्रियता उस वीरता और सहनशीलता की गद्दारी है जिसने सैकड़ों वर्षों तक हिंदू सभ्यता को परिभाषित किया।
- हमारे प्राचीन ग्रंथों, इतिहास और संत-योद्धाओं के जीवन ने चुनौती के सामने अडिग रहने की प्रेरणा दी है, पर आज की मौनता उस गौरवशाली विरासत का अपमान है।
- अपने अधिकारों के लिए खड़े न होने की अक्षमता या अनिच्छा केवल हमारी गरिमा नहीं मिटाती, बल्कि हमारी पहचान की नींव भी खोखली कर देती है।
गौरवशाली अतीत से कटाव
- सनातन परंपरा की स्मृति में महान गर्व है, पर बिना कार्रवाई के यह गर्व खोखला है।
- रामायण और महाभारत के वीर-कथाएँ केवल कहानियाँ नहीं—वे साहस, धर्म और कर्तव्य का नैतिक मार्गदर्शन हैं।
- यदि हम अतीत को याद मात्र करके उसकी आत्मा को वर्तमान संघर्षों में नहीं उतारते, तो इसका क्या अर्थ?
- हमारा इतिहास स्पष्ट रूप से कहता है कि सत्य और न्याय की रक्षा सक्रियता से करनी होती है; डर और समर्पण को स्वीकार नहीं करना चाहिए।
- हिन्दू विरासत का गर्व और निडर सक्रियता हमारी पवित्र संस्कृति की सुरक्षा में बदलना चाहिए।
हिचकिचाहट के कारण
- हिन्दू समुदाय की हिचकिचाहट दशकों के राजनैतिक हाशिएकरण, विभाजक सेक्युलरिज्म और आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों से उपजी है।
- अल्पसंख्यक-केंद्रित नीतियों और विचारधाराओं ने बहुसंख्यक आवाज़ों को किनारे कर दिया, जिससे उदासीनता और निराशा बढ़ी।
- जागरूकता के बावजूद, डर और अनिश्चितता कई लोगों को खुली विरोध-या-प्रतिरोध से रोकती है।
- पर सावधानी और कायरता अलग हैं — यह फर्क समझना आवश्यक है। समुदाय को डर पर काबू पा कर अपना स्थान वापस लेना होगा।
- प्रत्येक हिन्दू से प्रश्न: क्या हम अपने पतन के मूक और निष्क्रिय दर्शक बने रहेंगे या अपने धर्म व राष्ट्र के निडर रक्षक बनकर उठेंगे?
अत्याचार और तुष्टिकरण: एक लगातार शिकायत
- आज़ादी के बाद से हिंदुओं ने बार-बार समुदाय पर होने वाले व्यवस्थित अत्याचारों को सहन किया है और कोई प्रतिकार नहीं किया है।
- इन अत्याचारों का संबंध कांग्रेस द्वारा चलाए गए मुसलमान तुष्टिकरण वाले रवैये और कुछ मुसलमानों के द्वारा किए गये जिहाद, आतंकवाद से और मंदिर-धार्मिक प्रथाओं पर जानबूझकर हमलों से है।
- फिर भी, हिंदुओं की प्रतिक्रिया मौन सहनशीलता रही—ऐसी आक्रामकता का गंभीरता से विरोध या रोक नहीं हुआ।
- कांग्रेस काल में सरकार ने अल्पसंख्यक वोट-बैंकों की रक्षा हेतु तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया, जिससे हिंदुओं की आवाज़ दबती रही।
- जबकि मोदी सरकार ने ऐसे तुष्टिकरण को कड़ा किया और कई नीतियों में सनातन के पक्ष में कदम उठाए, परंतु हिन्दू समुदाय ने इस बदलाव का पूरा लाभ नहीं उठाया।
- 2024 लोकसभा में प्र-सनातनी सरकार को कमज़ोर करने से प्रतिद्वंद्वियों को हौसला मिला और हिंदू हितों पर हमले और धमकियाँ बढ़ गईं।
जवाबदेही और सामूहिक जिम्मेदारी
- दोष बड़े पैमाने पर पूरे हिन्दू समुदाय का ज्यादा है।
- हम अक्सर समस्याओं पर चर्चा करते हैं, सरकारों को निंदा करते हैं, कांग्रेस और मुसलमानों की आलोचना करते हैं — पर ज़्यादातर मामलों में ठोस कार्रवाई नहीं करते।
- अन्याय की मौन सहनशीलता और हमारी निष्क्रियता उनकी आक्रमकता को बढ़ावा देती है।
- बिना कड़े, अडिग प्रतिरोध के हम अपने अतीत को धोखा देते हैं और भविष्य को जोखिम में डालते हैं।
- हिंदू समुदाय को अपनी शक्ति पहचान कर निर्णायक तौर पर कार्रवाई करनी होगी।
मजबूत, निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता
- आक्रमणों को मौन से सहन करना समाप्त होना चाहिए।
- केवल दृढ़, निडर प्रतिरोध ही आगे के हमलों और अन्याय को रोक सकता है।
- सरकार जो कड़े कदम उठा रही है, समाज के स्तर पर समर्थन के बिना प्रभावी नहीं हो पाएगी।
- समुदाय का राजनीतिक और सामाजिक समर्थन सरकारी कार्रवाइयों की क्षमता को बढ़ा सकता है।
- हर हिन्दू को समाज, धर्म और राष्ट्र की रक्षा में भाग लेना होगा।
स्वार्थ से ऊपर उठना: सामाजिक जागरण का आह्वान
- अब समय आ गया है कि हिंदू स्वार्थ और उदासीनता के खोल से बाहर आएँ।
- अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए सामूहिक बलिदान और लगातार संघर्ष आवश्यक है।
- समुदाय को निष्क्रिय दर्शकता से सक्रिय नेतृत्व और भागीदारी की ओर जाना होना होगा।
- प्रत्येक लड़ाई—बड़ी हो या छोटी—हमारी सभ्यता की गरिमा की रक्षा में महत्व रखती है।
आंतरिक खतरों की पहचान और मुकाबला
- आज एक गंभीर खतरा उन हिंदू गद्दारों से है जो एक भारत-विरोधी, हिन्दू-विरोधी तंत्र को सक्षम बनाते हैं।
- यह हानिकारक तंत्र विपक्षी पार्टियाँ, वामपंथी, उदारवादी (लिबरल), छद्म-धर्मनिरपेक्ष तत्व, लेफ्ट मीडिया, विदेशी NGOs और वैश्विक डीप-स्टेट एजेंटों को शामिल करता है।
- ये शक्तियाँ सनातन धर्म, हिंदू समाज और भारत को कमजोर करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।
- ऐसे तत्वों की पहचान करना और उनके प्रभाव को बेअसर करना समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होना चाहिए।
- इतिहास दिखाता है कि गद्दारों ने हमेशा देशहित को नुकसान पहुँचाया, पर महाराठा, राजपूत और अनगिनत देशभक्तों की बहादुरी व बलिदान ने राष्ट्र को बचाया है।
इतिहास से सबक और आधुनिक देशभक्तों की ज़रूरत
- हमारे पूर्वजों ने आक्रमणों और उत्पीड़न के खिलाफ वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, देशभक्ति और बलिदान का परिचय दिया और देश और धर्म की रक्षा की है।
- आज एसे नायकों की कमी खल रही है जो व्यक्तिगत स्वार्थों और आराम त्याग कर बड़े उद्देश्य के लिए समर्पित हों।
- देशभक्ति को रोजमर्रा की क्रिया से आगे बढ़कर राष्ट्र की अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता में बदलना होगा।
- हमें उस निःस्वार्थ भावना को पुनर्जीवित करना होगा जिसने सदियां सहनशीलता और संघर्ष में भारत को टिकाये रखा।
खतरे से निपटने की तात्कालिक आवश्यकता
- खतरा अनदेखा करके उसके स्वतः खत्म होने आशा निष्क्रिय रहने से समाप्त नहीं होगा।
- इनकार या निष्क्रियता खतरे को बढ़ाती है और अंततः तबाही की ओर ले जाती है।
- हिंदुओं को एकजुट होकर उचित कार्यवाही करने की सख्त आवश्यकता है।
- केवल साहस, दृढ़ता और सामूहिक प्रयासों से ही समुदाय अपने गौरवशाली अतीत के अनुरूप अपना भविष्य सुरक्षित कर सकता है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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