“हिंदुओं की बर्बादी” केवल एक भावनात्मक नारा नहीं, बल्कि एक गंभीर सच्चाई बनती जा रही है। समाज में आंतरिक विघटन, सांस्कृतिक दूरी और आत्मसम्मान की कमी ने आज हमें आत्ममंथन के मोड़ पर खड़ा कर दिया है। क्या अब भी हम नहीं जागे, तो बहुत देर हो जाएगी।
एक आँख खोलने वाली सत्य घटना
📍 स्थान: राजनगर सेक्टर-10, गाज़ियाबाद
एक साधारण सी बातचीत ने मेरे ज़हन को हिला कर रख दिया।
मैं एक फल बेचने वाले मुस्लिम व्यापारी की दुकान पर खड़ा था। हाल ही में कई दुकानों पर नाम और जाति लिखने का नियम आया है, तो मैंने उससे यूँ ही पूछ लिया:
“आप जैसे लोग इसका विरोध क्यों नहीं कर रहे?”
उसने मुस्कराकर जो जवाब दिया — वो सीधा दिल और आत्मा को झकझोर देने वाला था।
🗣️ उस मुस्लिम व्यापारी के शब्दों में:
“लाला जी, नाम लिख देने से क्या बदल जाएगा?
आप हिंदू तो वैसे भी उन्हीं का साथ देते हो जो आपके खिलाफ खड़े होते हैं।“
फिर उसने एक-एक करके कई ऐसे कटु लेकिन कड़वी सच्चाईयों को मेरे सामने रख दिया, जिनसे हम आम तौर पर मुँह मोड़ लेते हैं:
🔍 बातचीत की गहराई से विश्लेषण:
✅ 1. इतिहास का दोहन और भ्रमित श्रद्धा
“ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने बलात्कार करवाया और आज हिंदू उनकी मजार पर चादर चढ़ा रहे हैं।”
- इतिहास में कई सूफी संतों को मुसलमान शासकों के राजनीतिक एजेंडे के साथ जोड़ा गया है।
- अजमेर की दरगाह को लेकर ख्वाजा साहब का वास्तविक चरित्र और भूमिका विवादों में रही है।
- लेकिन अधिकतर हिंदू श्रद्धालु बिना इतिहास समझे वहाँ मन्नतें माँगते हैं, ये उनकी भ्रमित भक्ति का प्रमाण है।
✅ 2. राम मंदिर आंदोलन में आंतरिक विभाजन
“हिंदू ही पहले राम मंदिर के खिलाफ खड़े हुए, फिर मुस्लिमों को ताक़त मिली।”
- यह बात अंशतः सही है। कांग्रेस व अन्य सेक्युलर दलों के हिंदू चेहरे ही राम मंदिर निर्माण का विरोध करने वालों में अग्रणी थे।
- इसी विभाजन ने मुस्लिम समुदाय को बाबरी मस्जिद के नाम पर राजनीतिक ताकत दी।
✅ 3. गुरु गोबिंद सिंह जी और सिख समुदाय
“हमने उनके बच्चों को चुनवाया, और आज गुरुद्वारों में हमें नमाज़ पढ़ने दी जाती है।“
- सिखों का इतिहास मुस्लिम आक्रांताओं से लड़ते हुए बलिदान का रहा है, लेकिन आज कई सिख समूह सेक्युलरिज़्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं।
- रोजा–इफ्तार, नमाज की जगह गुरुद्वारों में देना — ये सिख सिद्धांतों के भी विपरीत है।
✅ 4. राजनीतिक स्मृति लोप (Political Amnesia)
जिस राजनेता ने राम मंदिर के करसेवकों पर गोली चलवाई, आज उसी के बेटे की पूजा हो रही है।“
- 1990 में करसेवकों पर गोली चलवाने वाले नेता को समर्थन आज खुद करसेवक वर्ग से मिलता है।
- यह इस बात का सबूत है कि हिंदू वोटर भावनात्मक और जातिगत आधार पर फैसला करता है, न कि सिद्धांतों के आधार पर।
✅ 5. सस्ते दाम और हिंदू उपभोक्ता की मानसिकता
“₹5 सस्ती सब्जी के लिए हिंदू सब भूल जाएगा।”
- यह कथन सत्य के बेहद करीब है। आर्थिक लालच में कई हिंदू उपभोक्ता ये नहीं देखते कि सामने वाला सामाजिक तौर पर उनके धर्म का विरोधी है या नहीं।
- इससे लव जिहाद, धर्मांतरण, और घुसपैठ जैसी बड़ी समस्याएं और भी गहराई से फैलती हैं।
✅ 6. दलित हिंदुओं की ‘जय भीम जय मीम’ नीति
“SC/ST समाज मुसलमानों के साथ खड़ा है, लव जिहाद तक पर मौन है।”
- सत्ता और आरक्षण की राजनीति ने दलित समाज के कुछ हिस्सों को इस कदर प्रभावित किया है कि धार्मिक पहचान गौण हो गई है।
- कट्टरपंथी इस वर्ग को अपने एजेंडे में शामिल कर ‘हिंदू समाज’ को तोड़ने में कामयाब हो रहे हैं।
🧠 मुख्य विचार: हिंदू समाज की आत्मविस्मृति
यह व्यापारी दरअसल हमें एक गहरी बात बता रहा है —
“हिंदुओं की बर्बादी के लिए मुसलमानों की चालें जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि हिंदू समाज की आत्मविस्मृति, इतिहास से दूरी, और अवसरवाद ही असली दोषी हैं।”
⚔️ क्या समाधान है?
इतिहास को जानिए, फिर निर्णय लीजिए
– इतिहास की असल घटनाओं को पढ़ें। सूफीवाद और मुस्लिम शासन का वास्तविक रूप समझें।
- हिंदू एकता को जाति से ऊपर उठाइए
– ब्राह्मण, दलित, राजपूत, वैश्य, ओबीसी सब एक ही सनातन परिवार का हिस्सा हैं। - आर्थिक राष्ट्रभक्ति अपनाइए
– सोच-समझकर खरीदारी करें। सिर्फ सस्ता देखना बंद करें — विचारधारा और सुरक्षा को प्राथमिकता दें। - राजनीतिक विवेक को जाग्रत करें
– जो नेता आपके धर्म, आस्था और अस्तित्व का सम्मान न करे — उसे वोट न दें। - सामाजिक संगठनों से जुड़ें
– बजरंग दल, विहिप, ISKCON, राष्ट्रसेवी हिंदू मंच जैसे संगठनों से जुड़कर समाज के जागरण में भाग लें।
📣 अंतिम निवेदन: अब भी समय है – जागो, एक हो जाओ!
“हिंदुओं की बर्बादी” की चर्चा केवल अतीत की गलतियों या वर्तमान की चुनौतियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। अब समय है कि हम एकजुट होकर आत्ममंथन करें, अपनी संस्कृति, मूल्यों और पहचान की रक्षा के लिए सजग हों। बदलाव की शुरुआत भीतर से होती है — और यही भविष्य का मार्ग तय करेगा।
वरना कल यही व्यापारी फिर मुस्कुराकर कहेगा — “लाला जी, फर्क तो आपको ही पड़ता है!”
🇳🇪 जय भारत, वन्देमातरम🇳🇪
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