इतिहास और संस्कृति
हमारा इतिहास और संस्कृति हमारी पहचान की नींव हैं, लेकिन समय के साथ हमें इनसे दूर किया गया। जानिए कैसे झूठे विचारों और प्रचारों ने हमारी सोच को प्रभावित कर हमें अपने गौरव से अनजान बना दिया।
- उन्होंने हमारे मंदिर जलाए — हमने फिर से बनाए।
 - उन्होंने हमारा सोना लूटा — हमने फिर से कमा लिया।
 - लेकिन जब उन्होंने हमारी इतिहास को चुरा लिया और उसे “मिथक” (Mythology) कह दिया — तब हमने कुछ नहीं किया।
 - बल्कि हमने वही झूठ दोहराया, और अपने बच्चों को भी सिखाया।
 
अगर आपके रगों में सनातन का रक्त बहता है, तो यह पंक्तियाँ अंत तक पढ़िए — और फिर कभी अपने इतिहास (Itihasa) को “मिथक” मत कहिए।
🕉️ वह समय जब हम अपने पूर्वजों के साथ चलते थे
- भारत में कभी इतिहास और आस्था में कोई भेद नहीं था — क्योंकि हमारी आस्था ही हमारा इतिहास थी, और हमारा इतिहास ही हमारी आस्था।
 - अयोध्या का बच्चा यह “मानता” नहीं था कि राम वहाँ जन्मे थे — वह जानता था।
 - उसके दादा ने उसे वह सटीक स्थान दिखाया था जहाँ राम का जन्म हुआ था — जैसे उसके दादा को उनके दादा ने दिखाया था।
 - द्वारका का मछुआरा “कृष्ण” को कोई “किंवदंती” नहीं मानता था — वह जानता था कि यह नगर यादवों का था और सागर ने उनके महलों को निगल लिया था।
 - कुरुक्षेत्र का किसान जानता था कि उसकी खेतों की मिट्टी कभी पांडवों और कौरवों के रक्त से भीगी थी
 - वह यह किसी किताब में नहीं पढ़ता था — मिट्टी खुद बोलती थी।
 - यह था इतिहास — “इतिहास” यानी “इति ह आस” — “ऐसा हुआ था”।
 
हमारे पास लिखित प्रमाण थे, पर उससे भी मजबूत था स्मृति का सिलसिला — मंदिरों में, गीतों में, शिलाओं में, और बुज़ुर्गों की ज़बान में।
🔥 पहला घाव — आक्रमणकारियों की तलवार और मशाल
- फिर आए तुर्क और मुगल आक्रमणकारी। उन्होंने केवल हमारे मंदिर नहीं तोड़े — उन्होंने हमारी स्मृति पर हमला किया।
 - नालंदा की लाइब्रेरी महीनों तक जलती रही, अनमोल पांडुलिपियाँ राख बन गईं।
विक्रमशिला और अन्य विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया, विद्वानों को मार डाला गया। - राजवंशों की ताम्रपत्र वंशावलियाँ गलाकर सिक्के बना दिए गए।
मंदिरों के अभिलेख जलाए गए, नदियों में फेंक दिए गए। - मस्जिदें मंदिरों के ऊपर बनाई गईं ताकि केवल हमारा धर्म नहीं, बल्कि हमारा भूगोल और स्मृति भी मिट जाए।
 - नगरों के नाम बदल दिए गए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी पहचान भूल जाएँ।
फिर भी — हम बचे रहे। - हमारे ग्रंथ जलाए गए, पर कथा-परंपरा जीवित रही।
हमने रामलीला खेली, कृष्ण भजन गाए, पुराण सुनाए।
तलवार शरीर को घायल कर सकती थी, पर स्मृति को नहीं मिटा सकी। 
🪶 दूसरा घाव — अंग्रेज़ों की कलम
- फिर आए अंग्रेज़। वे “व्यापारी” और “विद्वान” बनकर आए — लेकिन असली मकसद था मन पर विजय।
 - मुगलों ने जो नहीं समझा, वह ब्रिटिश ने समझ लिया —
 - “अगर हम इन लोगों को उनके अतीत से काट दें, तो ये हमेशा के लिए हमारे गुलाम बन जाएंगे।”
 - उन्होंने हमारी भूमि नहीं, हमारे सत्य पर आक्रमण किया।
 - विलियम जोन्स, मैक्स मुलर, मोनियर विलियम्स जैसे तथाकथित “विद्वान” आए
 - पर उनका उद्देश्य एक ही था: हिंदुओं को अपनी नज़रों से नहीं, बल्कि अपने विजेताओं की नज़रों से देखना सिखाना।
 
उन्होंने हमारे ग्रंथों का अनुवाद किया, पर हर पंक्ति में एक संदेह बोया —
- “राम — एक काल्पनिक राजा”
 - “कृष्ण — एक लोककथा के पात्र”
 - “वेद — जंगली जनजातियों के गीत”
 - और इस ज़हर को उन्होंने स्कूलों की किताबों में डाल दिया।
धीरे-धीरे हमारी आत्मा में यह झूठ उतर गया। 
ध्यान दीजिए, यह ज़हर चुनिंदा था —
- बाइबल — “इतिहास”
 - कुरान — “ईश्वरीय रहस्योद्घाटन”
 - रामायण — “मिथक”
 - महाभारत — “किंवदंती”
 
यह कोई गलती नहीं थी — यह रणनीति थी।
- “अगर राम मिथक हैं, तो मसीह सत्य हैं।
 - अगर कृष्ण कल्पना हैं, तो अल्लाह उत्तर है।”
 
☠️ तीसरा घाव — कांग्रेस का मानसिक गुलामी अभियान
1947 में अंग्रेज़ चले गए — पर उनका ज़हर यहीं रह गया।
- अब नए गुलाम पैदा हुए — अंग्रेज़ी बोलने वाले “सेक्युलर भारतीय”, जो अपने ही धर्म पर हंसते हैं।
 - वे गोवर्धन उठाने पर हंसते हैं, पर “नोआ की नौका” पर विश्वास करते हैं।
 - वे द्वारका को “किंवदंती” कहते हैं, पर “यीशु का पुनर्जन्म” मानते हैं।
 - वे रामायण को “मिथक” कहते हैं, पर बाइबल को “आस्था”।
 - इन लोगों को “आधुनिक” नहीं कहा जाना चाहिए — ये पूर्ण गुलाम हैं।
 
और फिर आई कांग्रेस — ब्रिटिश के राजनीतिक वारिस। उन्होंने वही खेल आगे बढ़ाया
- अंग्रेज़ी शिक्षा थोपकर भारतीय मनोवृत्ति बदली,
 - पश्चिमी संस्कृति और फैशन को “आधुनिकता” बताया,
 - मंदिरों और पुजारियों को पिछड़ा घोषित किया,
 - हिंदू इतिहास को “किंवदंती” कहकर शिक्षा से बाहर किया।
 - पर कभी इस्लामिक और ईसाई संस्थानों को नहीं छुआ —
बल्कि उन्हें और महिमामंडित किया। - मदरसा फंडिंग जारी रही, मिशनरी स्कूलों को टैक्स लाभ मिला —
और हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया। - हिंदू समाज को गिल्ट (दोषभावना) में डाल दिया गया
 - “तुम बहुसंख्यक हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए।”
“सेक्युलर बनो — यानी अपने धर्म से दूर रहो।” 
यह वही मानसिक गुलामी है जो आज भी पाठ्यपुस्तकों, मीडिया और सिनेमा में जहर की तरह फैल रही है।
🔱 अब समय है स्मृति लौटाने का
- हर बार जब आप “मिथक” कहते हैं, आप अयोध्या को दफना रहे होते हैं।
 - हर बार जब आप “किंवदंती” कहते हैं, आप कुरुक्षेत्र की मिट्टी को अपमानित करते हैं।
 - हर बार जब आप “रामसेतु प्राकृतिक है” कहते हैं, आप अपनी ही सभ्यता की याद मिटा रहे होते हैं।
 - विदेशियों ने हमारे मंदिर जलाए — पर हमारे ही बच्चों ने हमारी स्मृति जलाई।
 - आज हमें अपने शब्द, अपनी चेतना, अपनी अस्मिता वापस लेनी है।
 
कभी न भूलें —
- “किसी सभ्यता का अंतिम विनाश तब नहीं होता जब उसके मंदिर जलाए जाते हैं।
 - बल्कि तब होता है जब उसकी अपनी संतानें अपनी स्मृति जला देती हैं।”
 
अब यह समय है कि हम कहें —
- यह हमारा “इतिहास” है, “मिथक” नहीं।
 - हर पोस्ट, हर लेख, हर संवाद में इसे कहिए।
 - यह आपकी चेतना का पुनर्जागरण होगा —
 - सनातन की पुनर्स्थापना का पहला कदम।
 
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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