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इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी: कांग्रेस के पतन की शुरुआत और शक्ति-विरोधाभास की कहानी

इंदिरा गांधी: कांग्रेस के पतन की शुरुआत

🔹 1. कभी भव्य, अब भुला दी गई पुण्यतिथि

  • इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि आज बस एक औपचारिक तारीख बनकर रह गई है।
  • पहले जहाँ सरकारी आयोजन, बड़े कार्यक्रम, राजनीतिक भाषण और भव्य श्रद्धांजलियाँ हुआ करती थीं, आज वहाँ सन्नाटा है।
  • यह केवल एक नेता की स्मृति का क्षय नहीं — बल्कि उस राजनीतिक साम्राज्य के पतन का संकेत है जिसे उन्होंने स्वयं खड़ा किया था।
  • कभी “लौह-स्त्री” कहलाई जाने वाली इंदिरा गांधी की विरासत आज एक विरोधाभास की तरह खड़ी है — शक्ति भी वही, और कांग्रेस के पतन के बीज भी वही।

🔹 2. 1969: वह वर्ष जब कांग्रेस ने अपनी आत्मा खो दी

  • जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनीं, तो उन्हें कांग्रेस के “सिंडिकेट” ने एक कमजोर, नियंत्रित हो सकने वाली नेता के रूप में देखा।
  • परन्तु इंदिरा गांधी सत्ता की कठपुतली बनना नहीं चाहती थीं।
  • तीन साल के भीतर उनका सिंडिकेट से संघर्ष इतना बढ़ा कि 1969 में कांग्रेस का ऐतिहासिक विभाजन हो गया

> पुरानी कांग्रेस बनी — Congress (O)

> इंदिरा की नई पार्टी बनी — Congress (R)

  • यह विभाजन सिर्फ संगठनात्मक नहीं था — यह कांग्रेस की आत्मा का अंत था।
  • Congress (R) 1969 में खत्म हुई।
  • उसकी जगह जन्म हुआ इंदिरा की कांग्रेस का — एक ऐसी पार्टी जिसमें विचारधारा की जगह व्यक्तिगत भक्ति ने ले ली।

🔹 3. चाटुकारिता की राजनीति: नेतृत्व नहीं, वफादारी मायने रखती थी

इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को एक लोकतांत्रिक संस्था से बदलकर व्यक्तिगत सत्ता का किला बना दिया। उनके आसपास इकट्ठा हुए लोग —

  • कमलनाथ
  • दिग्विजय सिंह
  • अशोक गहलोत
  • शरद पवार
  • विलासराव देशमुख

ये सब संगठन के नेता नहीं, बल्कि इंदिरा के दरबार के वफादार थे।

  • बहस खत्म
  • असहमति खत्म
  • विचारधारा खत्म

कांग्रेस एक दरबार बन चुकी थी, जहाँ इंदिरा “सम्राट” थीं और उनके इर्द-गिर्द घूमने वाले नेता “दरबारी”। यहीं से कांग्रेस की रीढ़ टूटनी शुरू हुई।

🔹 4. दो कांग्रेस: एक जिसने देश को आज़ादी दिलाई, और एक जिसने खुद को खत्म किया

1947 से पहले की कांग्रेस

  • राष्ट्रवादी
  • त्यागपूर्ण
  • बलिदान पर आधारित
  • और भारत की आत्मा से जुड़ी हुई

1969 के बाद की कांग्रेस

  • वंशवादी
  • अवसरवादी
  • वोट-बैंक आधारित
  • और पूरी तरह एक परिवार पर निर्भर

इसलिए आज जब कांग्रेस दावा करती है कि “हमने आज़ादी दिलाई,”
तो यह आधा सच है।

  • आज की कांग्रेस का आज़ादी की लड़ाई से कोई संबंध नहीं,
    सिवाय “नाम” के।

🔹 5. इंदिरा के बाद कांग्रेस में शून्य: नेतृत्व गायब, दृष्टि गायब

  • इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने अपने बाद कोई सक्षम उत्तराधिकारी तैयार नहीं किया
  • उनकी राजनीतिक संरचना केवल उनके रहते काम करती थी — उनके जाने के बाद वह ढह गई।

1984 में इंदिरा की हत्या के बाद

राजीव गांधी

भावना के आधार पर प्रधानमंत्री बने, योग्यता के आधार पर नहीं। उनके कार्यकाल में—

  • आधुनिकीकरण
  • ऑपरेशन ब्लू स्टार की विरासत
  • बोफोर्स घोटाला
  • कश्मीर और पंजाब में उग्रवाद
  • सब एक साथ उभरते चले गए।

नरसिम्हा राव

  • उन्होंने आर्थिक सुधार करके कांग्रेस में जान डालने की कोशिश की
  • पर सोनिया गांधी के दरबारियों ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया।

सोनिया और राहुल गांधी

  • इनके आने के बाद कांग्रेस फिर से परिवार की जागीर बन गई।
  • राहुल की लगातार विफलता ने रहा-सहा राजनीतिक सम्मान भी खत्म कर दिया।
  • इंदिरा के बाद कांग्रेस में न नेतृत्व बचा, न सिद्धांत, न भविष्य।

🔹 6. आंकड़े बताते हैं — कांग्रेस का पतन उतना ही तेज़ था जितना इंदिरा का उदय

  • 1984 — 414 सीटें (कांग्रेस का स्वर्णकाल, सहानुभूति वोट)
  • 1989 — सत्ता से बाहर
  • 1996–2024 — कभी भी पूर्ण बहुमत नहीं
  • 2024 — 324 सीटों पर चुनाव लड़ा, सिर्फ 99 जीती

कभी भारत की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस आज

  • एक कमजोर, बिखरी हुई, वोटबैंक पर निर्भर गठबंधन पार्टी बनकर रह गई है।

🔹 7. बीजेपी–RSS मॉडल: क्यों यह ढहता नहीं, बल्कि और मज़बूत होता है

RSS और बीजेपी का ढांचा पूरी तरह भिन्न है:

RSS का सिद्धांत

  • नेतृत्व प्रशिक्षण
  • अनुशासन
  • सामूहिक निर्णय
  • वैचारिक प्रतिबद्धता

मोदी–शाह सिर्फ चेहरे हैं, लेकिन संगठन की ताकत जड़ों में है।

RSS से निकला हर नेता

  • शाखाओं में काम करता है
  • नेतृत्व का अभ्यास करता है
  • सामाजिक संबंध बनाता है
  • सार्वजनिक जीवन की कठिनाइयों से गुजरता है

इसलिए यदि कल मोदी–शाह राजनीति छोड़ दें, तो भी बीजेपी की ताकत जस की तस बनी रहेगी।

  • कांग्रेस मैं इन सब बातों के लिए के कोई स्थान  नहीं बल्कि इसके विपरीत सिर्फ  वंशवाद चलता है। लायक नेताओं के लिए कोई जगह और इज्जत नहीं है।

🔹 8. इंदिरा गांधी की “द्रोणाचार्य भूल”

इंदिरा गांधी ने द्रोणाचार्य की तरह—

  • सत्ता
  • रणनीति
  • कठोर निर्णय

सब तो अपनाए…

  • लेकिन उन्होंने कोई अर्जुन तैयार नहीं किया। उन्होंने केवल “परिवार” तैयार किया — नेता नहीं।
  • इसीलिए, जैसे ही वे गईं, उनके द्वारा खड़ा किया हुआ साम्राज्य तीन दशकों में ढह गया
  • अगर किसी काबिल नेता ने आगे बढ़ने की कोशिश की तो उसे रास्ते से हट दिया गया।

🔹 9. विडंबना: इंदिरा ने अनजाने में राष्ट्रवादी राजनीति के लिए मार्ग बनाया

यह इतिहास का सबसे बड़ा व्यंग्य है— इंदिरा गांधी, जिन्होंने विपक्ष को दबाया, उसी  इंदिरा ने अनजाने में:

  • BJP के उदय
  • राष्ट्रीय चेतना
  • हिंदुत्व के पुनर्जागरण
  • और स्थायी वैचारिक राजनीति

का मार्ग प्रशस्त कर गईं।

उनकी तानाशाही (Emergency) नेभारत को यह समझा दिया कि

  • लोकतंत्र और राष्ट्रीय विचारधारा परिवारवाद से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

🔹 10. इंदिरा से इण्डिया तक — एक बड़े परिवर्तन की कहानी

  • इंदिरा गांधी शक्तिशाली थीं, लेकिन उसी शक्ति का दुरुपयोग उनका पतन भी बन गई।
  • उन्होंने अपने लिए एक साम्राज्य खड़ा किया, लेकिन देश के लिए कोई स्थायी नींव नहीं छोड़ी।

आज कांग्रेस की स्थिति देखते हुए एक बात स्पष्ट है

  • “व्यक्ति-पूजा वाली पार्टी मर जाती है। सिद्धांत-पूजा वाला राष्ट्र अमर रहता है।”
  • इंदिरा गांधी का जाना केवल एक युग की समाप्ति नहीं, बल्कि कांग्रेस के पतन की शुरुआत थी
  • और नई भारत की यात्रा की भी।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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