१. सत्य की पहचान – अब और नहीं सोना
- हम कितनी बार चेताए गए, पर हर बार अनसुना किया। आज फिर यह धरती पुकार रही है कि हिंदू अब या तो संगठित हो जाएगा या समाप्त हो जाएगा।
हमारा मौन ही हमारी कमजोरी बन गई, हमारा स्वार्थ और भय हमारे पतन का कारण बन रहा है। - हिंदुस्तान में हिंदू अपने ही पसीने से दूसरों के लिए घर बना रहा है, लेकिन खुद अपनी रक्षा भूल गया है।
- जब तक हम केवल आर्थिक सुख को सबकुछ समझते रहेंगे, तब तक हमारा अस्तित्व किसी और के नियंत्रण में रहेगा।
- इतिहास गवाही देता है — अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश में हमारे मंदिर ढहे, घर उजड़े, आत्मसम्मान लूटा।
कब तक भागोगे हिंदू?
- 500 वर्ष पहले हिंदुकुश से भागे,
- 400 वर्ष पहले अफगानिस्तान से भागे,
- 77 वर्ष पहले पाकिस्तान से,
- 54 वर्ष पहले बांग्लादेश से,
- 35 वर्ष पहले कश्मीर से,
- और अब बंगाल से निकलते दिखाई दे रहे हो।
“अब समय है पीछे नहीं हटने का। एकजुट होकर आगे बढ़ो और देश समाज और धर्म की रक्षा करो। यह वही भूमि है जहाँ संकल्प जन्म लेता है, और यहीं से हमारा उत्थान भी होगा।”
२. शत्रु की चाल और हमारी निष्क्रियता
- कभी गौर किया है कि विरोधी कितनी जल्दी तैयार हो जाता है?
- नागपुर की हिंसा ने एक बार फिर दिखाया कि दूसरी तरफ़ के लोग 10–15 मिनट में एकत्र हो जाते हैं, और हमला कर देते हैं।
- और हम? हम वर्षों में भी निर्णय नहीं ले पाते।
- क्या हमने संगठन का असली अर्थ भुला दिया?
- क्यों हमें एकता केवल त्यौहारों तक सीमित लगती है?
- क्यों हम अपनी सुरक्षा को दूसरों की कृपा पर छोड़ देते हैं?
स्मरण रखो:
- “जिस दिन हिंदू ने विदुर नीति और चाणक्य नीति को फिर अपनाया, उस दिन सीमाएँ मिटेंगी और पराक्रम जागेगा।”
- हमें अब सहिष्णुता नहीं, संतुलित प्रतिकार सीखना होगा।
यही धर्म का पालन है, अधर्म का नहीं।
३. भूल जो हमें बार-बार हरा रही है
- हम भूल गए कि क्षमा तभी तक शक्ति है जब तक सामने वाला धर्म का पालन करे।
- चुप रहना अब ‘शांति’ नहीं — ‘समर्पण’ है।
- यदि शास्त्र नहीं पढ़ोगे तो संस्कृति खो दोगे, और यदि शस्त्र नहीं उठाओगे तो अस्तित्व खो दोगे।
- हमें पुनः वह शिक्षण और चेतना चाहिए जो चाणक्य ने नालंदा में जगाई थी।
- वह साहस चाहिए जो महाराणा प्रताप और शिवाजी ने दिखाया था।
आज की जरूरत है –
- एक हाथ में शास्त्र, दूसरे में शस्त्र, और हृदय में श्रद्धा।
४. धर्म पर हमला – जाति और वर्ग की दीवारें गिर गईं
नागपुर और बंगाल की घटनाएँ हमें चेतावनी देती हैं कि आक्रमणकारी न जात पूछता है, न वर्ग। उसकी दृष्टि में सिर्फ काफिर हिंदू है।
- न उसने दलित को देखा,
- न वामपंथी को,
- न ओबीसी को,
- न ब्राह्मण को।
क्योंकि उसके सामने केवल एक लक्ष्य है – “सनातन हिन्दू को कुचलो।”
एक सशक्त सन्देश:
- जब तक हिंदू जाति के नाम पर बंटता रहेगा, वह मिटता रहेगा।
- जब वह ‘हम एक हैं’ मानकर एकजुट होकर देश और धर्म के लिए संघर्ष करेगा, तभी उसका उत्थान शुरू होगा।
५. अबकी बार प्रतिक्रिया नहीं, पुनर्जागरण
बीजेपी जागी तो कांग्रेस भागी, सेना जागी तो आतंकी भागे, और जब हिंदू जागेगा तो गद्दार भागेंगे।
- अब समय “प्रतिक्रिया” का नहीं, पुनर्जागरण का है।
- काली मिर्च कभी गोरी नहीं हो सकती, जिहादी कभी देशभक्त नहीं हो सकते।
- हम 95 करोड़ हैं, फिर भी वैसी राष्ट्रभक्ति नहीं दिखाते जैसी 95 लाख यहूदियों ने दिखाई।
- क्योंकि वे अपने धर्म और संस्कृति को राजनीति से ऊपर रखते हैं।
हमें यह समझना होगा:
- धर्म से मूल्यबोध आता है, और मूल्य से ही राष्ट्र ताकत पाता है।
६. धर्म ही सुरक्षा की नींव है
- जहाँ धर्म कमजोर होता है, वहाँ रोटी छीनी जाती है, कपड़े उतारे जाते हैं और मकान जला दिए जाते हैं।
- यह कोई कथा नहीं, आज की सच्चाई है।
- जो धर्म की रक्षा नहीं करता, वह अंततः सबकुछ खो देता है।
- आज भी हम वही स्थिति दोहरा रहे हैं — रोटी की दौड़ में धर्म को भूलकर।
- पर याद रखो, रोटी तभी सुरक्षित है जब धर्म सुरक्षित है।
बदलाव का मंत्र:
- पहले धर्म और राष्ट्र को सशक्त करो, बाकी सब अपने-आप मजबूत होगा।
७. सनातन की रक्षा – जन्मसिद्ध अधिकार
- हर हिंदू को यह स्मरण रखना चाहिए –
“अपने सनातन धर्म का प्रचार करना और देश की रक्षा करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।” - चाहे साथ कोई दे या न दे, तुम्हारे कर्तव्य का निर्धारण दूसरों की सहमति से नहीं होगा।
- अपने घरों में धर्म का ज्ञान दो।
- अपनी पीढ़ी को गर्व सिखाओ, भय नहीं।
- अपनी बहन-बेटियों को संस्कारित और सावधान बनाओ।
- लव जिहाद और सांस्कृतिक अतिक्रमण से उन्हें बचाना ही आज की असली सेवा है।
- क्योंकि जब महिला सुरक्षित होगी, तब ही संस्कृति अमर रहेगी।
८. संगठन ही असली शक्ति और सुरक्षा
- धन से सुरक्षा नहीं मिलती, केवल एकता और कियाशीलता से मिलती है।
- “हिंदुओं का अमीर होना सुरक्षा की गारंटी नहीं है, बल्कि उनका संगठित होकर सचेत रहना ही सुरक्षा की गारंटी है।”
- संगठन ही वह कवच है जो बाहरी आक्रमण को रोक सकता है।
- यह कवच केवल मंच या सभा से नहीं, घर-घर के संकल्प से बनेगा।
हर हिंदू का प्रण:
- जाति से ऊपर उठो,
- संगठन को सर्वोच्च रखो,
- सेवा और सुरक्षा को जीवन का लक्ष्य बनाओ।
“हम एक हैं – यही संदेश हर मोहल्ले, हर मंदिर, हर परिवार से उठना चाहिए।”
९. संदेश – परिवर्तन तुम्हीं हो
- अब यह धर्मयुद्ध बाहरी नहीं, भीतरी है।
- अब शत्रु के विरुद्ध नहीं, अपने भीतर के आलस्य के विरुद्ध लड़ना है।
- यह युद्ध तलवारों का नहीं, चेतना का है।
- यह विजय लाशों की नहीं, संस्कारों की होगी।
- यह संघर्ष 10 करोड़ नहीं, 1 अरब चेतन हिंदुओं की पुकार बनेगा।
हिंदू जो जागेगा, वही भारत को फिर महान बनाएगा।
- यह भूमि शकुंतला की है, शिवाजी की है, और अब हमारी है —
इसे किसी को फिर से हड़पने नहीं दिया जाएगा।
१०. संकल्प मंत्र
- “मैं धर्म की रक्षा करूंगा।
- मैं राष्ट्र की रक्षा करूंगा।
- मैं किसी अन्याय के आगे नहीं झुकूंगा।
- मैं एकजुट रहूंगा, सजग रहूंगा, सनातन रहूंगा।”
- राष्ट्र, धर्म और समाज की रक्षा के लिए हमारी राष्ट्रवादी ईमानदार सरकार का राजनीतिक और सामाजिक रूप से पूर्ण समर्थन करूंगा।
यह लड़ाई जीतने के लिए हमें बस एक बात याद रखनी है —
- हम में से हर एक जाग गया तो कोई हमें रोक नहीं पाएगा।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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