जब विपक्ष जनसेवक से देशविरोधी बना
1. स्वर्णिम अतीत: जब विपक्ष विचार, मर्यादा और देशभक्ति का प्रतीक था
- एक समय था जब भारत की राजनीति में विपक्ष का अर्थ था नीति, निष्ठा और राष्ट्रहित।
- डॉ. राममनोहर लोहिया, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, महावीर त्यागी, प्रकाशवीर शास्त्री, तारकेश्वरी सिन्हा, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, मधु लिमये, सुषमा स्वराज, राजनारायण, ज्योति बसु, चरण सिंह, मधु दण्डवते, सुरजीत सिंह, चंद्रशेखर, रामधन, सोमनाथ चटर्जी, मोहन धारिया जैसे नेता संसद की शान थे।
- इन नेताओं ने विपक्ष को जनता की आवाज बनाया, न कि सत्ता की भूख का माध्यम।
- उनकी वाणी में तर्क, सत्य और राष्ट्रीयता की शक्ति थी।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री और मंत्री इनसे मुकाबले से पहले पूरी तैयारी करते थे क्योंकि विपक्ष में बैठे ये नेता लोकतंत्र की आत्मा थे।
- संसद में इनकी बहसें विचारों का मंथन थीं, न कि गाली-गलौज और अव्यवस्था का प्रदर्शन।
2. पतन की शुरुआत: जब विपक्ष सिद्धांतों से भटक कर अवस
यही कारण था कि उस दौर में भारत में लोकतंत्र सशक्त और सार्थक था। आजकल वह अवसरवाद में बदल गया है
- आज का विपक्ष उस गौरवशाली अतीत की परछाईं तक नहीं बचा पाया।
- अब विपक्ष का अर्थ राष्ट्रविरोध और मोदी–विरोध बन गया है।
- जिन दलों का जन्म देशहित में हुआ था, वे आज निजी स्वार्थ, परिवारवाद और वोटबैंक की राजनीति में डूब गए हैं।
- कांग्रेस, जो कभी स्वतंत्रता सेनानियों की पार्टी थी, आज एक पारिवारिक कंपनी बन चुकी है जहाँ न तो विचार का स्थान है न ही स्वतंत्र सोच का।
- शशि थरूर, शरद पवार, प्रियंका चतुर्वेदी, आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी जैसे समझदार नेताओं को किनारे कर दिया गया क्योंकि वे केवल “हाँ जी” नहीं बोलते।
- ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेता का अपमान हुआ तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
- जब राहुल गांधी ने हिमंता बिस्वा सरमा को कुत्तों के बिस्किट वाला पैकेट बढ़ाया, तब उन्होंने एक सशक्त नेता को खो दिया।
- सचिन पायलट जैसे युवा नेतृत्व को भी राजनीतिक फ्रीज में डाल दिया गया।
आज कांग्रेस में केवल वही चलता है जो “परिवार की पूजा” करे, न कि जो देश के लिए बोले।
3. तब और अब का अंतर: जब विपक्ष देश का था, अब केवल सत्ता का है
- पहले विपक्ष का अर्थ था — जनता के लिए संघर्ष, आज अर्थ है देश के खिलाफ साजिश।
- पहले लोहिया, अटल, आडवाणी जैसे नेता राष्ट्रहित में बोलते थे; आज लालू, अखिलेश, ममता, मायावती, तेजस्वी, संजय राउत जैसे नेता जातिवाद और तुष्टिकरण में डूबे हैं।
- पहले विपक्ष सत्ता का प्रहरी था, आज वह राष्ट्रविरोधी गिरोहों का सहयोगी बन गया है।
- आज का विपक्ष आतंकवादियों, अलगाववादियों, वामपंथी संगठनों और विदेशी मीडिया के साथ मिलकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।
- विचार का स्थान अब विकृति ने ले लिया है, राष्ट्रवाद का स्थान घृणा ने ले लिया है।
- मुस्लिम राजनीति भी अब सिर्फ धार्मिक उन्माद तक सीमित रह गई है; ओवैसी जैसे नेता केवल ध्रुवीकरण के प्रतीक बन गए हैं।
4. सच्चे नेतृत्व का उदय — मोदी ने पूरे किए वह सपने जो पहले केवल वादे थे
- वास्तविकता यह है कि जिस परिवर्तन की अपेक्षा जनता और विपक्ष ने कभी सरकार से की थी, उसे साकार नरेंद्र मोदी ने किया।
- मोदी किसी वंश से नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी से उठे नेता हैं, जिन्होंने कठिनाइयों में रहकर सेवा को अपना धर्म बनाया।
- जब लोग विपक्ष के भाषणों में बदलाव की उम्मीद देखते थे, तब मोदी ने उस बदलाव को व्यवहार में लाया।
- पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने ईमानदार शासन, मजबूत अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, और भारत के वैश्विक गौरव को पुनः स्थापित किया।
जो बातें पुराने नेता केवल कहते थे, मोदी ने करके दिखाया —
- गरीबों को घर, गैस, पानी, शौचालय मिले,
- आतंकवाद का जवाब सीमा पार तक गया,
- और भारत की आवाज अब विश्व मंचों पर गूंजती है।
- मोदी ने देश को राष्ट्रवाद और सनातन गर्व की दिशा में अग्रसर किया।
5. सशक्त लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष जरूरी — लेकिन राष्ट्रविरोध नहीं
लोकतंत्र तभी सशक्त होता है जब विपक्ष रचनात्मक, जिम्मेदार और राष्ट्रनिष्ठ हो।
- पर आज का विपक्ष केवल प्रचार, झूठ और नफरत का पर्याय बन गया है।
- वे नीतियों पर सवाल नहीं उठाते, बल्कि भारत की संप्रभुता पर प्रश्न उठाते हैं।
- उन्हें विकास से नहीं, वोटबैंक से मतलब है।
- वे विरोध इस तरह करते हैं मानो सरकार नहीं, भारत का विरोध कर रहे हों।
देश को ऐसे विपक्ष की आवश्यकता है जो सत्ता नहीं, सेवा को लक्ष्य बनाए — लेकिन आज ऐसा विपक्ष दुर्लभ है।
6. आज का समय धर्मयुद्ध का — धर्म की विजय निश्चित है
- यह विरोध का पतन केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आदर्शों का पतन है।
- जो नेता पहले जनता के लिए बोलते थे, आज वे सत्ता और स्वार्थ के लिए बोलते हैं।
वर्तमान स्थिति महाभारत जैसी है —
- एक ओर धर्म के पक्ष में खड़े पांडव (राष्ट्रवादी, सनातनी, देशभक्त) हैं,
- और दूसरी ओर कौरव (वामपंथी, वंशवादी, विदेशी–प्रेरित ताकतें) हैं, जो अधर्म का साथ दे रही हैं।
- कौरवों की सेना बड़ी है, लेकिन पांडवों को श्रीकृष्ण जैसे मार्गदर्शक की आवश्यकता है — जो उन्हें जागृत करे, सही दिशा दिखाए और विजय तक ले जाए।
आज भी वही संदेश प्रासंगिक है —
- “संघर्ष से मत डरिए, क्योंकि धर्म की विजय तय है।”
- हमें अहिंसा के खोल से बाहर निकलकर साम, दाम, दंड, भेद और यदि आवश्यक हो तो छल के माध्यम से भी अधर्म के विरुद्ध लड़ना होगा।
- यह संघर्ष भारत के अस्तित्व, सनातन धर्म की रक्षा, और आने वाली पीढ़ियों की समृद्धि के लिए है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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