एक सभ्यता के पतन की चेतावनी, नीति पक्षपात और संतुलित जनसंख्या उत्तरदायित्व की पुकार
🔹 धारा 1: बिसलेरी की बिक्री — एक चेतावनी जिसे हम नजरअंदाज़ कर बैठे
जब बिसलेरी के संस्थापक रमेश चौहान ने यह ऐलान किया कि वह अपनी कंपनी 7,000 करोड़ रुपये में बेच रहे हैं, तो उसका कारण दिवालियापन या व्यापार में घाटा नहीं था।
- बल्कि उनके पास कोई उत्तराधिकारी नहीं था।
- उनकी एक बेटी थी, पर उन्होंने कारोबार संभालने में रुचि नहीं ली। कोई बेटा नहीं, कोई वारिस नहीं।
- रमेश जी ने कभी इन लोकप्रिय नारे अपनाए थे:
> हम दो, हमारे एक”
> “छोटा परिवार, सुखी परिवार”
> “बेटा-बेटी एक समान”
- ये नारे आदर्शवादी और नेक इरादे से दिए गए थे। पर आज उन्हें अपनी बनाई हुई साम्राज्य बेचना पड़ रहा है, क्योंकि जनसांख्यिकीय दूरदर्शिता का अभाव था।
- यह सिर्फ उनकी व्यक्तिगत कहानी नहीं, हर सनातनी परिवार के लिए चेतावनी है — कि सिर्फ नारों से नहीं, संतुलित रणनीति से ही सभ्यताएं जीवित रहती हैं।
🔹 धारा 2: जनसंख्या नियंत्रण में ऐतिहासिक असंतुलन
✅ जनसंख्या नियंत्रण केवल एक धर्म की जिम्मेदारी नहीं, हर नागरिक का कर्तव्य है।
आज भारत विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।
पर इस जनसंख्या में कौन किस अनुपात में बढ़ा, इसपर बात करने से सभी कतराते हैं।
जब हिंदुओं को कहा गया:
- नसबंदी शिविर में जाइए
- “एक या दो बच्चे” रखिए
- परिवार नियोजन को अपनाइए
तब दूसरी ओर, खासकर मुस्लिम समुदाय को इस नियम से छूट दी गई —
या तो जानबूझकर, या वोटबैंक की राजनीति के कारण।
🔻 परिणाम?
- हिंदू जनसंख्या की वृद्धि दर घट गई
- मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी
- कई क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय असंतुलन उत्पन्न हो गया
यह कोई प्राकृतिक परिवर्तन नहीं था। यह:
- राजनीतिक लालच से प्रेरित
- कानूनी पक्षपात से संरक्षित
- अवसरवादी वोटबैंक नीति से पोषितथा।
🔹 धारा 3: राजनीतिक रूप से रची गई जनसांख्यिकीय असमानता
📜 क्या एक “धर्मनिरपेक्ष” देश में सभी के लिए एक समान कानून नहीं होने चाहिए?
- हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार किया गया (1955 से): महिलाओं को अधिकार, सीमित परिवार, इकलौता विवाह।
- परंतु मुस्लिम पर्सनल लॉ को हाथ नहीं लगाया गया:
- बहुपत्नी प्रथा जारी रही
- कोई जनसंख्या सीमा नहीं
- किसी प्रकार की कानूनी जवाबदेही नहीं
📉 नतीजा:
- हिंदू परिवार छोटे हो गए
- व्यापार विरासतें खत्म हो गईं
- मंदिरों को सेवक नहीं मिल रहे
- संस्थान वारिस के अभाव में ढहते जा रहे
- और उधर वोटबैंक फलता-फूलता गया, जबकि हमारा धर्म सिकुड़ता गया
🔹 धारा 4: मोदी सरकार का प्रयास और विरोधी तंत्र की बौखलाहट
जब मोदी सरकार ने Waqf Act में संशोधन किया, तो यह एक ऐतिहासिक कदम था:
- अवैध कब्जे की जांच
- समुदाय आधारित संसाधनों के एकाधिकार को चुनौती
- संस्थागत संतुलन की पुनर्स्थापना
✅ संसद के दोनों सदनों से पारित
✅ राष्ट्रपति से मंजूरी
पर जैसे ही कानून लागू हुआ, पूरा वामपंथी और कट्टरपंथी तंत्र एकजुट हो गया:
- सुप्रीम कोर्ट में दर्जनों याचिकाएंदायर की गईं
- NGO, मुस्लिम बोर्ड, विपक्षी दल सब एकजुट
कानून आज भी कोर्ट में अटका हुआ है, जबकि संसद से पारित हो चुका है
यह केवल एक कानून का विरोध नहीं,
- बल्कि न्याय का विरोध,
- समानता का विरोध,
- और सभ्यता को संतुलित करने के प्रयास का विरोध है।
🔹 धारा 5: जनसंख्या उत्तरदायित्व सभी समुदायों के लिए समान होना चाहिए
जनसंख्या नियंत्रण के नियम:
- समान होने चाहिए
- धर्म-निरपेक्ष होने चाहिए
- नीति-आधारित होने चाहिए
हमें यह मानसिकता बदलनी होगी कि केवल हिंदुओं को छोटा परिवार रखना चाहिए।
हर समुदाय, हर नागरिक को उत्तरदायी होना चाहिए:
- आर्थिक रूप से टिकाऊ परिवारों के लिए
- संसाधनों की सुरक्षा के लिए
- सामाजिक संतुलन और राष्ट्रीय अखंडता के लिए
यदि एक समुदाय अनुशासन में रहे और दूसरा अनियंत्रित रूप से बढ़ता जाए, तो अंजाम क्या होगा?
- सामाजिक तनाव
- धार्मिक असंतुलन
- सांस्कृतिक हाशिए पर जाना
- और अंततः राष्ट्रीय अस्थिरता
🔚 परिवार ही सभ्यता की नींव हैं
- आप कितने भी धनवान क्यों न हों — यदि आपकी विरासत संभालने वाला कोई न हो, तो वह साम्राज्य बेमानी है।
- सभ्यताएं युद्ध से नहीं, जनसंख्या पतन से नष्ट होती हैं।
- आइए इन पुराने नारों की समीक्षा करें।
- सभी समुदायों के लिए एक समान कानून की मांग करें।
- और सुनिश्चित करें कि अगली पीढ़ी न केवल संपत्ति, बल्कि धर्म, परंपरा और पहचान भी विरासत में ले।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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