जातिगत जनगणना पर देशभर में बहस तेज है। कुछ लोग इसे समाज की वास्तविक स्थिति समझने का जरिया मानते हैं, तो कुछ इसे सनातन भारत की एकता पर प्रहार बताकर खतरनाक साजिश करार देते हैं। सवाल यही है — क्या यह पहल सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाएगी या देश में नई विभाजन रेखाएं खींचेगी?
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: किसने की जातिगत जनगणना का विरोध?
- 2011 में कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में थी। उसमें समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल भी साझेदार थे।
- उस समय बीजेपी ने संसद में स्पष्ट रूप से मांग रखी कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए, ताकि विभिन्न वर्गों की सामाजिक स्थिति स्पष्ट हो।
- लेकिन राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम और कपिल सिब्बल ने इसका कड़ा विरोध किया।
उन्होंने कहा कि:
- “कोई भी कुछ भी बता सकता है”,
- “कर्मचारी जाति प्रमाणपत्र की पुष्टि नहीं कर सकते”,
- “यह अव्यवहारिक है।”
नतीजा: 2011 की जनगणना में जातिगत जानकारी लेने से मना कर दिया गया।
उसी दौर में कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण के तहत जामिया और एएमयू को अल्पसंख्यक घोषित किया और SC/ST को वहां से बाहर कर दिया।
2. राजनीति में मोड़: जब मोदी जी बने OBC चेहरे
- 2014 में नरेंद्र मोदी जी जैसे OBC नेता के प्रधानमंत्री बनने से कांग्रेस को झटका लगा।
- फिर जॉर्ज सोरोस जैसे अंतरराष्ट्रीय एजेंटों ने कांग्रेस को निर्देश दिया कि अब जातिगत जनगणना की मांग उठाओ, ताकि हिंदू समाज को फिर से जातियों में बाँटा जा सके और मोदी के हिंदुत्ववादी नेतृत्व को कमजोर किया जा सके।
- यही कारण है कि आज राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जातिगत जनगणना की आड़ में हिंदू समाज में दरार डालने की साजिश रच रहे हैं।
3. असली उद्देश्य क्या होना चाहिए जातिगत जनगणना का?
जातिगत जनगणना का उद्देश्य होना चाहिए:
- हर नागरिक के सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी एकत्र करना।
- धार्मिक, जातीय और उपजातीय स्तर पर आंकड़े प्राप्त कर उन्हें विकास योजनाओं से जोड़ना।
- शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, कौशल विकास जैसी योजनाएं समुदायों की आवश्यकताओं के अनुसार बनाना।
यह जनगणना सभी नागरिकों के लिए होनी चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या भाषा के हों।
4. राष्ट्र के लिए खतरा कहाँ है?
यह जनगणना विकास के उद्देश्य से की जाए — यह उचित है।
लेकिन जब इसके पीछे उद्देश्य हो:
- हिंदू समाज को जातियों में बांटना,
- मुस्लिम तुष्टिकरण करना,
- सनातन संस्कृति को खंडित करना,
- राजनीतिक ध्रुवीकरण करना —
तब यह जनगणना नहीं, राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र बन जाती है।
इस काम में विपक्षी दलों को सहयोग मिलता है गद्दार हिन्दुओं, विदेशी फंडेड NGO’s, छद्म धर्मनिरपेक्षों और मीडिया में बैठे भारत विरोधियों से।
5. समाधान क्या है? राष्ट्रवादी दृष्टिकोण:
✅ हम राष्ट्रभक्तों और सनातनियों को चाहिए कि:
- हम जातिगत जनगणना का समर्थन करें, लेकिन केवल राष्ट्रहित में योजनाओं के निर्माण के लिए।
- हम मांग करें कि जनगणना:
- धर्म, जाति, उपजाति के तीन स्तरों पर हो।
- हर नागरिक पर लागू हो – कोई अपवाद नहीं।
- इसका उपयोग केवल नीतियों और योजनाओं के लिए किया जाए, राजनीति के लिए नहीं।
⚠️ साथ ही हमें चेतना होगी कि:
- किसी भी प्रयास से सनातन धर्म, हिंदू एकता और भारत की अखंडता पर आंच न आने दें।
- हम सरकार पर दबाव बनाएं कि वह इस विषय पर पारदर्शिता और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दे।
6. हमारा आह्वान: एकजुट रहो – जागरूक बनो – सक्रिय रहो
- हमें अब जातिवाद नहीं, राष्ट्रवाद चाहिए।
- हमें अब वामपंथी एजेंडा नहीं, सनातनी नीति चाहिए।
- हमें वोट बैंक नहीं, सामाजिक समरसता और सशक्त भारत चाहिए।
भारत को जोड़ो, जातियों में मत तोड़ो।
सनातन धर्म की रक्षा ही भारत की रक्षा है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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