जातिवाद, ब्राह्मणवाद और मनुस्मृति का झूठा नैरेटिव
आज हमें बार-बार सुनाया जाता है कि भारत में अब भी ब्राह्मणवाद, मनुवाद और जातिवाद जैसी व्यवस्थाएं शोषण का कारण हैं। लेकिन क्या यह आज के भारत की सच्चाई है?
जरा एक नज़र डालिए भारत के शीर्ष संवैधानिक पदों पर —
- राष्ट्रपति — श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, एक अनुसूचित जनजाति की महिला।
- प्रधानमंत्री — नरेंद्र मोदी, एक चाय बेचने वाले गरीब परिवार से आने वाले ओबीसी।
- मुख्य न्यायाधीश — अनुसूचित जाति से।
- उपराष्ट्रपति — ओबीसी वर्ग से।
- कानून मंत्री, सामाजिक न्याय मंत्री, जनजातीय मंत्री — सब SC/ST/OBC वर्ग से।
तो क्या यह कथित “ब्राह्मणवादी सत्ता” का प्रमाण है? या फिर यह बताता है कि भारत अब एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज बनने की दिशा में बढ़ रहा है?
सच यह है:
जातिगत शोषण अब एक राजनीतिक टूल बन चुका है। असली वंचितों की मदद के बजाय इसे वोटों के लिए इस्तेमाल किया गया और खासतौर पर हिन्दू समाज को जातिवाद के ज़रिए जातियों में बांटने के लिए एक झूठा नैरेटिव फैलाया गया।
आरक्षण का मूल उद्देश्य क्या था? और कैसे इसका दुरुपयोग हुआ?
मूल भावना:
- आरक्षण एक सामाजिक न्याय का उपाय था, न कि स्थायी विभाजन की योजना।
- इसका उद्देश्य था — समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना।
- संविधान निर्माताओं ने इसे सिर्फ 10 वर्षों के लिए लागू किया था, ताकि इन वर्गों को शिक्षा, नौकरी और समाज में उचित अवसर मिल सके।
हकीकत क्या है?
- 75 वर्षों से अधिक हो गए, लेकिन आरक्षण अभी तक जारी है।
- अब तो आरक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी एक जन्मसिद्ध विशेषाधिकार बन चुका है, जिससे बहुत से लोग, जो अब सामाजिक रूप से समर्थ हैं, अनावश्यक लाभ उठा रहे हैं।
- वास्तव में गरीब और मेहनती सवर्ण, जो खेतों और मजदूरी में लगे हैं — उन्हें कोई सहारा नहीं।
राजनीतिक खेल:
- आरक्षण को वोटबैंक बनाने के लिए हर राजनीतिक दल ने इसे छुआ तक नहीं।
- जब कोई यह मांग करता है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर हो — तो उसे संविधान विरोधी, जातिवादी कहकर चुप करा दिया जाता है।
वर्णाश्रम की वास्तविकता और उसके विरुद्ध फैलाई गई साजिश:
वर्ण व्यवस्था कभी जन्म आधारित नहीं थी, यह गुण और कर्म पर आधारित थी।
- ब्राह्मण: अध्ययनशील, अध्यापक, ज्ञानी
- क्षत्रिय: रक्षक, योद्धा
- वैश्य: व्यापारी, धन निर्माता
- शूद्र: सेवा देने वाले
लेकिन ब्रिटिश काल और कांग्रेस के बाद की राजनीति ने इसे जन्म आधारित बना दिया — ताकि हिन्दू समाज को जातियों में बांटा जा सके। असली उद्देश्य था — हिन्दुओं में फूट डालो और मुसलमानों को एकजुट रखो ताकि वोट पक्के रहें।
अगर 2014 में मोदी सरकार नहीं आई होती, तो क्या होता?
कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों की तुष्टीकरण की नीतियों ने भारत को इस्लामी राष्ट्र बनने की दिशा में धकेल दिया था।
बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे हालात हमारे भी बनते जा रहे थे:
- आतंकियों के केसों में बार-बार दया याचिकाएं
- सुप्रीम कोर्ट रात 2 बजे खोलना
- देशद्रोहियों को संरक्षण देना
- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ बोर्ड को असंवैधानिक विशेषाधिकार देना
1971 में पाकिस्तान पर जीत के बाद 90,000 पाक सैनिकों को बिना शर्त लौटा दिया, लेकिन हमारे 50 से अधिक सैनिक जो पाक की जेलों में थे, उनके बारे में बातचीत तक नहीं की गई।
यह क्या था, राष्ट्रहित या डर और तुष्टीकरण की नीति?
मोदी युग में भारत का पुनर्जागरण:
ऑपरेशन सिंदूर जैसे साहसी कदमों ने दुनिया को चौंकाया।
भारत अब:
- दुनिया की 4थी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- हथियारों का निर्माता बन रहा है।
- डिप्लोमैसी में ताकतवर और सम्मानित राष्ट्र बन चुका है।
- और सबसे जरूरी — हिंदू समाज फिर से जागृत हो रहा है।
लेकिन खतरा अभी भी मौजूद है:
- विपक्षी दल, वामपंथी, कट्टरपंथी, लुटियन मीडिया और विदेशी एजेंसियां मिलकर:
- देश में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रही हैं।
- विदेशी फंडिंग लेकर देश को फिर से इस्लामीकरण की ओर धकेल रही हैं।
और हिंदुओं को जातियों में बांटकर उनकी एकता तोड़ने में लगी हैं।
समाधान:
- जातिगत आरक्षण बंद किया जाए — और सिर्फ आर्थिक आधार पर समर्थन मिले।
- हिन्दू समाज को एकजुट होना होगा — जाति, क्षेत्र, भाषा से ऊपर उठकर।
- देशहित सर्वोपरि हो, न कि वोटबैंक या तुष्टीकरण।
- ऐसे नेताओं और दलों को उखाड़ फेंकना होगा, जो देश के टुकड़े करना चाहते हैं।
आइए, हम सभी मोदीजी का राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर समर्थन करने का संकल्प लें, जातिवाद जैसी विभाजनकारी ताकतों को दरकिनार करें, और उन पर पूरा भरोसा व संयम बनाए रखें।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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