धार्मिक स्वतंत्रता में छुपा दोगलापन
- दशकों से “भाईचारा” शब्द को भारत की एकता और सौहार्द का प्रतीक बताया जाता रहा है।
- लेकिन इस नकली आवरण के पीछे एक खतरनाक राजनीतिक जाल छिपा है — ऐसा जाल जिसका इस्तेमाल हिंदू बहुसंख्यक समाज को कमजोर करने, उसकी सहिष्णुता का शोषण करने और उसकी अंतरात्मा को अपराध-बोध में डालने के लिए किया गया।
- यह कोई वास्तविक करुणा नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध वैचारिक गुलामी का स्वरूप है, जिसने हिंदू समाज की शक्ति, आवाज़ और आत्मसम्मान को उसकी अपनी भूमि पर कमज़ोर किया।
1️⃣ राजनीतिक “भाईचारे” की साज़िश
- 1947 के बाद से नेताओं ने “भाईचारे” के नाम पर बार-बार हिंदुओं की आवाज़ को दबाया और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को संरक्षण दिया।
- इस जुमले के माध्यम से हिंदू समाज की सहिष्णुता को समर्पण में बदल दिया गया — जो अन्याय के खिलाफ बोलता, उसे “सांप्रदायिक” या “असहिष्णु” कहा गया।
- कांग्रेस शासन ने इस पाखंड को संस्थागत रूप दिया — आयोगों, अल्पसंख्यक विशेषाधिकारों और आरक्षण की राजनीति के माध्यम से एक दोहरी नागरिकता बनाई: एक तुष्टीकरण के लिए और एक दबाने के लिए।
- अल्पसंख्यक आयोग, सच्चर समिति और वोट बैंक आधारित योजनाएँ समानता नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रभुत्व का साधन थीं।
- धीरे-धीरे “भाईचारा” शब्द एकतरफा सहिष्णुता का प्रतीक बन गया — जहाँ हिंदू देता रहा, बाकी लेते रहे।
2️⃣ असमानता और विशेषाधिकार का ज़हर
- जब एक पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है”, तो यह कोई गलती नहीं थी — यह उनकी नीति का सच था।
- आतंकवाद के दौर में “हिंदू आतंकवाद” जैसी झूठी थ्योरी गढ़ी गई, संतों को जेल में डाला गया, लेकिन कट्टर मौलानाओं को गैर-जमानती वारंट होने के बावजूद नहीं छुआ गया।
- कांची शंकराचार्य की गिरफ्तारी और जामा मस्जिद के मौलाना को छोड़ा जाना इस दोहरे मापदंड का उदाहरण है।
- वक्फ एक्ट के तहत हिंदू संपत्तियों को जब्त किया गया और उन्हें न्याय का अधिकार भी नहीं दिया गया।
- जब बीजेपी ने इसे सुधारने की कोशिश की, तो वही “भाईचारे” के ठेकेदार संसद में विरोध करने लगे हुए हैं।
3️⃣ धार्मिक स्वतंत्रता का दोगलापन
- हिंदू मंदिरों में नमाज़ की अनुमति दी जाती है, लेकिन जब “वंदे मातरम” या “जय श्रीराम” की बात आती है, तो इसे भड़काऊ कहा जाता है।
- कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार हुआ, बहनों की अस्मिता लूटी गई, घर उजड़े — लेकिन किसी ने भाईचारे का झंडा नहीं उठाया।
- “द कश्मीर फाइल्स” आने के बाद ही कुछ लोग मजबूरी में संवेदनशील बने, क्योंकि अब सच छिप नहीं सकता था।
- बंगाल, बिहार, असम में वोट बैंक के लिए रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को पनाह दी गई। जब राष्ट्रवादी सरकार ने कार्रवाई की, तो वही “भाईचारे” के ठेकेदार खड़े हो गए।
4️⃣ संविधान में छेड़छाड़ और सांस्कृतिक क्षरण
- भारत के संविधान में अब तक 72 संशोधन हुए हैं, जिनमें कई ऐसे हैं जो हिंदू समाज की सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर प्रहार करते हैं।
- अंबेडकरवाद, गांधीवाद, लोहियावाद जैसी विचारधाराओं को हिंदू समाज में फूट डालने के औज़ार के रूप में प्रयोग किया गया।
- “धर्म” और “मजहब” के बीच के अंतर को जानबूझकर धुंधला कर दिया गया ताकि हिंदू समाज की पहचान कमजोर पड़े।
- गुरुकुल और वैदिक शिक्षण संस्थान को सरकारी मान्यता और फंड से वंचित रखा गया, जबकि मदरसों और मिशनरी स्कूलों को विशेष संरक्षण मिला।
- आज भी मंदिरों की आय सरकार के नियंत्रण में है, लेकिन मस्जिदें और चर्च स्वतंत्र रूप से अपना धन चलाते हैं — यही है भारत का नकली सेक्युलरिज़्म।
5️⃣ शिक्षा और वित्तीय अन्याय
- हिंदू करदाताओं के पैसे से ऐसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं जो उन्हीं के धर्म और संस्कृति के खिलाफ प्रचार करते हैं।
- मदरसों और मिशनरी स्कूलों को फंडिंग और विदेशी सहयोग मिलता है, जबकि वेदिक संस्थान संघर्ष करते हैं।
- हिंदू बच्चों को अपनी परंपरा पर गर्व नहीं, बल्कि शर्म महसूस कराई जाती है — जबकि “माइनॉरिटी” पहचान को गौरव बताया जाता है।
- यह आर्थिक और शैक्षणिक असमानता एक योजनाबद्ध सामाजिक इंजीनियरिंग का हिस्सा है।
6️⃣ कश्मीर से केरल तक — मौन नरसंहार
- कश्मीरी पंडितों का पलायन आधुनिक भारत का सबसे काला अध्याय है, लेकिन उसे स्कूलों में नहीं पढ़ाया गया, मीडिया में नहीं दिखाया गया।
- केरल, बंगाल और उत्तर-पूर्व में हिंदुओं के त्योहारों पर हमले होते हैं, मंदिर तोड़े जाते हैं, लेकिन कोई “भाईचारा” नहीं दिखता।
- हर दंगा, हर आतंक हमला, हर जनसंख्या परिवर्तन भारत पर धीमा वैचारिक आक्रमण है।
- मगर राजनीतिक वर्ग अब भी “भाईचारा” का राग अलापता है ताकि हिंदू समाज मौन बना रहे और हमलावर निर्भीक।
7️⃣ अवैध घुसपैठ: नकली भाईचारे की असली सच्चाई
- बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध घुसपैठ ने भारत के सीमावर्ती इलाकों की जनसांख्यिकी बदल दी है।
- ये सिर्फ आर्थिक प्रवासी नहीं, बल्कि संगठित एजेंडा के वाहक हैं।
- राजनीतिक दल उन्हें स्थायी वोट बैंक बनाना चाहते हैं, और जब सरकार कार्रवाई करती है, तो यही लोग “मानवता” का चोला ओढ़ लेते हैं।
- जब मोदी सरकार CAA और NRC लाती है, तो ये लोग “भाईचारे” के नाम पर विरोध में उतरते हैं।
- यदि यह घुसपैठ जारी रही, तो भारत भी लेबनान या सीरिया जैसी स्थिति में पहुंच सकता है — यह चेतावनी अब केवल चेतावनी नहीं, बल्कि खतरे की घंटी है।
8️⃣ हिंदू समाज का जागरण
- अब समय है कि “झूठे भाईचारे” का नकाब उतारा जाए।
- सनातनी समाज को समझना होगा कि धर्म का अर्थ आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि न्याय और आत्मसम्मान है।
- जाति, भाषा और क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर हिंदू एकजुट हों, तभी भारत अपनी सभ्यता को बचा सकेगा।
- यह आधुनिक महाभारत का युग है — कौरव तैयार हैं, अब पांडवों को धर्म, नीति और रणनीति से विजय सुनिश्चित करनी होगी।
9️⃣ भ्रम का अंत
- सच्ची शांति तभी संभव है जब न्याय निष्पक्ष हो।
- जो “भाईचारा” एक समुदाय को चुप रहने और दूसरे को मनमानी करने देता है, वह शांति नहीं — दासता है।
- भारत का पुनर्जागरण सत्य, साहस और एकता पर आधारित होगा।
- अब समय है इस पाखंड का अंत करने और जागरूक हिंदू चेतना के नए युग की शुरुआत करने का।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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