जिहादी उग्रवाद
l क्यों पूरी दुनिया — और शांति-प्रिय मुसलमानों को भी — इसे समाप्त करने के लिए एकजुट होना होगा
- आज विश्व एक साधारण सुरक्षा समस्या से नहीं, बल्कि एक गंभीर सभ्यतागत संकट से जूझ रहा है।
- हिंसक जिहादी उग्रवाद, जिसे एक कट्टर और आक्रामक अल्पसंख्यक बढ़ावा दे रहा है, मानव जीवन, वैश्विक शांति, सामाजिक सद्भाव, महिलाओं के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बन चुका है।
- यह खतरा अब किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका—हर जगह आतंकवादी हमले, दंगे, कट्टरपंथीकरण, जनसांख्यिक अस्थिरता और सहअस्तित्व का क्षरण देखा जा रहा है।
यह धर्मों का संघर्ष नहीं है। यह मानवता और हिंसा की विचारधारा के बीच की लड़ाई है।
🔴 मूल सत्य: यह आस्था नहीं, एक विचारधारा है
यह बात ईमानदारी और जिम्मेदारी से कही जानी चाहिए:
- शांति से इस्लाम मानने वाले मुसलमान समस्या नहीं हैं
- जिहादी उग्रवाद एक राजनीतिक–धार्मिक विचारधारा है, आध्यात्मिक आस्था नहीं
- वैश्विक स्तर पर जिहादी आतंक के सबसे बड़े शिकार स्वयं मुसलमान ही हैं
- शांतिप्रिय और सुधारवादी मुसलमानों को अक्सर चरमपंथी धमकाते, चुप कराते या मार देते हैं
वैश्विक जिहाद को आगे बढ़ाने वाली विचारधारा आध्यात्मिकता से नहीं, बल्कि:
- श्रेष्ठतावादी व्याख्याओं
- राजनीतिक वर्चस्व को धर्म का मुखौटा देने
- हिंसा और शहादत के महिमामंडन
- बहुलता, समानता और सहअस्तित्व के निषेध
से प्रेरित है।
- इसका लक्ष्य आस्था नहीं, बल्कि डर के जरिए प्रभुत्व है।
⚠️ तुष्टिकरण और इनकार ने इस संकट को बढ़ाया
दशकों से वैश्विक प्रतिक्रिया गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण रही है:
- राजनीतिक शुद्धता ने नैतिक स्पष्टता की जगह ले ली
- आतंक को “नाराज़गी” या “परिस्थिति” बताकर जायज़ ठहराया गया
- चुनिंदा “मानवाधिकार” तर्कों से चरमपंथियों को ढाल मिली
- पीड़ित देशों पर दबाव डाला गया, आक्रांताओं को नहीं
- सच्चाई को “असहिष्णु” कहकर दबा दिया गया
इसका परिणाम शांति नहीं रहा। बल्कि आतंकी हमले, कट्टरपंथी युवाओं की पीढ़ी, समानांतर समाज और सामाजिक विभाजन—विशेषकर यूरोप में—तेज़ी से बढ़े हैं।
- तुष्टिकरण ने चरमपंथियों को ताकत और मानवता को धोखा दिया है।
🧠 एक निर्णायक सत्य: शांति-प्रिय मुसलमानों को नेतृत्व करना होगा
एक अत्यंत महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा तथ्य यह है:
👉 जिहादी उग्रवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक शांति–प्रिय और मानवीय मुसलमान खुलकर और दृढ़ता से इसके विरुद्ध खड़े नहीं होते।
- मूल, आध्यात्मिक इस्लाम आतंक, ज़बरदस्ती या बलपूर्वक धर्मांतरण का समर्थन नहीं करता
- उग्रवाद का विस्तार मुख्यतः ऐतिहासिक आक्रमणों, जबरन धर्मांतरण, राजनीतिक कट्टरता और आधुनिक वैचारिक नेटवर्क के कारण हुआ है
- आज के अनेक चरमपंथी राजनीतिक ब्रेनवॉश के उत्पाद हैं, न कि सच्ची आध्यात्मिकता के
शांति-प्रिय मुसलमानों के पास सबसे बड़ा नैतिक अधिकार है कि वे:
- जिहादी विचारधारा को सार्वजनिक रूप से अस्वीकार करें
- अपने समुदायों में कट्टरपंथियों को अलग-थलग करें
- युवाओं को कट्टरपंथ से बचाएँ
- सुधारवादी धार्मिक शिक्षा और विचारधारा को बढ़ावा दें
- चुप्पी नहीं, मानवता के साथ खड़े हों
चुप्पी चरमपंथियों को झूठा प्रतिनिधित्व सौंप देती है।
🌐 वैश्विक समुदाय को क्या करना चाहिए — केवल बयान नहीं, ठोस कदम
1️⃣ विचारधारा को स्पष्ट रूप से पहचानें
- “हिंसक उग्रवाद” जैसे अस्पष्ट शब्दों के पीछे न छिपें
- जिहादी उग्रवाद को स्पष्ट रूप से समस्या मानें
- धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक-धार्मिक हिंसा में स्पष्ट अंतर करें
सत्य ही शांति की पहली सीढ़ी है।
2️⃣ आतंक के पक्षधर तर्कों पर शून्य सहनशीलता
- “परिस्थिति” या “कारण” के नाम पर आतंक को जायज़ न ठहराएँ
- दंगाइयों, पत्थरबाज़ों और आतंकी समर्थकों को कोई कानूनी या मीडिया संरक्षण न मिले
मानवाधिकार निर्दोषों की रक्षा के लिए हों, हिंसक तत्वों की ढाल न बनें
3️⃣ पूरे चरमपंथी इकोसिस्टम को ध्वस्त करें
सशस्त्र हमला अंतिम चरण है।
पहले हमें निशाना बनाना होगा:
- घृणा फैलाने वाले कट्टर उपदेशक और संस्थान
- ऑनलाइन प्रचार, भर्ती और एन्क्रिप्टेड नेटवर्क
- विदेशी फंडिंग, हवाला और चैरिटी का दुरुपयोग
- वैचारिक ढाल बने NGO
यह सॉफ्ट वॉर है और इसे उसी गंभीरता से लड़ना होगा।
4️⃣ आव्रजन और शरणार्थी नीतियों में यथार्थवाद
मानवीय संवेदना, राष्ट्रीय अस्तित्व से ऊपर नहीं हो सकती।
- कड़ी पृष्ठभूमि और वैचारिक जाँच
- अवैध और कट्टर तत्वों का निर्वासन
- भावनात्मक दबाव में स्वतः नागरिकता नहीं
- अनसुलझे वैचारिक संघर्षों का आयात नहीं
यूरोप का अनुभव एक चेतावनी है।
5️⃣ आतंक निर्यात करने वाले देशों को जवाबदेह ठहराएँ
- जिहादी नेटवर्क को सहारा देने वाले देशों पर प्रतिबंध
- सीमा-पार आतंक को आक्रमण माना जाए, केवल अपराध नहीं
- दोहरे भू-राजनीतिक मापदंड समाप्त हों
“अच्छा आतंकवादी” जैसी कोई चीज़ नहीं होती।
6️⃣ मानवता की रक्षा करने वाले अग्रिम देशों का समर्थन
भारत और इज़राइल जैसे देश केवल अपनी सीमाएँ नहीं, बल्कि सभ्यतागत मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं।
उन्हें चाहिए:
- खुफिया सहयोग
- कूटनीतिक समर्थन
- निर्णायक कार्रवाई की कानूनी स्वतंत्रता
आतंक से लड़ने वाला सैनिक अपराधी नहीं होता। अपने नागरिकों की रक्षा करना दमन नहीं, कर्तव्य है।
🕊️ दीर्घकालिक समाधान: सुधार, साहस और एकता
स्थायी शांति के लिए आवश्यक है:
- मुस्लिम समाजों में सुधारवादी आवाज़ों का संरक्षण
- श्रेष्ठतावादी सिद्धांतों की वैधता समाप्त करना
- सहअस्तित्व सिखाने वाली शिक्षा
- हिंसा के विरुद्ध वैश्विक एकजुटता
मानवता को साथ खड़ा होना होगा:
- हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, बौद्ध, नास्तिक सभी विचारधाराओं से नहीं, मानव जीवन के सम्मान से जुड़े हुए हैं।
🔔 दुनिया के लिए अंतिम संदेश
- यह नफरत की बात नहीं है। यह अस्तित्व की बात है।
- सभ्यताएँ केवल बाहरी दुश्मनों से नहीं गिरतीं, वे डर, इनकार और तुष्टिकरण से गिरती हैं।
अब समय आ गया है:
- सरकारें दृढ़ कदम उठाएँ
- समाज सच बोले
- शांति–प्रिय मुसलमान नेतृत्व करें
- और दुनिया तुष्टिकरण को हमेशा के लिए त्याग दे
तभी मानवता जिहादी उग्रवाद को पराजित कर शांति, सद्भाव और सहअस्तित्व को पुनः स्थापित कर सकेगी।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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